पृष्ठ:ज्ञानकोश भाग 1.pdf/५९

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अग्निपुराण ज्ञानकोष (अ) ४६ अग्निपुराण साधारणके लिये नियम उस समय भी रहा होगा। द्रव करने की शंका होते ही राजा को उसे युक्तिसे परन्तु ठेकेपर नौका-देना केवल राजाका ही बंधन करना चाहिये । नम्र राज-पुत्रको सब काम था। अधिकारके पद देने चाहिये । यत, शिकार, मद्य, शूक अनाज पर। भाग कर होना चाहिये। इत्यादिसे उसे अलिप्त रखना चाहिये। दिनमें शूकधान्यमें बाजरा श्रादि हैं। शिम्बि अनाज पर निद्रा, वृथा अभिमाना, बेअदबीसे बोलना, निंदा. १ भाग कर लेना उपयुक्त है । राज्यको वनके दण्ड, कठोरता, द्रव्यका निरर्थक खर्च, काम, अनाज देश और कालके अनुसार काममें लाना | क्रोध, मद, मान, लोभ इत्यादि दुर्गुणोसे उसे चाहिये । बरी (एक प्रकारका चावल) ककुनी. बचाते रहने की व्यवस्था राजाको रखनी चाहिये । सावाँ. देवभात, (एक प्रकारका चावल ). पशु, (बाँध) श्राकार उच्छेद, और दुर्गादिकों की टूट और सोनेपर कर और भाग लेना चाहिये। फूट होना अर्थनाश का द्योतक है। देश काला- सुगन्धित द्रव्य, औषधि, रस, मूल, फल, प्याज, दिकके विचारके विना दान अथवा निरर्थक खर्च पत्ता, शाक घास, बाँस, चमड़ा, बाँस की बीया | करना अर्थदूषण है । (यह बिल्कुल गेहूँ के समान होती है ), बाँस या राजाको प्रथम तो क्रोधादि जीतकर नौकरों बेतोके बर्तन, धातुके बर्तन, मधु, मांस, और धी पर पूर्ण अधिकार प्राप्त करना चाहिये। तदनन्तर श्रादि पर कर-भाग होना चाहिये। देशों को जीतने का प्रयत्न करना चाहिये। फिर केवल ब्राह्मण कर-मुक्त होते थे। श्रोत्रीय वाह्य शत्रुओं को जीतना चाहिये। बाह्य शत्रु तीन ब्राह्मणकी जीविका उसके गुणपर निर्भर रहती हैं। निम्नलिखित श्लोकों का अर्थ ठीक ठीक ज्ञात है। उसी प्रकार गुणी व्यक्तियोको राजाश्रय नहीं होता। “गुरुवस्ते यथा पूर्व कुल्यानंतर अवश्य प्राप्त होना चाहिये। जो राजा धर्मपालन कृत्रिमः । पितृपैतामहं मित्र' सामंतश्च तथा करता है उसकी श्रायु, द्रव्य, और राष्ट्र की वृद्धि रिपोः। कृत्रिमंच महाभाग मित्रं त्रिविध मुच्यते" होती है। कारीगरोंसे करके बदले वर्षमै एक मास स्वामी, अमात्य, जनपद, दुर्ग दंड, कोष, और मित्र राज्यकार्य कराना चाहिये । अध्याय २२४ में ये सात अंग मिलाकर राज्य कहलाता है। उप अन्तःपुरकी स्त्रियोंके रक्षणविधानका वर्णन है। र्युक्त सात अंगोमैसे किसी एक भी अंगसे विद्रोह यदि स्त्री-रक्षण एक वृक्षरूप कल्पित कर लिया करने वालेको मृत्युदण्ड देना चाहिये । समया- जाय तो धर्म इस वृक्षका मूल, अर्थ इसीकी नुसार राजाको कठोर और कोमल होना चाहिये। शाखायें और काम इसका फल होगा । इस त्रिवर्ग राजाको नौकरोंके सम्मुख हँसना उचित नहीं है। की प्राप्ति केवल स्त्री-रक्षण द्वारा प्राप्य है। इसी| हँसनेसे राजाका सेवकों द्वारा अपमान होनेकी लिए अन्तःपुरकी स्त्रियों की रक्षा करना यह आशंका है। लोकसंग्रहार्थ राजा को कार्यतत्पर राजाके अनेक कर्तव्यमैसे एक मुख्य कर्तव्य है। होना चाहिये। स्त्रियां कामाधीन हैं। अतः उनके लिये रत्न राजाको स्मितपूर्व बोलना चाहिये। दीर्घ- संग्रह करना चाहिये । विषयभोग बहुत नियमित सूत्री राजा ठीक नहीं होता। परन्तु क्रोध, दर्ष, रूपसे होना चाहिये। इसके बादके अध्यायमें मान, द्रोह, पाप तथा अप्रियके प्रति राजाको दीर्घ- कौनसी स्त्री अपने ऊपर आसक्त नहीं है यह जानने सूत्री होना चाहिये ( अर्थात् इनको शीघ्र ही अपने के लक्षण और उसे वश करनेके लिये थोड़ेसे पास न फटकने दे)। उपाय और औषधि वर्णन की हैं। राजाकी चालचलनके नियम-अपना विचार किसी- अ०२२५मैराजधर्म तथा राजपुत्रका शिक्षण राज से प्रकट न करना चाहिये । मन्त्रविचार (सलाह) पुत्रको किसी एकही विषयका शान नहोना चाहिये। अकेले में करना चाहिये। सर्वत्र विश्वास उसको धार्मिक, आर्थिक, कामिक, सांग्रामिक न रखना चाहिये । राजाको उजडू न होना और शिल्प इत्यादि की पूर्ण शिक्षा देनी चाहिये । चाहिये । राजाको विनयी होना चाहिये । राजाके चापलूसों की संगतिसे उसकी रक्षा करते रहना | कल्याणके उपाय इस प्रकार कहे गये हैं:-युद्धसे चाहिये। तामसी, लोभी, अथवा अभिमानी लोगों | पीठ न दिखाना, प्रजाका पालन करना, ब्राह्मणोंको की संगति न होनी चाहिये । राजपुत्रके चाल दान देना, कृपण, अनाथ तथा विधवाओंकी उप- चलन की पूरी पूरी खबर लगाने के लिये उसके जीविकाका प्रबंध। वर्णाश्रम व्यवस्था, तापसी शरीर-रक्षणके निमित्तबहुतसे सेवक रखने चाहिये। लोगोका पूजन, तपस्वियोंके वचनों पर भक्ति तथा राजपुत्र को कष्ट न देना चाहिये। राजपुत्रके उप- | विश्वास करना राजाका मुख्य कर्तव्य है। बगले