पृष्ठ:ज्ञानकोश भाग 1.pdf/५२

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। अग्निपुराण ज्ञानकोश (अ)४२ अग्निपुराण अतरंग निरीक्षण गोमंत एक पर्वत का नाम है और भागवतमै उस दशावतार वर्णन अ०१ से १६ तक। पर्वत का दूसरा नाम दिया हुआ है। भारताख्यान पहिले अध्यायके प्रथम श्लोकमें लक्ष्मी, सर २०१३ । १४ । १५ में है। तीन अध्यायाम केवल स्वती, गौरी, गणेश, स्कंद, ईश्वर ब्रह्मा, वह्नि, | ७२ श्लोक हैं। इन्द्र और वासुदेवादिको का मंगल गाया है। अ०१६ में बुद्धावतार और कल्कि अवतार का इतने देवताओं का मंगल-गान या उनकी स्तुति वर्णन है। बुद्धावतारकी कथा सर्वत्र ही है। का वर्णन इसके अतिरिक्त प्रायः कहीं नहीं बुद्धावतारको पौराणिक कथा ऐसी है कि पूर्व दिखायी देता। समयमें देव दैत्योंके युद्ध में देवोका पराभव हुआ, ऋषियोंने सतसे प्रश्न किया कि सार सार तव देवोंने विष्णुभगवानकी प्रार्थना को और विष्णुने क्या है, वह कहो । तव सूतने अग्नि-वसिष्ठ संवाद वुद्ध का अवतार धारण किया। उस समय सब कहा । इसी अग्नि-वसिष्ठ संवाद को अग्निपुराण दैत्य चैदिक कर्म करने वाले थे और उनका धर्मसे कहते हैं। परा और अपरा इन दो विद्याओके भ्रष्ट कर उनका पराभव करनेके हेतु विष्णुभग- आधार पर इस पुगण की रचना की गयी है। वानने बुद्ध अवतार लिया। इस बुद्धके मत का ऋग्वेद, यजुर्वेद, सामवेद, अथर्ववेद तथा उनके अनुकरण करने वाले बौद्ध कहलाते हैं। इसके छः अंगों की शिक्षा, कल्प, व्याकरण, निरुक्त, उपरान्त जैनमत उद्भव हुश्रा । ऐसा अनुमान किया ज्योतिष, छंद, मीमांसा, धर्मशास्त्र, पुराण, न्याय, जाता है कि जैनमतका पुरस्कर्ता विष्णु श्रव- चैद्यक, गांध, धनुर्वेद, अर्थशास्त्र, अपरा हैं। ब्रह्मप्राप्तिके जो ज्ञानविषयक बचन कहे गये आहतः सोऽभवत्पश्चादास्तानकरीयान् ॥ हैं वह परा हैं। इस प्रकार इस पुराण का प्रारंभ सृष्टि की उत्पत्ति श्र. १७ से २०-०१७ जगत्की उत्पत्तिका वर्णन है। इसमें ब्रह्मासे दूसरी बात यह है कि ब्रह्मदेव, सृष्टि इत्यादि हिरण्यगर्भ-ब्रह्मा तककी उत्पत्ति दी हुई है। विषयोंसे पुरोण का श्रारम्भ नहीं हुआ है बल्कि | इससे सब परिचित है। "श्रापरंच समर्जादौ अवतारचरित्रोसे इसका प्रारम्भ हुआ यह श्लोक अन्य पुराणों की तरह यहाँ भी है। अ०२मै मत्स्यावतार चरित्र और अ०३मे कर्मा (१७-७) श्रध्यताबस-प्रकृति पुरुष, महाव, वतार का वर्णन है। पद्मपुराण और मत्स्यपुराणमें | अहंकार प्रधान विषय है। श्रहंकारके तीन ये विषय आये हैं और विषयोंके प्रदिपादनमै और | प्रकार है-वैकारिक, तेजस और नामस अहंकारः। इनमै फरक नहीं है; श्लोकरचना मात्र भिन्न है। श्राकाश, वायु, तेज, पानी तथा पृथ्वी, ये तामस मत्स्यपुराणमें कूर्मावतार चरित्र का उल्लेख नहीं | अहंकारकी संतति है। तैजस अहंकारसे इन्द्रिय हैं। अवमार-चरित्रों का प्रायः पुराणों में समावेश और वैकारिक अहंकारसे इन्द्रियोंके अधिष्ठात्र है। अ०४ में वराह नृसिह, वामन और परशु- देवता तथा मन उत्पन्न हुए। "ततः ग्वयंभूभंग- रामके संक्षिप्त चरित्र दिये हैं। श्र०५ में श्रीगमा- वाम्” इस श्लोकार्द्धसे अध्याय समान होने तक तारके श्रीवाल्मीकि रामायणके जन्म काण्डका सब श्लोक महाभारतसे लिये गये हांग। क्योंकि संक्षिप्त विचार किया गया है। अ६ में रामा टीकाकारका कथन है कि दोनों ग्रन्थोके ठोक यणके अयोध्याकाण्ड, अ.६ में सुन्दर कांड, रचनाओम साम्य है। टीकाकार कहता है कि अ० १० में युद्धकांड, १० ११ मै उत्तरकाण्ड, ! ये ही श्लोक हरिवंश अ० २ में हैं। "रामरावणयोर्युद्धं राम रावणयारिव' चाला अध्याय के "स्वायंभू व मनु वंश वर्णन" में कुछ सुप्रसिद्ध श्लोका यहां दिया है। यद्यपि यह है। पूर्व अध्यायोंकी तरह यह हरिवंशमें है। रामायण संक्षिप्त है तो भी कोई सुप्रसिद्ध कथा श्र०१६में कश्यप वर्णन और श्रा..२ में जगत्सर्ग छूटी नहीं है। इस रामायणके कुल श्लोकों की वर्णन है। अ० १७ में निरूपित किये गए प्राक- संख्या १८४ है। अ० १२ में कृष्णावतार ( इसमें तादि तीन साँके श्रागेका वर्णन दिया हुआ है। आये हुए गोमंत का निर्णय किस प्रकार किया। प्राकृत सर्गके बाद महत् सर्ग ( महत से अहंकार जाय यह एक प्रश्न है ) । क्योंकि यदि गोमंत को | तक ), भूत सर्ग (श्राकाशसे पृथ्वी तक ). वैका- आधुनिक गोवा प्रान्त मान लिया जाय तो जरासंध | रिक सर्ग ( भूतोंके सूक्ष्मत्वसे बना हुआ इन्द्रिय की चढ़ाईसे भयभीत हो श्रीकृष्ण का मथुरा छोड़ | वर्ग), ये तीन सर्ग गिने जात है। विकत सर्गमें, कर इतनी दूर भागना संभव नहीं है। श्रतः स्थावर, तिर्यक स्रोतस अधाम्रोनस, ऊध्वधानस -