पृष्ठ:ज्ञानकोश भाग 1.pdf/३६

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उस पर -- अकलकोट ज्ञानकोश (अ) २६ अकलकोट वगैरह सब अधिकार प्राप्त है। यहां का दीवान | इस प्रदेशमें मलिकनम्बरकी जमावन्दीकी पद्धति ही डिस्ट्रिक्ट और सेशन जज तथा डिस्ट्रिक्ट शुरू हुई थी। इसमें शान होना है कि यह प्रदेश मजिस्ट्रेट रहता है। सब विभाग उसीके मातहत अहमदनगर के राज्य के अन्तर्गत मोगा। रहते हैं। न्याय विभागके प्रधान अधिकारी को १७१२ ई. शाइने गरगोजी लोगट नामक असिस्टेंट सेशन जजके अधिकारों के अतिरिक्त कुछ लड़केको अपने यहाँ लाकर, भरके लड़केकी अपीलके अधिकार भी होते हैं। न्यायाधीश फर्स्ट तरह उसका पालन-पोपा किया । क्लास मजिस्ट्रेट होता है। इसलिये दीवानी दावे शाह इतना खुश था कि उसने उसे स्वतंत्र पहले इन्हींके इजलासमें होते हैं। मामलेदार रहनेके लिये सताराके गज-महलमे . जगह (मुसिफ) सेकेंड क्लास मजिस्ट्रेट होता है और दी। उसको एक मनसव दी गई और खर्चके कुछ खास तौरके दीवानी दावोंका ही वह फैसला लिये उसे ३५ लाखका मुल्क दिया गया । बीरूबाई कर सकता है। महालकरी छोटे छोटे स्थानीय नामकशाहकी एकमखेली थी। उनका गरगोजी ऊर्फ दावों को सुन सकता है, और उसे थर्ड क्लास फतहनिह पर पुत्रवत प्रेम था, क्योंकि जब उसका मजिस्ट्रेटके अधिकार प्राप्त हैं। दीवानी और देहान्त हुआ तो उनकी अन्तिम किया फतहसिंह फौजदारी की सबसे बड़ी कचहरी राजा साहब ! में ही कराई गई। इस कारण उसकी धन-दौलत की है। आजकल उनकी अवस्था छोटी होनेके । और उसके वर्चके लिये मिली हुई श्राकालकोट कारण उनके सब कार्य पोलिटिकल एजेंट और परगने की जागीर कानून के मुतायिक फतहसिंहके वम्बई सरकार करती है । सेशन जज अगर किसी अधिकार में श्राई। इस तरह फतहसिंह शाहका को फाँसी की सजा देता है तो बम्बई सरकार की धर्म-पुत्र समझा जाने लगा। अब वह अपनेको मंजूरी लेनी पड़ती है। गना कहने लगा। मताग घगनेकी तरह इसने इस राज्यमै ४१ घुड़सवार और ७१ नगद भी अप्र-प्रधानोंकी नियुक्ति की। इसने अपनी बड़ी तनखाह पानेवाले पुलिस कर्मचारी हैं। कुछ । जागीर में से इन सबको इनाममें जागीरे दी थीं। देहाती चौकीदार हैं. जिनमैसे कुछ को नगद सताका गज्य नामशेष हो जाने पर भी उनके तनखाह मिलती है और कुछ को बिना लगान की हाथमें थोड़ी बहुत जागीर बच रही थी। पंशवा जमीन मिली हुई है। १८८२-८३ ई० में इस राज्य को उसने लगभग १५०७० २० की आमदनीक की कुल आमदनी २३५००० थी। उसमसे माल- गाँव दिये थे। गुजारी १४८००० रु० है और लोकल फंडसे कोल्हापुर ( १७१८) बुदलग्वंद्र (१७३०) भागा- ११३०० रुपये वसूल हुए थे। १६०३-४ में माल- नगर. कर्नाटक श्रादि की चढ़ाईशाम फतमिह खुद गुजारीसे ३६००० रु० और कुल श्रीमदनी हाजिर था। १७३९ में शाह की मृत्युके बाद वह ५०००० रु० थी। अक्कलकोटमै रहने लगा। यही वह १७६० में भर १८८२ से ८३ ई. तक इस राज्यमें कुल गया। (देखो फतहसिंह भोसले ) फलहसिंह १६ पाठशालाएँ थीं लेकिन अब कुछ अधिक है। के बाद उसके भाई, पारदके पटेल, बाघाजी लोखंडे १८७१ ई० में अकलकोटमें पहले पहल द्वा का लड़का, शाहजी गद्दी पर बैठा। उसे फतह- खाना खोला गया। श्राजकल करजगीमें भी एक सिंह ने पेशवाकी मंजरीस ५. वर्ष पूर्व गोद लिया. द्वाखाना है। करजगीमें सबअसिस्टेण्ट सर्जन | था। फतहसिंहके मतही त्रिम्बक हरी पटवर्धन और अक्कलकोटमें असिस्टेण्ट सर्जन रहता है। शाहजीको लेकर पेशवाके पास श्राया । श्रवालकोट अक्कलकोटका असिस्टेण्ट सर्जन ही चिफ मेडिकल | की जागीरका झगड़ा दो नीन वर्ष नक चलना आफिसर होता है। इस राज्यमें अक्कलकोट ही रहा। बाबू नायक नामक महाजनका कुन्छ रुपया. सबसे बड़ा नगर है। अक्कलकोटके अतिरिक्त अक्कलकोट गज्यकी और बाकी था। चाफलगांव, जेऊर, करजगी, मंगरुल, तोलनूर | चाहता था की गज्यकी व्यवस्था उभीके हाथ श्रादि दस गांव हैं, जिनकी जनसंख्या दो हजार से पांच हजार तक है। मगर पेशवाने नायककी इच्छाके विरुद्ध इतिहास----प्राक्कलकोट राज्यका स्वतन्त्र इतिहास निम्धक हर्गकी सलाहसे शाहजीको सथ अधिकार १८वीं शताब्दीसे प्रारम्भ होता है । १६वीं | दे दिये। इससे नायक विद्रोही हो गया। जिस शताब्दी बीजापुर और, अहमदनगर के बीच समय शाहजी गद्दी पर बैठे उस समय फतहसिंह। इसके लिये झगड़े चलते थे। १७वीं शताब्दी की जागीरमें से केवल अकलकोटकी जागीर ही नायक में रहे ।