पृष्ठ:ज्ञानकोश भाग 1.pdf/३१४

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शब्द भी अप्सरा ज्ञानकोश (अ) २६१ अप्सर । ये अप्सराये गान-विद्यामें कुशल | सुन्दर थी। इन्द्रने इसे विश्वामित्रकी तपश्चर्या तथा देवताओंके उपभोगके लिये हैं। इनका कोई भंग करने के लिये भेजा था। इस पर विश्वामित्र स्थायी पति नहीं होता। ने इसे श्राप दे दिया था कि वह एक सहस्त्र वर्ष ऋग्वेदमें इनका वर्णन मिलता है। उसमें इन्हें पर्यन्त पत्थरको शिला होकर रहे। रामायण में हँसती हुई अपने जारके पास जाने वाली' बताया इसके सम्बन्ध मिलता है कि एक बार कैलास है। अथर्ववेदमें इनका विशेष वर्णन मिलता है। पर्वत पर विचरण करते हुए रावणसे इसकी भेंट सायनने अपने भाष्यमै इन्हें 'जलमें विहार करने हो गई और वह इस पर मोहित हो गया। यद्यपि वाली' लिखा है। ये काम उत्पन्न करके दूसरोको | उसने अनेक प्रार्थना की कि वह उसके भाई कुवेर मोहित करने वाली होती हैं (अ० ६, १३, १)। के पुत्र नलकूबरकी पत्नि है, अतः उसे वज्य है, ये नृत्य करने वाली होती हैं (१०४, ३७.७) किन्तु उसने इसके साथ बलात्कार कर ही डाला। ऋग्वेदमें जिस एक अप्सराका नाम मिलता है वह शुम्भ निशुम्भ नामक असुरों द्वारा इहलोक 'उर्वशी' है। दसवें मण्डलमें (१०.६५ १०-१७) तथा देवलोकको अनेक कष्ट पहुँचने लगा। तब में पुरुरवा तथा उर्वशीका प्रेम प्रलाप दिया हुआ है। इसका उपाय पूछने ब्रह्मदेवके पास गये। तब महाभारतमें भी इनका उल्लेख अनेक स्थानों में | ब्रह्मदेवने विश्वकर्माको अनेक रत्नों के अंश लेकर श्राता है। एक जगह मिलता है कि देवर्षि कश्यप एक असाधारण सुन्दरी बनाने की आज्ञा दो, और द्वारा प्राधाको रम्भा नामक अप्सरा उत्पन्न हुई। उसने तिलोत्तमा नामक अप्सरा बनाई। ब्रह्माने महाभारत तथा अन्य पुराणों में इनका इन्द्रसभा | इसे उन्हीं असुरोंके पास भेजा। इसे देख कर नाचते गाते हुए तथा उत्कृष्ट ऋषि मुनियों की दोनों ही अत्यन्त मोहित हो गये और इसे अपनी तपस्या भंग करनेके लिये प्रयत्न करते हुए, उल्लेख | अपनी स्त्री बनाने के इच्छुक हुए। दोनोंमें घोर मिलता है। अप्सराओके दो भेद हैं-(१) दैविक युद्ध हुआ और वापस ही में लड़ कर मर गये । तथा (२) लौकिक । एक स्थानमें उल्लेख मिलतो पुत्रप्राप्तिके लिये पाञ्चाल देशके राजा एक हैं कि दैविक १० तथा लौकिको ३४ अपलराय यार घोर तप कर रहे थे। जिस जंगलमें वह तप हैं। उर्वशी, घृताची, रम्भा, तिलोत्तमा तथा कर रहे थे वहीं पर सब शृङ्गारोंसे युक्त मेनका मेनका इनमें मुख्य हैं और इन्हींका उल्लेख स्थान | पहुँची। वे उसके रूप लावण्य पर मुग्ध हो उठे स्थान पर श्राता है। अतः इन्हींका उल्लेख नीचे और उनका वीर्य स्खलित हो गया। इससे वे दिया भी जाता अत्यन्त लजित हो उठे और उसे पैरोके नीचे दबा एक बार इन्द्रसभामें नारदने पुरुरवाके रूप | दिया, किन्तु उसीसे इन्हें दुपद नामक पुत्र उत्पन्न यौवनका ऐसा उत्कृष्ट वर्णन किया कि उसे सुनकर हुश्रा। यही द्रौपदोके पिता थे। एक बार विश्वा- उर्वषी उसपर मोहित हो गई, और धुरुरवाके मित्र घोर तपस्या कर रहे थे। उन्ई तप करते साथ हो रहने लगी। इन्द्र इसके वियोगसे श्रति देखकर इन्द्रको अपने पदच्युत होनेकी आशंका विह्वल हो | अतः गन्धों की सहायतासे कपट होने लगी। अतः इन्द्रने उनका तप नाश करने करके उर्वशीको फिर इन्द्रसभामें बुलवा लिया। के लिये मेनकाको भेजा । मेनकाको विश्वामित्रके इस कथाका विशेष वर्णन बड़े सुन्दर रूपसे विक्र- क्रोधका भय था, अतः अपनी सहायताके लिये मोर्वशी नामक कालीदास कृत-नाटकमें दिया गया। कामदेवको भी साथ भेजनेकी इन्द्रसे प्रार्थना की। है। उर्वशीको ही मित्रावरूण द्वारा वसिष्ठ उत्पन्न अतः इन दोनोने जाकर उन्हें कामविह्वल कर डाला जिससे उनका तप नष्ट हुआ। मेनकाको एक बार भारद्वाज ऋषि नदोके तट पर स्नानार्थ विश्वामित्र ही द्वारा शकुन्तला उत्पन्न हुई थी। गये थे। वहाँ पर घृताचीके रूपलावण्यको देखा, स्कन्दपुराणमै अप्सराकुण्डका उल्लेख जिससे वह कामातुर हो उठे। वहीं पर इनका मिलता है। ब्रह्मदेवने सब देवताओंके थोड़े थोड़े वीर्य स्खलित हो गया। इन्होंने उसे दोनेमें रोप | उत्तमोत्तम अंश लेकर एक अप्सराका निर्माण आगे चल कर उसीसे द्रोणाचार्यको किया था। जब वह कैलास पर्वत पर गई तो उत्पत्ति हुई। उसे देखकर शंकर भी मोहित हो गये। किन्तु जिस समय समुद्र मथा गया उस समय उस समीप ही पार्वती थीं, जिसके भयसे वह उसे खुल में से चौदह रत्न प्राप्त हुए। उन्हींमें से कर देख नहीं सकते थे। जब वह शंकरकी प्रद- रंभा नामकी एक अप्सरा भी थी। यह भी बड़ी क्षिणा करने लगो तो शंकरने उसे निरन्तर अपने t हुए थे। लिया ।