पृष्ठ:ज्ञानकोश भाग 1.pdf/३०४

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अपुष्प वनस्पति . ज्ञानकोश (अ) २८१ अपुष्प वनस्पति और कुछका ज़मीनके ऊपर रहता है। दूसरी गुच्छा रहता है। यह एक फूलनेवाली थैली होती श्रेणीमें सवप्रकारके नेचोंका समावेश होता है। इनमें है। इसके डंठलसे ऊपर सिरेतक और वहाँसे की सबसे बड़ी जाति उष्ण कटिबन्धमें होती हैं। दूसरी तरफ करीब आधे भागतक विशिष्ट कोशों बहुतसी आतियां छोटे पौधोंके सदृश होती हैं की एक पंक्ति होती है । इन कोशोंकी त्वचा किन्तु कुछ बड़े पेड़ोंके सदृश होती हैं। यह बहुत मोटी होती है। कितनों में तो इस मोटी सिंहल द्वीपमें बहुतायतसे हैं। नीलगिरि पर्वत | त्वचाके कोशौकी पंक्ति दूसरी तरफ मध्य भागपर पर उटकमंडके प्रसिद्ध बागमें बहुत सी इसी नहीं ठहरती किन्तु सीधी नीचे आकर डंठलसे श्रेणीकी समान जातियां हैं। सह्याद्रिके कैसलरॉक मिलती है और इस पंक्तिको एक पूर्ण कड़ी बन जंगलमें भी ऐसो बहुत जातियां पाई जाती जाती हैं कुछमें ये कोश नीचे डंडलसे डंठल तक हैं। ये दस बारह फीट ऊंची होती है। इनमें नहीं रहते किन्तु केवल ऊपर सिरेपर रहते हैं। शाखाय नहीं लगती। इनके सिरेपर लम्बेर संयुक्त और कई एकमें यह पंक्ति में न होकर उसके बदले पर्यों का एक गुच्छा होता है । ये पत्तियां अन्तिम मध्यमे दोनों तरफ मोटी त्वचाओके कोशोके कली (Terminal bud)से एकके ऊपर एक उत्पन्न दो समुदाय होते हैं। इन मोटी त्वचाओंके कोशों होती हैं । पत्तियां सूखनेपर नीचे गिर जाती हैं का उपयोग जननकोशके गुच्छोंके स्फोटनके और उनसे एक बड़ा ब्रण तनेपर हो जाता है। (Dihisence) काममें लाता है। कोशोमेका जो छोटे पुच्छको तरह रहते हैं उनका मुख्य तना. पानी कम होकर उनकी त्वचा सिकुड़ती जाती है जमीनपर फैला हुआ.अथवा कभी कभी जमीनके और इस कारण जननकोशके गुच्छेके मध्य भागमें नीचेसे टेढ़ा बढ़ता है । इनके सिरेपर संयुक्त पर्णो | एक दरार पड़ जाती है। इस दारमैसे जननकोश का एक गुच्छा रहता है। पत्तियां जब छोटी | बाहर निकलते हैं। रहती हैं तभीसे अग्नभागसे लेकर डंठल तक जननकोशके गुच्छेके आकार, और उसके घड़ीके स्प्रिगके सदृश लिपटी हुई रहती हैं। सब ऊपरके आवरण इत्यादिसे भिन्न भिन्न नेचौकी नेचोंमें और जलनेचोमें यह बात विशेष है। कुछ पहिचान होती है। बीचकी शिराके दोनों तरफ बनस्पतियोंके पत्ते सादे रहते हैं और विभक्त नहीं तिरछी शिराओंपर प्रायः ये उगते हैं। कई एकमें होते किन्तु पूरे के पूरे होते हैं। उष्ण प्रदेशमें ये संघ सीधी रेखाओंके सदृश रहते हैं। कितनोंमें कितभी जातियां दूसरे वृक्षोंपर अर्धांश परोपजीवी तो चन्द्रकलाकी तरह रहते हैं। कई एकमें पूरे वृत्तिसे रहती हैं। वर्तुलकी तरह, तो कई एकमें अर्ध वर्तुलकी उदाहरणार्थ ---मर्कट वाशिंग, नामका पौधा तरह होते हैं। कई एकमे पत्तोंकी ओरसे खड़े ऊँचे वृक्षोंपर पाया जाता है। कुछ पत्तोपर, तनों लम्बे डंठलके अग्रभाग तक दोनों तरफ दो अखंड पर या पत्तोंके डंठलोपर एक विशेष प्रकारकी पंक्तियां होती हैं । पत्तोंकी तरफ किंचित् मुड़कर सुधनी रंगकी वल्के ('Scales ) रहती हैं वे ढक जाती हैं। ऊपरका श्रावरण कई में एक इसमें जननकोशके गुच्छे बहुत होते हैं । वे होता है तो कुछमें नहीं भी रहता, किसीर में पत्तोंके पृष्ठ भागार निकलते हैं। जिन पत्तोपर ओवरस सब तरफसे चिपका रहता है और जननकोशके गुच्छे निकलते हैं वे इतर पत्तों से भिन्न | कुछ में एक ही तरफसे चिपका रहता है तो कई नहीं होते। बहुत थोड़ी अपवादात्मक बनस्पितियों को केवल बीच ही में चिपका रहता है। इस में दो प्रकारके पत्ते भिन्न रहते हैं। भिन्न भिन्न प्रकारसे आवरणमें भिन्नताके आधारपर अनेक -जातियों में उनकी रहन सहन, श्राकार तथा रचना भेद हैं। में बहुत अन्तर दिखाई पड़ता है। अनेक जनन बहुधा पुरस्थाणु हृदयके श्राकारका. अथवा कोशके गुच्छोंका एक संघ पचोंके पृष्ठ भागमें पक ताशोंके पानके सदृश होता है ।.. उसके नीचेकी छोटी गद्दीपर निकलता है। तदनन्तर इसपर एक तरफ .स्त्री और पुरुष इन्द्रियां होती हैं। कई एक महीन अवरण , पाता है। प्रत्येक जननकोशके में यह तन्तुमय होता है और सेवारके जननकोशों गुच्छे पत्तेकी त्वचाके एफ. कोशसे तैयार होता है | के तन्तुओंके सदृश दिखाई देता है। उसके और इसमें बहुतसे जननकोश होते हैं। -तिरछे भागपर दोनों इन्द्रियां निकलती हैं। तन्तु:- जनम कोशका सर्वसाधारण आकार गोलोके बीच में रेतकी डिबियां होती हैं और उसके होता है। उनमें कोशके अतिरिक्त बिलकुल पतला ऊपर और स्कन्धोके पास रजकी डिबियां होती लम्बा. डंठल होता है इसपर ..जनवकोशका, हैं। रेतकी डिबिया गोल होती है और पुरस्थाणु . 1