पृष्ठ:ज्ञानकोश भाग 1.pdf/२९०

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अपुष्प वनस्पति अपुष्प वनस्पति ! ज्ञानकोश (अ) २६७ सबसे साधारण प्रकारके सूक्ष्मजन्तु गोलपेशी वायुका अस्तित्व भी नहीं है। कई सूक्ष्म जन्तुओं रहते है। उनको गोलजंतु ( Cocei) कहते हैं। के श्वासोच्छाससे उष्णता उत्पन्न होती है। इसी लम्बे सीकके सदृश आकार वालोको हखजन्तु कारणसे गोवर और आई कपास इत्यादि अथवा यष्टिजन्तु ( Bactirium or Bacillus ) भी किंचित् गरम मालूम होते हैं। कोई २ सूक्ष्म जन्तु कहते हैं । हख जन्तु के सदृश, किंतु किंचित् लाल. विशिष्ट काम करते हैं। जिस पानीमें गंधक कुछ ऐठनदार, तारके सदृश कुछ लम्बे सूत की पिघला रहता है ऐसे पानी के झरनों में कुछ तरह इनकी अनेक जातियाँ हैं। सूक्ष्म जन्में सूक्ष्म जन्तु मिलते हैं। उनके नाम गन्धकके. जन्तु शाखाएँ नहीं निकलती। कुछमें शाखाएँ निकली हैं। ये सूक्ष्म जन्तु पानीमें जितना गन्धक होता हुई देख पड़ती हैं परन्तु वे वास्तवमै शाखा नहीं है उसे लेकर उसका अपने शरीर में संग्रह करते हैं। एक पेशीसे जब दो पेशियाँ होती हैं तब वह और अन्त में उससे गन्धकाम्ल तैयार करते हैं। दोनों पेशियाँ एक दूसरेसे चिपकी हुई रहती हैं। कुछ लोह सूक्ष्म जन्तु हैं। वे पानी में के लोहेको इस तरहसे उनकी एक माला बनती है। बहुधा लेकर लोहे का एक रासायनिक पदार्थ अपने शरीर ऐसी अनेक मालाये एकत्र मिलकर उनके पेशी ! में इकट्ठा करते हैं। दही मे एक प्रकार के सूक्ष्म कवचसे एक मुलायम पदार्थ तैय्यार होता है जन्तु होते हैं उनका काम दुग्धाम्ल ( Lactic acid) और वे शहतके सदृश पदार्थमें मिलकर रहते हैं । नामक अम्ल तैयार करना है। दूसरे प्रकारके बहुतसे सूक्ष्मजन्तु सचेतन रहते हैं। उनमें सूक्ष्म जन्तु हैं जिनका काम नवनीताम्ल (Butyric महीन महीन जीव द्रव्यके तन्तु रहते हैं। उनके acid ) तैयार करना है। और एक प्रकारके सूक्ष्म कारण वे पानी में इधर उधर तैर सकते हैं । जीव जन्तु सिरका तैयार करते हैं। नवनीताम्ल तैयार द्रव्यके ये. तन्तु कुछ सूक्ष्मजन्तुओंके सव भाग पर करने वाले सुक्ष्म जन्तुओं को प्राणवायु को भाव- रहते हैं, कुछ केवल एक सिरेपर रहते हैं और श्यकता नहीं होती। दूसरे एक प्रकारके सूक्ष्म- कुछमें केवल एक तन्तु रहता है । तन्तुओंके गुच्छे | जन्तु जिन्हें प्राणवायुको आवश्यकता नहीं होती इतने करीब २ रहते हैं कि उन सबका मिलकर | वे कपास वगैरह काष्ठके ( सेल्यूलोज) पदार्थों से एक मोटा तन्तु दिखाई पड़ता है। इस तन्तुको | उज्ज अथवा अनूप नामक वायु (Marsh gas) तैयार सूक्ष्मजन्तु भीतर नहीं खोंच सकते। परन्तु जब करते हैं। अभी तक कही हुई जातियाँ श्राधे श्राध जरूरत नहीं रहती अथवा जनन पेशी तैय्यार | परोपजीवो हैं । उनको आधे आध तैयार कियेहुए होती है तब यह झड़कर गिर जाते हैं। अन्न की आवश्यकता होती है। अन्न पचानेके वानस्पतिक ( Vegetative) उत्पादन एक लिये उसको योग्य बनाने का काम वे करते हैं। पेशी के दो टुकड़े हो कर फिर उन पेशियोंके | किन्तु ऐसी बहुत सी जातियाँ हैं जो कि इतना भी स्वतंत्र रूपसे होने पर होता है। उन पेशियों से | काम नहीं करती। उनको बिलकुल परिपक्व अन्न फिर दूसरी पेशियाँ उत्पन्न होती हैं। अयोगसंभव बना देना पड़ता है। इस प्रकार की जातियों में ( Asexual ) उत्पादन जननपेशी से होता है। मुख्य वे सूक्ष्म जन्तु हैं जिनसे वनस्पतियों पर पड़ने प्रथम तो पेशीके बिलकुल भीतरका जीवद्रव्य भाग वाले तथा प्राणियों को होनेवाले रोग उत्पन्न होते इतर भागों से छूटता है और फिर उनका एक गोला हैं। ये सूक्ष्मजन्तु प्राणियोंके रक्तोंमें जाते हैं होता है और उस गोले पर एक मोटी त्वचा पाती | उसपर अपनी उपजीविका करते हैं और दूसरे है। पेशी की वाहरी त्वचा फिर फूलती है और अनेक प्रकार के सूक्ष्म जन्तु उत्पन्न करते हैं और भीतरी त्वचा जनन पेशीके तैयार होने पर एक प्रकारका द्रव्य भी उत्पन्न करते हैं। यह द्रव्य फूटती है । सब जातियों में जनन पेशी नहीं होती। ही प्राणियों के लिये बहुत ही कष्टप्रद है। यह द्रव्य यद्यपि सब सूक्ष्म जन्तुओंकी जीवनक्रिया बहुधा अत्यन्त विषैला होता है। इस कारण नाना बिलकुल साधारण है तो भी उनमें को भिन्न २ प्रकारके रोग प्राणियों को होते हैं। संसर्गजन्म जातियों में बहुत कुछ अन्तर है। . अन्न लेकर और संक्रामक रोग प्रायः इसी प्रकार के सूक्ष्मजन्तु उससे जो पदार्थ वे तैयार करते हैं उनमे तो बहुत ओंसे होते हैं। क्षय, विषम, अंतरिया बुखार, ही अन्तर है। बहुत से सूक्ष्म जन्तुओं को श्वासो दलेग इत्यादि रोग इस प्रकारके सूक्ष्म जन्तुओं च्छासके लिये प्राणवायुकी आवश्यकता पड़ती (Germs ) से होते हैं। हैं। किन्तु उनमें कुछ ऐसी जातियाँ हैं कि वे जिस प्रकार कुछ सूक्ष्मजन्तु हानिकारक होते उसो जगह पर बड़े वेगसे बढ़ती हैं जहाँ पर प्राण हैं उसी प्रकार प्राणियोंपर उपकार करनेवाले