पृष्ठ:ज्ञानकोश भाग 1.pdf/२७४

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अहिलवाई ज्ञानकोश (अ) २५१ अहिलवाई साथही साथ फर्ना डोपो भी पोतू गीजने स्पेन ऋण चुकाये या महाजन को संतुष्ट किये अपने को दे डाला था। पहले तो यहाँ के निवासियोंका स्थानसे न हटेगा। लोग अन्न, शाक, या स्वयं भरे स्पेन वालोंसे युद्ध हुआ किन्तु इसी शर्त पर हुये जानवरों का मांस खाते हैं। वे अहिंसक हैं। शीघ्र ही सन्धि हो गई कि तद्देशीय निवासियोंमें वे गाय और बैलको पूज्य दृष्टि से देखते हैं । से पाँचके द्वारा टापूका सञ्चालन होता रहे। प्रचीन अरथी ग्रंथकारोंने भी अन्हिलवाड़के १६वीं शताब्दीके उत्तरार्द्ध में यहाँ स्पेनकी सत्ता वारेमें लिखा है। वे इसको भिन्न भिन्न नामों फिरसे पूर्व रूपसे स्थापित हो गई। आम्हल, फाम्हल, काम्हस, कामुहुल, माम्डुल, अह्निल वाड़-गुजरात प्रान्तमै अन्हिल- नहलवार, नहरवाल द्वारा सम्बोधित करते हैं । वाड़ एक प्राचीन राज्य है, जिसका नामकरण इस्तरखी--( सन् १५१ ) पहला अरबी उसको राजधानीके नामपर हुश्रा था। प्राचीन विद्वान है जिसने इसको 'आम्हल' करके सम्बो- अन्हिलवाड़, आधुनिक बडौदाके पट्टण या धित किया है और इसके बारे में लिखा है । इसके अन्हिलवाड़ पट्टण शहरके किंचित् वायव्य दिशा पहिले किसी भी अरवो भूगोलवेत्ता का ध्यान में स्थित था। इस राज्यका संस्थापक वनराज | इस ओर आकर्षित नहीं हुआ है। कदाचित् नामक पुरुष था। कुमार पाल चरितमें अन्हिल- १० वीं शताब्दी में इस राज्यने इतनी उन्नति की वाड़का वर्णन पाया जाता है। उसमें लिखा है | हो कि दूसरों का ध्यान इसको ओर आकृष्ट हुआ कि उसका विस्तार १२ कोसमें था। उसमें नगरके हो । इस्तरखीने इसे हिन्द (गुजरात) का ८४ बाजारों, चांदी सोने की टकसालो और एक नगर कहकर इसका वर्णन किया है। इदिन- राजमहलोंके वैभवका वर्णन मिलता है । होकल ( सन् ५-७६ ) लिखता है कि, नगरमें असंख्य न्यायालय थे, जिनका संचालन | 'फाम्हल' एक मजबूत तथा बड़ा नगर है। इसमें सुचारु तथा सुव्यवस्थित रूपसे होता था। एक "जामा" है। अलबरूनीका भी ध्यान इस ओर. सहस्त्रों मन्दिर तथा पाठशालायें थीं। वृक्षोंकी | गया था । इद्रीस इसको माम्हण कहकर सघन छायाम वेद विषयक वाद विवाद होता था | पुकारता है, और लिखता है कि, "यह हिन्द नगर में प्रतिदिन सहस्रों रुपयेकी आय थी। (गुजरात) तथा सिंधके बीच स्थित है;--तथा उक्त पुस्तकमै उपर्युक्त विषयोंके वर्णनके अतिरिक्त घोड़े और ऊंठ रखने वालों का निवास स्थान है । कितनी हो दूसरी बातोका वर्णन अत्यन्त सुन्दर ११वीं शताब्दीके इतिहासकारोंने, जो महमूद तथा आकर्षक भांतिसे हुआ है। (फोब्स) के राज्यकालमें हुये थे, कई बार अन्हिलवाड़ इद्रीस नामक विद्वान ने ११५३ ई० में अन्हि- का उल्लेख किया है। फरिश्ता लिखता है कि लवाड़का वर्णन इस प्रकार किया है, "नहर- अन्हिलवाड़की विजयके पश्चात् जव महमूदने वाल ( अन्हिलवाड़ का मुसलमानी नाम ) में सोमनाथ का नाश किया तो उसका विचार था बलहार नाम का एक राजा राज करता है। वह | कि वह अन्हिलवाड़ को अपनी राजधानी बनावे बुद्धका उपासक है। उसका मुकुट सोने का है। क्योंकि यहाँपर सोने की खाने थी और सिंहल- वह मूल्यवान वस्त्र धारण करता है। उसके पास द्वीपकी भांति यह भी अपने रत्नोंके लिये प्रसिद्ध हाथियोंका एक समूह ही है। राजाकी शक्ति था। उसकी इच्छा पूरी न हो सकी, उसके हाथियों पर निर्भर है। सप्ताहमें एक बार वह मंत्रियोंने अनेक वाधायें डालीं। किन्तु अब भी वस्त्राभूषण विभूषित सौ सुन्दरियों के साथ नगर की दो मसजिदें महमूदके प्रेमके स्मारक श्राखेट की निकलता है। मंत्री तथा सेनापति स्वरूप खड़ी हैं। केवल युद्धके अवसरपर ही उसके साथ रहते फरिश्ताके वाद नूरउद्दीन मुहम्मद उफी (सन् हैं । अनेक मुसलमान व्यापारी भी नगरमे दिख- १२७७ ई.) ने अन्हिलवाड़ का उल्लेख किया है। लाई पड़ते हैं । राजा तथा उसके कर्मचारी उनको उसने अन्हिलवाड़के जयराजा के समयका वर्णन ससम्मान आश्रय प्रदान करते हैं । हिन्दू स्वभावतः किया है। उक्त इतिहासमें यह भी उल्लिखित है न्यायप्रिय होते हैं । वे अपनी राजभक्ति तथा कि द्वितीय मूलराजने सन् ११०८ ई० में मुहम्मद सत्यप्रियताके लिये प्रसिद्ध है। वे समृद्धि शाली गोरीको पराजित किया। ताजुल मासिरने लिखा हैं। उनकी प्रमाणिकता का यह एक उत्कृष्ट है कि इसी पराजय का बदला कुतुबुद्दीन घेवकने उदाहरण है कि यदि महाजन अपने ऋणीस | सन् २२६७ ई. में लिया । सुल्तान नासिरुद्दीन ऋण वसूल करने की ठान ले तो ऋणी बिना | कवाच ( सन् १९४६-६६ ई.) ने देवल से अपने