पृष्ठ:ज्ञानकोश भाग 1.pdf/२६८

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ज्ञानकोश (अ.).२४५ 'सी' विटामिनके अभावभं चर्मयेग (Scurvy) | यह कम पाया जाता है किन्तु ऐसी अनेक औषधि का प्रादुर्भाव होने लगता है। यह एक प्राचीन तथा मछलियोंके तेल हैं जिनमें यह यथेष्ट प्रमाण चर्मरोग है। पहले यह रोग नाविकोंको अधिक मैं होता है। यह भी शरीरमें यथेष्ट समय तक हुआ करता था। मानव शरीर इसको सञ्चित | सञ्चित रहता है। सूर्य प्रकाशमै नङ्गे बदन रहने करके बहुत थोड़ी देर रख पाता है क्योंकि गरमी से यह यथेष्ट रू पसे शरीरमें प्रविष्ट हो जाता है। (Oxidation) से यह तुरत नष्ट हो जाता है। 'ई' विटामिनका प्रभाव भी शरीर को शीघ्र ही मसौ और हड्डियोंमें भी इसके प्रभावसे दुबलता खटकने लनता है । सन्तानोत्पत्ति की शक्ति इसी आने लगती है। यह फलोमें बहुत प्रमाणमें पाया से प्राप्त होती है। इसके अभावले गर्भावस्थामें जाता है। नीबू, सन्तरा, टमाटर, हरीमिर्च, शल- | शिशुका ठीक ठोक पालन नहीं होने पाता जिससे जम इत्यादि का सेवन इसके अभाव की पूर्ति के प्रसवके पहले ही वह नाश होजाता है। यह किसी लिये विशेष लाभप्रद हैं किन्तु उबालने, पकाने अंश तक शरीरमें सञ्चित रह सकती है। मांस इत्यादिसे ये नाश हो जाते हैं। अतः उपरोक्त महली अण्डे इत्यादि में तो यह यथेष्ट प्रमाणमें वस्तुओं को उनकी नैसर्गिकावस्थामें ही व्यवहार होती ही है बहुतसे भूमिज अन्नोंमें और विशेष में लाना चाहिये। कर गेहूँ में यह बहुत पायी जाती है। लेटुस 'डी' विटामिन शारीरिक शक्तिकेलिये नोमक फल (Lettuce) और उसकी पत्तीमें नितान्त अनिवार्य है। इसके प्रभावसे शरीरमें यह बहुत होती है। श्रानेक भयंकर रोग तक उत्पन्न हो जाते हैं। सूखा पाकक्रियाका अनके स्वादपर तो बहुत कुछ रोग ( Rickets) तपेदिक ( Tuberculosis ) प्रभाव पड़ता ही है वैद्यक-दृष्टिसे भी इसके अनेक हड्डीकी विमारी (Osteomalacia ) तथा दाँतोके लाभ और हानि है। हानि तो सबसे बड़ी यही रोग इनमें प्रधान हैं। केवल इसीका रासायनिक | है कि पकानेसे अन्नकी शक्ति बहुत कुछ कम हो रूप मालूम होसका है, जिसे 'अर्गो-स्टेरोल' कहते जाती है और उपरोक्त कई प्रकार के विटामिन है । यह निष्क्रिय ( Inert) होता है किन्तु कुछ उनमेसे नष्ट हो जाते हैं । किन्तु निर्वल मनुष्य को देर सूर्यप्रकाश अथवा तीव्र बैगनी किरणोसे वैद्यक दृष्टिसे कच्ची चीज़े हानिप्रद भी हो सकती (Ultra Violet Ray) इसकी उत्पत्ति होती है | हैं। पाकक्रियासे अनके अनेक दोष नाश भी हो ऐसे बहुत कम अन्न हैं जिनमै यह यथेष्ट प्रमाणमें जाते हैं । नाना प्रकारके रोग वाहक कृमि (Gerus) और स्थायीरूपमें पाया जाता है। इसका सबसे का नाश हो जाता है। दूसरे बहुतसे अन्न जो घनिष्ट सम्बन्ध है सूर्य के प्रकाश से। यद्यपि यह कच्चे पचना कठिन हो जाते हैं। उबालने अथवा दूध, अण्डे, मछलीके तेल, मक्खन इत्यादिमें पाया पकाने के बाद शीघ्रही तथा सरलता से पच जाता है किन्तु उन दिनों यह अधिक प्रमाणमें जाते हैं। पाया जोता है जिन दिनों पशुपक्षि सूर्य प्रकाशमें निमाङ्कित कोष्टक प्रत्येक मनुष्य के लिये विशेष अधिक देरतक रहते हैं। यद्यपि अन्न पदार्थों में हितकारी होगा:- नाम विटामिन उनके प्रभाव से हानि स्थिरता दूध, मक्खन, हरे शाक, सर्दी, जुकाम, इत्यादि गले तथा बहुत अधिक साप, श्राक्सिजन से 'ए' नेत्रोंके रोग; पूर्ण-शारीरिक लोपहोजाताहेबर्तन में ढककरपकाने अण्डा, काडलिवर तेल विकास का प्रभाव | से [Canning] कमनाश होता है ताजाफल, गेहूं के कीटाणु, बेरी बेरी, पेलेग्रा, स्नायुरोग किसीअंशतकस्थिर, पकाने अथवा ईस्त सालाद, हरेशाक कज, अपच, कैनिङ्गसे कुछही नाश होता है नीबू, सन्तरा, टमाटर, हरीमिर्च ! चर्मरोग, [ स्कर्वी ] दन्तरोग, सबसे अधिक अस्थिर । किसी शलजम, हरेशाक पूर्णविकास का अभाव भी पाक क्रिया से नाश मक्खन, अण्डा, काडलिवर सूखारोग, तपेदिक, हड्डी के तापमें भी स्थिर, पाक क्रियासे तेल, सूर्य प्रकाश रोग, दन्त हास सम्पूर्ण नाश नहीं होता मांस, मछली, अण्डा, गेहूंकी | सन्तानोत्पत्ति शक्ति का हास, | तापमें भी स्थिर । पाक क्रिया वाली, जौ चना, गर्भ-रक्षाकी शक्ति का ह्रास द्वारा नाश नहीं होता प्रधा। अन्न है