पृष्ठ:ज्ञानकोश भाग 1.pdf/२५६

यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

अनुराधपुर ज्ञानकोश (अ) २३३ अनुराधपुर अंगिरा ऋषिले उत्पन्न चार कन्याओं में कनिष्ठ । अनुमान किया जाताहै कि इसमें बुद्धकी अस्थियां (२) द्वादशादित्योंमें धाता नामक आदित्यकी स्त्री सुरक्षित थीं । इसके पास ही उसी राजा की वन- (३) शाल्मली द्वीपकी एक महानदी। वायी 'इस्सारा मुनि विहार' नामक एक दूसरी (४) एक ब्रह्मर्षि। इमारत है, जिसका भी अब केवल खण्डहर ही (५) एक देवपनि जो स्कन्दाभिषेक के लिये अवशेष है। इसके पास भी एक छोटा सा तालाव आयी थी। है। इनके अतिरिक्त यहाँकी अन्य इमारतें नष्ट (६) पूर्णिमाके पहलेका एक दिन, जिस दिन हो गयी हैं। देव और पितरोको पिण्ड देते हैं। इसे देवता जिस बोधि वृक्षकी चर्चा ऊपर की गयो है वह मानकर राजसूय यज्ञमें इसकी पूजा भी की जाती | २२०० वर्ष पुराना बतलाया जाता है जो अभी भी है । (ले० सं०१८,८,१:३.४, ६, १, काठक संहिता | हरा भय है। गयाके मूल बोधि वृक्षकी एक शाखा १२, ८, वाजसनेयी संहिता २६,६०, ३४, ८५ षड्- सम्राट अशोकने राजा तिस्सको भेटमें दी थी। विश ब्राह्मण ५, ६) जिसे उसने वहां लेजाकर लमाया था। अनुराधपुर-ईसाके छः सौ वर्ष पूर्व उत्तर राजा तिस्सकी मृत्युके अनन्तर तामिल लोगों सिलोनके मध्यभागमें कदंब नदीके किनारे अनु- ने इसपर अपना अधिकार जमाया पर प्रायः एक राध (अनुराधा नक्षत्रसे यह नाम हुआ) नामक शताब्दी बाद वे पुनः हरा दिये गये और दुत्थ. राजाने इस नगरको बसाया था। यह नगर प्रायः गामिनि अभय नामक राजाने इसपर फिर पन्द्रह सौ वर्ष तक सिलोन की राजधानी था। अधिकार जमा लिया। सिलोनके इतिहासमें इस ईसासे पांच सौ वर्ष पूर्व राजा पंडुकामयने अपनी राजाको बहुत महत्व दिया गया है। इसने अनेक राजधानी उपतिस्साको छोड़ इसे ही गजधानी इमारतें बनवायी थीं जिनमें काँसेका राजमहल बनाया। तबसे लगातार आठवीं शताब्दोके राजा सबसे सुन्दर है। यह डेढ़ सौ फीट ऊँचा. था। अग्रबोधिके समय तक यह नगर राजधानी रहा। इसके बनवाने में उन दिनों तीस लाख रुपये खर्च उसके अनन्तर ग्यारहवीं शताब्दीमें भी कुछ हुए थे। इस राजाकी दूसरी 'दागवा' नामक इमा- दिनोंके लिये राजधानी रहनेके अनन्तर वहांसे रत है जो सुनहली बालूकी है जिसमें एक करोड़ राजधानी हटा लीगयो । सिंहल द्वीपके किसान रुपयेके लगभग खर्च हुए थे। चौद्ध लोग इसे इसे अनुराजपुर कहते हैं। यहां को जनसंख्या अव भी आदरकी दृष्टि से देखते हैं। इसको ३२०० है। ऊँचाई १२८ फीट है। पाली भापामै इसे महाथूप इस नगरके निकटही राजा पण्डुकामयने एक | कहते हैं। महावंश नामक ग्रंथके पांच प्रकरणों में सरोवर बनवाया था जिसे विक्टोरिया लेक, जय इसका विस्तृत वर्णन दिया हुआ है। वापी या अभयवापी भी कहते हैं। इसका क्षेत्र अनुराधधुरके इतिहासमें कुछ छोटे बड़े फल दो मोल है। इसके दक्षिण ओर दो मील पर उपद्रवोंके बाद प्रायः शांत ही रहो। ईसासे २८४ एक घोधिवृक्ष है। सरोवरके चारों ओर जैन वर्ष पूर्व तामिल लोगों ने एक बार इसे अपने आदि विभिन्न सम्प्रदायके सन्यासियोंके रहनेकी अधिकार में कर लिया था। इस समय यहाँ के जगह बनी थी। इसके उच्चरमै गामिनी (विलान) सिंहली जंगलों में भाग गये थे, पर उसके सो वर्ष नामका एक तालाब है। लकड़ीका बना हुआ यह बाद सिंहली लोगोंके नेता वहगामिनीने इसपर प्राचीन शहर तो नष्ट होगया है पर ये दोनों चढ़ाई कर तामिल लोगोंको पुनः निकाल बाहर तालाब अब तक प्राचीन स्मृति बनाये हुए हैं। किया। इसी विजयके स्मारक स्वरूप अभयगिरि इस शहर को सौन्दर्य तिस्स नामक राजाने दागवा नामक एक बड़ा स्तूप बनवाया गया जो वढ़ाया ( ई०पू. ३००)। यह सम्राट अशोकका चार सौ फीट ऊँचा था। इसका भी भग्नावशेष समकालीन था, और इन दोनों में बड़ी मित्रता ही बच रहा है। इसके निकट ही पण्डुकामय थी। राजा तिस्सने अपने सरदारों एवं प्रजा राजाने जैन मुनियोंके रहने के लिये एक विहार सहित बौद्ध धर्म स्वीकार किया था और बौद्ध | बनवाया था! इन सुन्दर इमारतोसे अनुराधपुर सम्प्रदायकी अनेक सुन्दर इमारते बनवायी थीं। का सौन्दर्य और भी अधिक बढ़ गया था। इसके इनमें थूपारामके भग्नावशेषसे ही ज्ञात होजाता अनन्तर भी कई इमारतें बनी थीं जिनमें चौथी है कि ये इमारतें कितनी सुन्दर बनी होगी। यह । शताब्दी की 'जेतवन आराम' नामक इमारतं अभी इमारत स्तूपके प्रोकारकी सत्तर फीट ऊँची है। तक वर्तमान है। ३०