पृष्ठ:ज्ञानकोश भाग 1.pdf/२५

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अकाली ज्ञानकोश (अ)१५ अकिमिनियन नोलाम्बर कहते हैं। ) ये हाथमें फौलाद का कड़ा इस पंथम ब्रह्मचर्यका पालन करने की श्राशा पहनते हैं और छोटा सा संजर, चाकू, एक लोहेकी | है। शिष्य गुरुका जूठन खाता है । अन्य सिक्खोकी जंजीर और एक फौलाद का चक्र अपनी नीली भाँति ये लोग मांस अथवा शराबका व्यवहार रंगकी पगड़ी में छिपा कर रग्नते हैं। नहीं करते परन्तु वे भांग हद से ज्यदा पीते हैं। कुछ अकाली जटा बढ़ाते हैं। जो जटा नहीं सिक्खोके प्रार्थना-मदिरोंको "गुरुद्वारा" कहते बढ़ाते वे केवल 'दुर' और 'लोटा' पानीका व्यव- हैं। इन मन्दिगेकी देखभाल करनेके लिये एक हार करते हैं। ये धूम्रपान करते हैं, परन्तु जटा- | महंथ रहता था। आगे ये महंथ दुराचारी होने धारी ऐसा नहीं करते। नीले रंग की पगड़ी के लगे और सिक्ख-भक्तोंको कष्ट पहुँचाने लगे। इस नीचे पीले रंगकी पगडी बाँधते हैं। पर सन् १९१६-२०ई० में गुरुद्वारा प्रबंधक कमिटी श्रकालियों में लड़ने का सामर्थ्य होने के कारण की स्थापना हुई। इस कमिटीके जो स्वयंसेवक उन्हें 'निहंग' अर्थात् बेफिक्र कहते हैं। सिक्ख हैं, उनकी गणनो “अकाली" पंथमें की जाती इतिहासमै इन्होंने बड़े-बड़े काम किये हैं। सन् है। आजकल अकाली लाखोंकी संख्या हैं। गुरु- १८१८ ई० में मुलतानके घेरे में इन्होंने बड़ी बहा. द्वारा प्रबंधक कमिटीने गुरुद्वारोको अपने अधिकार दुरी से किलेका बाहरी हिस्सा कबजे में कर लिया में कर लिया है। महंथोंके हाथसे गुरुद्वारा अपने और किला लगभग ले लिया था। फूलसिंहके कबजे में लेते समय रक्तपातभी हुआ था । सन् चरित्रसे इनके गुण तथा दोषोंका अच्छी तरह १९२३ ई. में जब नामाके राजा रिपुदमनसिंह पता लगेगा। सन् १८०६ ई० में जब अमृतसरमें गद्दी से अलग कर दिये गये तो इन लोगो की यह मेटकाफ पर हमला हुश्रा उस समय फूलसिंह | प्रबल धारणा होगई कि इनके साथ सरकार ने पहले-पहल इस हमले का नेता प्रसिद्ध हुश्रा। घोर अन्याय किया, और इन लोगोंने नाभामें पश्चात् रणजीतसिंहने उसे सिंधकी घाटियों का जाकर सत्याग्रह प्रारम्भ कर दिया । धीरे धीरे मुख्य अधिकारी नियुक्त किया। वहाँ उसने ' इनके इस सविनय-शासन-भंग के आन्दोलन की मुसलमानी प्रजाको बहुत कर दिये। बादमें वह धूम सारे देशमै मच गई । कांग्रेस का इस काश्मीर, भेजा गया। रणजीतसिंह फूलसिंहसे शान्दोलनमें पूरा-पूरा सहयोगथा। इस श्रान्दोलनमें हमेशा डरता था। सन् १८२३ ई०में तेहरीके युद्ध कांग्रेस की तो बहुत कुछ आर्थिक हानि हुई ही, में फूलसिंह तथा उसके अकाली अनुयायियोंने साथमै अकालियोको भी इससे बड़ा भारी धक्का रणजीतसिंहकी ओरसे लड़कर यूसुफजईको लगा। यद्यपि किसी हदतक अकालियोंको सफलता हराया। परन्तु इस लड़ाई में अपनी वीरता दिखाते | अवश्य प्राप्त हुई किन्तु इस आन्दोलनसे जितनी हुए फूलसिंह खेत भाया। नौशहरकी उसकी ! हानि तथा कष्ट इन्हें उठाने पड़े उनको विचारते समाधि इस समय हिन्दू-मुसलमानौका तीर्थ- हुए सफलता बहुत कम अंशमै प्राप्त हुई। स्थान हो गया है। फूलसिंह के नेतृत्वमें अथवा अकिमिनियन-यह अकिमेनिड अथवाहखा- उससे भी पहले अकाली अपने शत्रुओं और मित्रों | मनी नामक एक प्राचीन इरानी राजघराना है। के लिये समान रूपसे कष्टदायी होगये थे । सिक्ख इस घरानेने ईसाके पूर्व ५५८से लेकर सन् ३३०ई० राजा उनसे बहुत डरते थे; क्योंकि अकालियों ने तक ईरानपर शासन कियाथा। इस घरानेके शासन अनेक बार उनसे जबदस्ती धन छीन लिया था। का इतिहास आगे 'ईरान के अंतर्गत दिया गया सन् १८२३ ई० में स्वयं रणजीतसिंहने उनकी शक्ति है। इस राजघराने के उपासना-मार्गका महत्व विशेष कम करनेका प्रयत्न किया और इस कारण इस है, इस कारण उसके धार्मिक अंगोंकी विवेचना पंथका महत्व कुछ घट गया । विस्तारपूर्वक करेंगे। अमृतसरमै अकालियों की गद्दी अकाल बॅग इन राजाओंकी धार्मिक कल्पनाश्रोके सम्बंध के नामसे प्रसिद्ध थी। उस स्थानमें अकाली में थोड़ी बहुत जानकारी यूनानी उच्चतम साहित्य धार्मिक विधियोंका पाठ लेते और गुरुमाताका मैं; वाबिलोनी, मिसरी, और यूनानी प्राचीन आवाहन किया करते थे। वे समझते थे कि अंकित लेखोंमें, इन राजाओंकी प्राचीन इरानी खालसाका नेतृत्व हमारी ओर है। रणजीतसिंहके भाषामें; बाबिलोनी तथा नूतन एलामी अनुवादमें समयसे उनको सची गद्दी आनंदपुरमें है, परन्तु तथा खयं उन्हींके अंकित लेखोंमें मिलती है। यह कहा जा सकता है, कि उनकी शकि बहुत ही इस घरानेके जिन राजाओंके सम्बन्धमै यहाँ घट गई थी। विचार करना है, वे सायरस, कंबायसिस. पहला