पृष्ठ:ज्ञानकोश भाग 1.pdf/२४२

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अनन्तपद ज्ञानकोष (अ) २१६ अनन्तपूर ज़िला के मतानुसार ( Symphyala ) सिमझायला के पास होता है । इन नलिकाओको माल्पिधीयन और ( Ponrapoda) पोरोपोडा ऐसे दो भाग नलिका ( Maipighian Tute ) कहते हैं । और भी किये जाते हैं। इस वर्ग में ( Scholope-! इनकी संख्या कम ज्यादा हुत्रा करती है । ndra ) स्कोलोपेण्डा गोजर विषयुक्त अनन्तपद पचनेन्दियकी नलिका शरीर एक कोनेसे दुसरे इत्यादि जन्तु कह सकते हैं। कोने तक सीधी फैली रहती है। इसमें दो लाल गोजर-प्रायः इसे सब लोग जानते हैं। इसका ! पिण्ड देख पड़ते हैं। वे उसके मुख-क्रोडमें रङ्ग काले और लालका संमिश्रण होता है। ये वर्षा खुलते हैं । ऋतु अथवा ग्रीष्म ऋतुके अन्तमें निकलते हैं। उपरोक्त गोजर शत पदकी ही श्रेणी में आते गंदे स्थानों पुराने पत्थरों इत्यादिके नीचे तो यह हैं। उस वर्गके जन्तु चपटे होते हैं, और उनके मिलते ही है, बहुधा जमीन खोदनेपर भी यह शरीरके प्रत्येक बलयमै एक एक पैरकी जोड़ी पाये जाते हैं । जाड़ेके मौसिममै अपनेको यह भूमि रहती है। सबसे पहले कवन्ध पर एक विषष्ट्र में गाड़ लेता है । यह अत्यन्त चपल होता है । नर की जोड़ी रहती हैं। अण्डे खाजाता है, इसी कारणसे मादा इनको युगल पाद-इस वर्गका दूसरा जन्तु युगलपाद ज़मीनके अन्दर गाड़कर रखती है। ( Diplopoda ) हैं। इस श्रेणीके जीव पहले यदि किसी गोजर को लेकर ध्यानपूर्वक देखें। वालोकी अपेक्षा बहुत कुछ गोल होते हैं। कवन्ध तो पहले उसका शीर्ष तदनन्तर उसका वलययुक्त के चौथे वलयसे भागे प्रत्येक वलयमें पैराकी दो कबन्ध देख पड़ेगा। कबन्धके ऊपरी भागमै तो दो जोड़ियाँ रहती हैं । इस श्रेणिको विष दंष्ट्र नहीं बिल्कुल छोटे छोटे वलय होते हैं, तदनन्तर कबन्ध होते। जननेन्द्रिय के स्रोतस कबन्धके तीसरे वलय के पन्द्रह अथवा सोलह स्पष्ट वलय देख पड़ते हैं। पर खुलते हैं । सोंगभी इनके छोटे छोटे होते हैं । पूना, जेजुरी, बिहार, बङ्गाल इत्यादि प्रान्तों में इनके पाश्ोष्टकी एकही जोड़ी होती है और वहीं यह बड़े बड़े दृष्टिगोचर होते हैं। कभी कभी बलय | सच्चे दंष्ट्र होते हैं। पहले और दूसरे कबंधके वलय का रङ्ग भिन्न भिन्न देख पड़ता है। यदि एक वलय । परभी एक एक जोड़ी होती है। कबन्धके तीसरे पोला हुआ तो दूसरा काला होता है। इसी भाँति | वलयमें पैर नहीं होते। वाणी इस वर्गका मुख्य क्रमसे वलय का रङ्ग होता है । शीर्ष पर लम्बे लम्बे उदाहरण है। वर्षारम्भमें ये झुण्डके भुण्ड देख नोकीले सींगके समान होते हैं इन सींगोके पड़ते हैं। बनस्पति भक्षक ये हाते हैं और वृक्षों पास ही नेत्र होते हैं । यदि इसको उलट कर को इनसे हानि पहुँचती है। इनको स्पर्श करनेसे देखा जाये तो इसके मुखकी ओर घूमी हुई ये अपना शरीर सिकोड़ कर पड़े रहते हैं। शरीर तीक्ष्ण दंष्ट्रोंके समान एक जोड़ी देख पड़ती है। के पृष्ठासे ये घृणित पदार्थ बाहर डालते रहते हैं। यह प्रथमचरण की जोड़ी होती है और इसे विष अनंतपूर ज़िला-मद्रास प्रान्तका एक जिला । दंष्ट्रको जोड़ी भी कह सकते हैं। इस को चुभानेसे उ० अ० १३°४१ से १५°१४' और पू० रे ७६°४६ विषअन्दर प्रवेश करके भर जाता है। यदि यह जोडी से ७८°६' में यह स्थित है। इसका क्षेत्रफल उखाड़ कर अन्दर देखा जाय तो एक दूसरीही ६७२२ वर्ग मील है। इसके उत्तरमें बल्लारी और पार्थोष्ठकी जोड़ी देख पड़ेगी। यद्यपि ये साधा. कर्नूल जिले, पश्चिममें बल्लारी और मैसूर रियासत, रण चरणके हो समान होते हैं, तथापि इनमें कुछ दक्षिणमें मैसूर रियासत, और पूर्वमें कड़ापा अन्तर अवश्य होता है। कंबन्धके प्रत्येक बलयके जिला है। साथ एक एक चरणोंकी जोड़ी होती है। अनन्तपूर जिला मैसूर पठारके बिलकुल उत्तर उस जोडीको उखाड़ने पर भीतर की भोर की भोरका प्रदेश है। दक्षिणमें यह भाग २२०० बहुतसी बात-नलिकायें देख पड़ती हैं। शरीरके फोट ऊंचाईपर और उत्तरमें गुत्तीको ओर १००० प्रत्येक अन्तर्भागको इन्हींसे वायु पहुँचती हैं। फीट ऊंचा है। पूर्वकी तरफका प्रदेश पहाड़ी और इन्हींके संयोगसे गोजरको श्वांस क्रिया चलती समथल है। यह भाग गुत्तोताल केका पश्चिमोय भाग रहती है। छोड़कर शेष जिला उजाड़ और जङ्गल रहित है। हृदय भी नलिकारूप ही होता है। इसकी | जमीन लाल रङ्गको ऊंची नीची है। दक्षिणको लम्बो नलिका पृष्ट भाग पर रहती है। मल मूत्र ओर का पेनकोंडा तालुका बहुत कुछ पहाड़ी है त्याग करनेके लियेभी नलिकाओंका एक अन्य और खेती करने के योग्य नहीं है । उपरोक समतल समूह रहता है। ये नलिकाओं का मुंह गुदा द्वार ! भागको मट्टी कालो हैं और कपासको खेतोके यांग्य 1 i