पृष्ठ:ज्ञानकोश भाग 1.pdf/२१४

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अदाना ज्ञानकोश (अ) १६१. अदिचनल्लुर शह देकर हरिपंत तांतियाको एक प्रकारके उल- स्थान है । यहाँ खलीफा हाँरूरशीदके समय की झनमें ही डाल दिया और यह देखने लगा कि वे बहुत सी पुरानी इमारतें तथा खंडहर विद्यमान इस उलझनको किस प्रकार सुलभाते हैं, अकेली हैं। किसी समयमें यह रोमनों का महत्वपूर्ण फौज लेकर यदि उस पार जाय तो कुछ फौज इसी सैनिक केन्द्र था। यहाँ खनिज पदार्थ बहुत होते पार रहनेके कारण नदी में बाढ़ आने पर काम है। वहाँ की सड़कों पर स्थान स्थान पर झरने करते न बनेगा और अंतमें अनाज तथा चारा बने हुए हैं जिनमें नदीसे पानी लाया गया है पानी नहीं पहुँचेगा। यदि उस पार न जायँतो पन्द्रह मेहराव का एक शानदार पुल है। जाड़ेमें अवनी शत्रुओंके सामने किस प्रकार ठहर सकता यहां की आंबहवा उत्तम तथा स्वास्थ्यकर है है । नरगुन्दका अनुभव ताँतियाको था ही। इन किन्तु ग्रीष्मऋतुमें बड़ी भीषण गरमी पड़ती है । सब अड़चनोंका विचार करके उन्होने अप्पा बल- यहां की आधुनिक जनसंख्या लगभग ३१००० है । वन्त रावको लिखा कि आप मुहब्बत जंगको बाल अदाबैज़ार-यह नगर एशिया माइनरमें बच्चों तथा सामानके साथ अदवनीसे निकाल कर कुरतुन्तुनियासे पूर्व के ओर जानेवाले सैनिक नदीमें बाढ़ आनेके पहलेही शीघ्रही इस पारले मार्गमै बसा हुआ है। यहाँ पर रेशम, अखरोट श्राइये। अप्पा बलवन्त रावने इसके अनुसार इत्यादि वस्तुओं का व्यापार बहुत होता है। किया। परन्तु अप्पा बलवन्त रावको लौटनेकी अदिकल-यह अम्बल निवासी जाति समूह जल्दीमें यह जानते हुए भी कि थाने शत्रु लेनेहोको | का एक वर्ग है। कहा जाता है कि ये असल्में हैं, अदधन की तट बंदी तोड़ना, तोपोंको नष्ट ब्राह्मण हैं परन्तु भद्रकालीके मन्दिरके पुजारी करना, फसल नष्ट करना. श्रादि वाते नहीं कर ! होनेके कारण मांस मदिरा का भोग लगाकर सके । वे शीघ्रतासे लौटे परन्तु इतने परभी | सेवन करनेसे ये भ्रष्ट समझे जाने लगे। वे यशो- तुंगभद्रा नदीमै सर तक पानी बढ़ही गया था। पवीत धारण करते हैं तथा क्षुद्र देवताओंके इस पार पूरी सेना उतरने भी न पाई थी कि पुजारी का काम करते हैं। विवाह तथा पैतृक दु-तरफा पानी बह निकला। सम्पत्ति इत्यादिमें इनके नियम मकत्तयम लोगो इस प्रकार अदवनीके कठिन प्रश्नसे छुट्टीपाने ! के ही समान हैं। इस दिन तक सूतक तथा वृद्धि पर दोनों सेनाएँ फिरसे एकत्रित होकर कनक मानते हैं। ये दस गायत्री मन्त्र भी जपते हैं। गिरी तक आई, वहाँ मुगल अलीको बिदा कर इनकी स्त्रियाँ आदियम्मा कहलाती हैं । ये नम्बुद्धि के तदुब्बर जंगको साथ लेकर हरिपंत ताँतिया स्त्रियोंके समान वस्त्रालङ्कार व्यवहार करती हैं बहादुरबिंडाको छाये। इतनेमें जुलाईका महीना, किन्तु उनके समान बाहर निकलते समय न तो ये समाप्त हो गया। सहायताके लिये आई हुई सेना ताड़ का छाता लेती है न साथमै नायन अथवा नदीके पार पहुँचतेही टीपूने किले पर झंडा फहरा कुनबिन रखती हैं ( Castes and Tri be s ct दिया। परशुराम पंतको हरिपंतकी अदद्वनीको Indir.Census Report 1911-Travancore.) छोड़ कर आने की योजना ठीक न जान पड़ी! अदिचनल्लुर-मद्रास प्रान्त के तिन्नीवेली एक पत्रमें उनके इस प्रकार उद्भगार हैं कि अप- जिलेके श्रीवेंकटम ताल्लुके का यह रक गांव है। वनी छोड़ कर चले जाना ठीक नहीं था किन्तु यह उ० अ० ३८ यथा पूर्व देशा० ७७५० में भावी अवश्यही होगी । परन्तु ताँतियाकी अड़ स्थित है। यह श्रीवकटमसे ३ मील और पालम- चने क्या थीं ऊपर वताईही जा चुकी हैं। कोटाले १५ मीलकी दूरीपर बसा हुआ इस अवसर पर टीपूने अवनी किला लेलिया ताम्रपर्णीनदीके दक्षिण तटपर यह स्थित है। तथा जो टीपूका देश पहले निज़ामके पास थो १६8 ई० तथा १६०० ई० में संशोधन विभाग वहीं फिर मिल गया। तत्पश्चात् १८०० ई० मै बह के सुपरिन्टेण्डेन्ट रीय साहबने जो खोदाई का अंग्रेज़ोके हाथमें आगया। काम किया था उससे पता चलता है कि उस अदाना-( Adara) यह नगर एशिया समय तक दक्षिण भारतमें यह सबसे प्राचीन तथा माइनर के दक्षिण पूर्व किनारे पर स्थित है। इतिहास पूर्व कालीन (Pre-historic age) स्थान अदाना प्रान्त जो प्राचीन सिलिशिया (Cilicia ) रहा होगा। यहाँ पर ताम्रपर्णी नदीके तटपर एक के अन्तर्गत था उसकी यह राजधानी है। यह उ० भागमें बहुत से मृतकोंके अवशेष रखकर गाड़े हुए अ० ३७१ तथा पूर्व दे० ३५९ में स्थित है। वर्तन मिलते हैं। इस कारण सरकारने इस स्थान यह ऐतिहासिक तथा सैनिक दृष्टिसे बड़े महत्वका । के आसपास की १०० एकड़ जमीन संशोधनके -