पृष्ठ:ज्ञानकोश भाग 1.pdf/२१३

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अदवनी शहर अदधनी शहर ज्ञानकोश (अ) १६० बन्द करके अमीर उमरावसे संधिही करते हैं, वह अपनी सेना तथा मोगल अलीके साथ शीच सो उसीके अनुसार करिये। पैसे के विषयमै कुछ । ही अद्वनीमें जाकर टीपूका घेरा हटाये । पत्र न कहिये। आतेही ताँतियाने गजेन्द्र गढ़ विजय करनेके लिये (रा. खं. १९-५५-४०) ३ सेना अपने पास रख कर करीव ३ सेना जून कृष्णराको भेजे हुए (ज्येष्ठ व ॥१०-१७०२) को अवनीकी तरफ रवानाकी । उस सेनाके के पत्रमें अदवनी हवेली थानौके संबंध मुख्य सरदार अप्पा बलवंतराव थे और उनके उल्लेख है। श्राधीन बाजीपन्त अप्पा, रधुनाथ नीलकण्ठ पद- (रा. खं. १९-३६४-१०८) वर्धन तथा मुगल सेना सहित तहब्वर जंग सर- भाद्रपद व ॥२ शक सं० १७०२ । रामचंद्र दार नियुक्त किये गये थे । भागा नगरसे मुगल रिसवुडका नाना फरनवीसको भेजे हुए पत्रसे अली आये थे। उन्हें अप्पा बलवन्तने शामिल कर विदित होता है कि वसालत जंग अदवनीके लिया और अदवनीको ओर तेजीसे रवाना हो समीप ठहरा है और सब ठीक है (रा. खं, १५.२५. गये। उनके वहाँ पहुँचतेही टीपू घेरा उठा कर १८३) यद्यपि शक संवत् १७०% में मरहठोंने तीन कोस पीछे हटा । तारीख २२ जूनको तीनों अदवनीकी रक्षाकी, तथापि वे शक सं. १७०८ सरदार, अप्पा बलवन्त, बाजीपन्त तथा रघुनाथ (सन् १७८६ ई०) में वैसा न कर सके। उस राव पटवर्धन तैयार होकर टीपू पर चढ़ आये। समय टीपूने वह किला ले ही लिया। बालदेव- टीपूने सेनाके आगे हजार बारह सौ सवार रक्खे शास्त्री उसके संबंधमै इस प्रकार लिखते हैं। थे। मरहठोंने उन्हें मार भगाया और उसके सौ (ऐ. ले स. पृ०. ४०५३.५) डेढ़सौ घोड़े छीन लिये। इतनेमें टीपू सुलतान " बदामी पर कब्जा होनेके बाद हरिपंत पैदल सिपाही तथा तोपोंको लेकर शिविरसे तातिया मई महीनेके अन्तमें 'वहाँसे कूच करके निकला और गोले बरसाने लगा। सूर्यास्त तक गजेन्द्र गढ़ की ओर गये। पैदल सिपाहियोंकी दो युद्ध होता रहा और अंतमें मरहठोने टीपूका पीछा छोटी फ़ौज़ उस किलेका मोर्चा लेने के बाद टीपूके करते हुए शिवर तक हटा दिया। इतना युद्ध यहाँसे मदद के लिए पा रही थीं। किन्तु उन मरहठे हुआ तो भी मुगलोकी चालीस पचास हज़ार सेना सवारों ने उन्हें बीचहीमें रोक कर सबको खतम शिविरमेही बैठी युद्धका तमाशा देखती रही। कर दिया। उसके बाद किलेदारोने घोर पाड़ेके मराठोकी उसने तनिकभी सहायता नहीं की। मार्फत बातचीत करना श्रारम्भ किया। पाठ दिन अप्पा बलवन्तके निकल जाने पर दो दिनके तक वादा विवाद होनेके बाद किला स्वाधीन | वाद गजेन्द्र गढ़ हरिपंत ताँतियाके हाथमें श्रा होनेही को था कि इतने में यकायक यह खबर गया। फिर वे भी अवनीकी ओर गई हुई सेनाका आई कि टीपूने अद्वनीको घेर लिया है । पाठको पीछा करने के लिये वहाँसे निकल कर कवताल को पहले बताई हुई यह बात यादही होगी कि भानू तक गये। वे दिन अंतके थे तोभी ताँतिया अवनी राज्य निज़ाम अलीके भाई वसालत जंग विचारता था कि तुंगभद्राको उत्तरतट पर थोड़ी का था। वसालत जंग इस समय मर चुके थे सेना रख कर दूसरी ओर जाँय और दूसरी ओर और उनके पुत्र मुहब्बत जंग अपने बाल बच्चों के की सेनाके साथ टीपू पर चढ़ाई कर दें और उस साथ अदयनीमे थे। टीपूने उस किले पर घेरा | के देशमें उधम मचा दें। उस साल इस प्रतिमे डाल कर बहुत तंग किया। परन्तु मुहब्बत जंग मृग नक्षत्रकी वर्षा नहीं हुई थी। यदि भागे एक जी तोड़ कर लड़ा और शत्रुओके दो हमले रद्द दो नक्षत्र पानी न बरसता होता तो ताँतियाकी किये। मुहब्बत जंगने अपने चचा याने निज़ाम | योजना सफल होती और शायद चार मास तक अलीसे प्रार्थनाकी कि यदि वे मदद न करेंगे तो मुगल तथा मराठी सेनाओंकी छावनीभी उधरही वह बाल बच्चों सहित शत्रुके हाथमें पड़ जायेगा; हुई होती। परन्तु आर्द्रा नक्षत्रकी वर्षा जोरोसे इसलिये यदि अपने कुलकी आबरू बचानी हो तो होनेके कारण ताँतियाका दूसरी ओर जानेका अथवा कमसे कम अपने घरकी स्त्रियाँ टीपूके विवार एकही और रह गया और उसे इस बात हाथमें जानेसे बचानेके लिये तो सेना भेज कर की चिंता होने लगी कि जो दूसरी ओर अकेली सहायता करिये। निजाम अलीने तत्काल अपने फौज़ अवनीकी सहायताके लिये भेजी गई थी, छोटे भाई मुगल अलीके साथ पञ्चीस हज़ार फौज वह कहीं नदीमें बाढ़ आनेसे दूसरी ओरही न रह रवानाकी, और हरिपन्त तातियाको पत्र भेजा कि जाय । ऐसे झञ्झटके दिनों में टीपूने अद्वनीको