पृष्ठ:ज्ञानकोश भाग 1.pdf/२१२

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अदवनी शहर ज्ञानकोश (अ) १८६ अदवनी शहर जागीर स्वरूप दे डाला। १७६० ई० मे जब सदाशिव पर्यन्त सम्पूर्ण प्रदेश अपने हस्तगत करलिया। राव भाऊने निज़ाम पर चढ़ाईकी थी तो वसा- यह देश था तो निज़ाम ही का किन्तु हैदर उसे लतजङ्ग निज़ामकी सहायताके लिये गया था (बाबू जीत चुका था। इसकारण हैदर तथा निजाममें राव बुन्देलाका गोविन्दपन्तको भेजा हुआ पत्र २० भी मनमुटाव होने ही को था कि नाना फरनवीस मार्च १७६० ई०रा० सं० १६६-२७२)। १७०४ ई० में ने बीच में पड़ कर स्थिति सुधार ली। पेशवाओं तथा निजामका संग्राम प्रारम्भ होते ही शक सं० १७.१.२ में पेशवा का वकील ही वसालतजङ्गका लड़का नवाबकी सहायताके कृष्णुजी नारायण जोशी वहाँथा और वह मरहठों लिये युद्ध क्षेत्रमें आ डटा। राजा साहबको इस की ओरसे निज़ाम, हैदर, तथा श्रद्वनी वालेसे बातका पता लगते ही वह भी आ धमके ( चैत्रव बात चीत कर रहा था। पत्रोंके निम्नलिखित ॥ शके १५४५ का पत्र राख०१०,११८,७५) इस अवतरण नाना फरनवीसके इस कर्मको पत्रमें वसालतजङ्गको निज़ामका दामाद बताया स्पष्ट करेंगे। है। इ० गॅ० १६० में भाई कहा है। नाना कृषणाजी नारायण जोशी को मार्गशीर्ष इ० गॅव में लिखा हुआ है कि अदद्वनी किला शुक्ल ७ । १७०१ के पत्र में लिखते हैं कि रा गोविन्द जिस समय बसालतजंगके आधीन था। हैदरने नारायणके पत्रसे विदित हुआ कि नवाब हैदर उसपर तीन बार चढ़ाईकी परन्तु वह निष्फल अलीखाँ अवनी का घेरा उठाने वाले हैं। शीघ्र रहा। इस चढ़ाई का कारण क्या था तथा मराठो ही ऐसा काम किया जाय जिससे अदवनी का को ही इस चढ़ाईके निष्फल करनेका श्रेय क्यों घेरा शीघ्रही उठाले । ३५१८:१६ १९२० ख० १९,११,५ दिया जाता है, इस विषयमें यों कह सकते हैं कि नवाबने वकील को उत्तरमै लिखा था कि वह १७७६ ई० के लगभग अंग्रेजों के विरुद्ध मराठे, अदवनीका घेरा शोवही उठाकर अमिरुल उमराव निज़ाम तथा हैदरका संघ तय्यार हुश्रा । उस से संधि कर लेंगे । परन्तु अभी तक खटपट संघ निजामके मिलनेका कारण केवल श्रदवनी | खतम नहीं हुई। निज़ामअलो खाँ को यह लिखने सम्बन्धी कुछ झगड़ा ही था। पर कि अदवनी का घेरा उठा लिया जायगा १७७८ ई० में जब फ्रान्सीसियोंसे युद्ध होनेकी ! उन्होंने अदवनी को अधिकारमें करनेके लिये संभावना होने लगी तब अंग्रेजोने अर्काटके मुहः . फौज़ भेजी। रास्तेमै उससे तथा बहादुर की म्मदअली द्वारा अदवनोके नवाब वसालतजङ्गसे भोर की सेनासे झगड़ा न हो, इसलिये मार्ग व सन्धि कर डाली और निज़ामसे पूछा तक नहीं। ६शक सं०१७०१ को पत्र भेजा गया था। इस सन्धिके अनुसार नवाबने कुछ भाग अपने (रा. खं० १९-१९-१०) देशका अंग्रेजोको किराये पर देदिया और फ्रांसीसी कृष्णराव नारायण जोशी का पत्र (पौषवदी फौजको निकालने का वादा भी कर लिया। इस ११-१७.१) उस अवसर पर संधिके संबन्धमें सबके बदले अंग्ग्रेजोने अदवनीके किले को हैदरसे बोले कि राजा तथा निज़ाम अली खाँ बहादुरमें बचाते रहने का वचन दिया ( हैदर तथा टीपू मित्रता है परन्तु हम उनसे सहमत नहीं हैं। उन्हों. सुल्तानका चरित्र एल० बी० बावरिङ्गऑक्सफोर्ड ने अंग्रेजों की योजनामें आपसे बेइमानी की १८८३)। उस सन्धिके अनुसार शक स० १७०० ? (१७७६ ई०) में फ्रान्सीसी सरदार लाली घसालत (रा० ख० १९-४९-३०) जङ्गके यहाँ नौकर था। उसने नौकरी छोड़कर कृष्णरावजोशीको भेजे हुए नाना फरनवोसके पेशवाके पास जानेकी इच्छा परशुराम पर दर्शित पत्रमें लिखा है कि निज़ाम अलीखाँ बहादुर की किन्तु परशुराम भाऊने नौकर रखनेसे इन्कार लिखते हैं कि जबतक अद्वनीका हंगामा बन्द नहीं कर दिया। तब वह निज़ामके पास चला गया होगा तबतक हम लिकाकोल की ओर नहीं जायेंगे। (खरे० ए० एल० सं० पृ० ३४०१)। (रा० खं० १९-५८-३९) उपरोक्त सन्धिमें निज़ामकी अवहेलनाकी जाने माघ शु ॥३) के पत्रमें नानाफरनवीस के कारण निज़ाम चिढ़ गया और उसने उपरोक्त लिखते हैं कि नवाब वसालतजंगके वकील भट्टण षड्यन्त्रमें भाग लिया। अवनीके रक्षणके लिये में हैं । विदितहो कि उनसे नवाब वहादुर पचास जाते समय अँग्रेजोको हैदर अलोके प्रदेशमें होकर हजार होण (एक सिक्का) मांगते हैं। इसलिये जाना पड़ता था। इस कारणसे हैदर तथा जो बहादुरने नरसिंह रावको लिखा है कि राजा अंग्रेजों में युद्ध छिड़गया और हैदरने अवनी साहबको खुश करने के लिये भइवनी का हंगामा