पृष्ठ:ज्ञानकोश भाग 1.pdf/२०८

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। पॅथेन्स ज्ञानकोश (अ) १८६ अथेन्स पयोग किया है। अथर्व ४,३- सूक्त स्पष्टरूपसे को सम्भावना थी। यहाँकी श्रावहवा सम- हुतसे छोटे छोटे सूक्तों का बना है। गिल द्वारा शीतोष्ण है, किन्तु बहुत शीघ्र ही परिवर्तन-शील भी स सूक्तके ५-७ ऋचाकी जो टीका की गई है। उत्तरीय वायुके कारण तथा समुद्रतटसे उसको कौशिक सूत्रसे पुष्टि मिलती है और इस निकट होने के कारण यहाँ कभी तेज गरमी नहीं क्त के अंतस्थ प्रमाणसे यही वात सिद्ध होती है। पड़ती। इतिहासकारोका मत है कि यहाँकी दृचा १-४ में बृत विषयक अभिचार मंत्र है स्वच्छ तथा उत्तम आबहवा (मौसिम ) के कारण गौर कौशिकसूत्र ४१, १३ में अथर्वे ७,५८, तथा ही यहाँके लोग उत्साही तथा बुद्धिमान होते ५ १०६ के इसी प्रकार के दूसरे मन्त्रोंके साथ ! रहे हैं। सका विचार किया है। ऋचा ५-७ कौ० २१, अथेन्समें गोरा नामक प्रसिद्ध व्यापारकी १ मे एक जानवरके सम्बन्धमें अभिचार मन्त्र ! मण्डी थी। यह अपने व्यापार तथा भव्य इमा. कए गए हैं। ये अन्त की ऋचाय पहली ऋचाओं रतोंके लिये दूर दूर विख्यात था। ी अपेक्षा इतनी भिन्न मानी गयी हैं कि यहाँकी अकेडमी भी महत्वपूर्ण है। प्रसिद्ध नको भिन्न परिभाषिक नाम "कर्कीप्रवादाः” विद्वान् प्लेटो ( अफलातू) तथा अरिस्टोटल दया है। उसी प्रकार सूक्तकारौके ध्यानमें यह बात (अरस्तु ) इसमें अपनी शिक्षाका प्रचार किया पाई है कि सूक्त ७, ७४ बहुतसे विभिन्न सूक्तोका | करते थे। प्रयत्न करके यहाँ दो गुफाओंका भी ना है, कौशिक ३२, = में पहली दो ऋचामै | पता लगाया गया है जो अपोलो तथा निसर्ग प्रपचित' नामके घावों को मिटाने वाले तंत्रोंमें देवताका निवासस्थान था । अलम्पीयनका लाई हैं। तीसरी ऋचा कौ०३६, २५ को मत्सर मन्दिर श्रेथेन्सके संसार प्रसिद्ध स्थानामें रहा है। र करने वाला मन्त्र मानकर उचित स्थान दिया अथेन्सकी जनसंख्या इधर सौ वर्षों से या है और चौथी ऋचा कौ० १-३४ को भी उत्तरोत्तर बढ़ती जा रही है। यहाँको जनसंख्या सके अनुकूल ही स्थान दिया है। अथर्ववेद १८१४ ई० में लगभग ५०००, १८७० ई० में संस्करणकारोंमें इसप्रकार की विभिन्न स्वरूप की ! ४४५१०, सन् १८७६ में ६३३७४, चाय उपयुक्त स्थानमें एकत्र करने में किस बात में १८७२५१ और १८६६ ई० में १११४६ थी। । न्यूनता थी अर्थात् ठीक ठीक स्थान न देने का आजकल यहाँकी आबादी ३००७०१ के लगभग (रण पूर्णरूपसे अर्थशान न होना था अथवा कोई । है । १९१२ ई० में यहाँ दो विश्वविद्यालय स्थापित उरा ही कारण था, इसका निश्चिय करना कठिन किये गये। । इसी प्रकार अथर्वसूक्त ७७६ के कौशिक तथा इधर यहाँके व्यापारकी दशा फिर बहुत कुछ न दोनों ही सूत्रोंके तीन तीन भाग किये सुधर गई है। पिरियसमें कपड़ेकी आठ मिले । निस्सन्देह उपरोक्त सम्पूर्ण उदाहरणोंमें १५ मापसे चलनेवाली पाटेकी कले और अनेक हेता की परम्परा की अपेक्षा विधि तथा श्राचार साबुनके कारखाने हैं। जहाज़ बनानेका काम 'परम्परा श्रेष्ट मानी गई है। यहाँ बड़े भारी पैमानेमें होता है। [ अथर्ववेदके सम्बन्धके श्राधार ग्रंथ तथा वाङ्मय इतिहास–प्राचीन अथेन्सके प्रारम्भिक इति- जग ग्रंथके अन्त में दिया है। हासके सम्बन्धमे पूर्णर पसे विश्वासनीय ज्ञान अथेन्स-यह यूनान ( Greece ) की उपलब्ध नहीं है । अनेक दन्त कथाओं तथा परम्प धुनिक राजधानी है। यह नगर पाटिका रागत झानसे कहा जा सकता है कि 'अयोनियन' ittica ) के मैदानके दक्षिणी किनारे पर बसा लोगोने अथेन्समें श्राकर भिन्न भिन्न जातियोंका या है। यह प्राचीन सभ्यताका केन्द्र माना संघटन करके राजसत्ताकी स्थापनाकी थी। किन्तु जा है और इसके प्राचीन तथा आधुनिक इस राजतन्त्रका शीघ्रही अन्त होगया और प्रजा- हास पर इसकी भौगोलिक स्थितिका बहुत तन्त्रका अस्तित्व देख पड़ने लगा। किन्तु पेसि- छ प्रभाव पड़ता रहा है। यहाँकी श्रावहवा स्ट्रेटसके नेतृत्वमें एक बार फिर एकतन्त्र राज्य म होनेके कारण यह नगर सदा सम्पन्न रहा पद्धति चमक उठी। किन्तु क्लिस्थनीज़ने शीघ्र ही इस नगरकी रचना ऐसी है कि न तो खुश्की । इसको जड़से उखाड़ कर फेंकनेका बीड़ा उठाया, से कोई शत्रु इसपर एकाएक आक्रमण कर और अपने बुद्धिकौशलसे इसको समूल नाश उता था और समुद्रसे भी कुछ दूर होनेके करके प्रजातन्त्रात्मक राज्यकी नींव फिरसे डाली। रण न उस ओरसे ही किसी श्राकस्मिक भय, खतन्त्र तथा उत्साहपूर्ण वायुमण्डलमें बढ़ते