पृष्ठ:ज्ञानकोश भाग 1.pdf/१७२

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अथर्ववेद, अथर्व वेद ४,१२ अथर्ववेद ज्ञानकोष (अ) १५६ यद्यपि यह सत्य है कि अथर्ववेद संहिताकी और उनके विषयमै अद्भुत विचार पुराने हिन्दू उपलब्ध प्रति ऋग्वेद संहिताके बादकी है किंतु लोगोंके अथर्ववेदले मिलते जुलते हैं। इसलिये इससे यह प्रकट नहीं होता कि इस संहिताके सब : अथर्ववेदकी बहुतसी ऋचाओंके विषय. अमेरि- सूक्त ऋग्वेद सूक्तोंके बादके हैं। केवल इतना ही कन इंडियनोंके वैद्यों अथवा तातारी शामनों और कहा जा सकता कि अथर्ववेदके सबसे अंतिम : अति प्राचीन जर्मन काब्यावशेषोंमें मिलनेवाले सूक्त ऋग्वेदके सबले अंतिम सूक्तोंके पश्चात् रचे : मर्सबर्ग मंत्रोके विषयोंसे बहुत कुछ मिलते जुलते गये हैं। जिस तरह अथर्ववेदके बहुतसे मुक्त हैं। मसेंवर्ग मंत्र संग्रहमें एक मन्त्र है। वोडन अधिकांश ऋग्वेद सूक्तोके बाद के हैं उसी तरह नामक मान्त्रिकने बाल्डरके बछड़ेके मोच खाये यह भी निश्चित है कि अथर्ववेदकी अभिचार हुए पैरको निम्नलिखित मन्त्रसे ठीक कर दिया-- ऋचाएँ ऋग्वेदकी यज्ञ संबंधी ऋचाओंसे पुरानी . “हड्डीके साथ हड्डी, रक्त के साथ रक्त, अवयवों के भले ही न हो, पर एक ही समयकी अवश्य हैं। साथ अवयव मिलानेसे एक जीव हो (परस्पर अथर्ववेदके बहुतसे सूक्त ऋग्वेदके पुरानेसे पुराने मिल) जाय।" ठीक इसी आशयका एक मन्त्र सूक्तोंकी तरह प्राचीन और उसी अज्ञात प्राक्-अथर्ववेद (४. १२) में पैर टूटनेके इलाज के इतिहास कालके हैं । 'अथर्ववेदकाल' कोई निश्चित सञ्बंध है । काल नहीं है। ऋग्वेद संहिताकी तरह अथर्व सं ते मजा मज्ज्ञा भवतु समु ते परुषा परुः वेदकके कुछ सूक्तोंके रचना कालमें कई शताब्दियों लं ते मांसस्य विस्त्रस्तं समस्थ्यपि रोहतु ॥ ३ ॥ का अंतर है। इसीलिये अधिकसे अधिक यह । मजा मज्शा संघीयता चर्मणा चर्म रोहतु । कहा जा सकता है कि अथर्ववेदके अंतिम सूक्तों असृक ते अस्थि रोहतु मांस मासेन रोहतु ॥४॥ को रचना ऋग्वेद सूक्तोंके आधार पर हुई है। लोम लोना संकल्पया त्वचा संकल्पया त्वचम् । डॉ० औल्डनवर्गका मत है कि--भारतवर्ष के असृक ते अस्थि रोहतु च्छिन्नं संयोषधे ॥५॥ अथर्ववेदके अति प्राचीन अभिचार गद्यमय थे और पद्यात्मक ऋचा और सूक्तोको रचना ऋग्वेद तेरे शरीर की मजायें इन टूटी हुई मजाऔं के यज्ञसंबंधी सूक्तोंके आधार पर हुई है।" पर से और अवयव इन टूटे ( भन्न ) शवयोंसे जुड़ डॉ. विटरनिट्ज इसे गलत कहते हैं। ऋग्वेदके जायँ । शरीर का नष्ट हुअा मांस और टूटी हड्डो विषय और कल्पनाएँ अथर्ववेदसे एक दम भिन्न : फिर बढ़ जाय ॥ ३॥ हैं। ऋग्वेदकी और अथर्ववेदकी रचना भिन्न मजा में मजा मिल जाय ! फटा हुआ चमड़ा हैं। एकमें (ऋग्वेद ) पंचमहाभूतात्मक बड़े बड़े : फिर जुड़ जाय तेरे शरीरका नष्ट हुआ रक्त और देवता हैं, गायक उनकी स्तुति और प्रशंसा करते टूटी हुई हड्डी फिर पैदा हो और मांस बढ़े हैं- उनकी प्रसन्नताके लिये यज्ञ करते हैं। देवता (श्रा जाय)॥४॥ बहुत बलवान है विपत्ति के समय दौड़कर सहा. हे वनस्पति, नष्ट (गायब) हुए केश (वाल) यता करनेवाले हैं, उदारचित्तवाले हैं और अधि- तेरे कारण यावे, चमड़ा जुड़ जाय, रक और हड्डी कतर आनंद और प्रकाश देनेवाले हैं। (अथर्व- बढ़े, इस प्रकार धाव (जख्म ) ठीक होजाय ॥५॥ वेद ) दूसरेमें मनुष्य जातिको आपत्ति में फंसाने अथर्व वेदका विशेष महत्व बढ़ाने वाले वाली शक्तियाँ और भय पैदा करनेवाले पिशाच कारण निम्नलिखित हैं। यज्ञ-यागादिक और (भूत प्रेत ) श्रादि पर उग्न मंत्र छोड़नेवाले या तत्वज्ञान सम्बन्धी विचारोंसे दूर रह कर केवल उनकी मिथ्या प्रशंसा करके उनको शांत करनेवाले भूत, प्रेत, राक्षस आदिमें विश्वास करने वाले मांत्रिक दिखायी देते हैं। इस वेदमें वर्णित बहुत मनुष्योंके कैसे कैसे पृथक पृथक मत हैं इसको से सूक्त और उनके प्रयोगकी विधियाँ उन कल्प- जानने के लिये अथर्ववेद एक अमूल्य साधन है । नाओंकी कक्षा में आती हैं जो कल्पनाएँ पृथ्वीकी : अथर्ववेदके भिन्न-भिन्न सूत्रीको ध्यान पूर्वक पढ़ने एकदम भिन्न संस्कृत रखनेवाली जातियों में प्रच पर दिखाई देगा कि मानव जातिके ज्ञानविकासके लित हैं और उनमें एक विलक्षण सादृश्यता इतिहासको जानने की इच्छा रखनेवाले पंडितोंको दिखाई देती है। उत्तर अमेरिकाके पूर्व निवासी अथर्ववेदका ज्ञान प्राप्त करना कितना आवश्यक है। अफ्रीकाके नीग्रो. मलायाके निवासी, मध्य एशिया भैषज्य-सूक्त---अथर्ववेदका एक महत्वपूर्ण के मंगोल पुराने ग्रीक और रोमन आदि लोगोंकी विभाग उन मतोंका हैं जिनमें रोगोंको करनेका जारण-मारण संबंधी कल्पना तथा मन्त्र तंत्र उल्लेख है। इन्हें भषय सूक्त कहते हैं। रोगीका .