पृष्ठ:ज्ञानकोश भाग 1.pdf/१७

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यह 1 बैठ गया। गंजन था । अकबर ज्ञानकोश (अ)७ तथा पुनयिवाह करनेकी आशा दे दी। उसने यह कर वसूल करने की व्यवस्था ठीक रखकर, किफा- कानून बनाया कि कोई किसी स्त्रीको जबरदस्ती यत के साथ खर्च करना-श्रादि बातोंको ध्यानमें सती होने के लिये बाध्य न करे। रखकर अकबर अपने काम करता था।" अकबर अकबर मित्र बनाने में बड़ा कुशल था । यद्यपि भली भांति जानता था कि हिन्दुस्तानमै राज्य वह बहुत पढ़ा लिखा नहीं था. तथापि बड़े बड़े | करना हो, तो वहां के राजाओं के साथ मित्रता विद्वानोंसे कुशलताके साथ भाषण करता था। करना आवश्यक है। इस कारण धर्म तथा साथही परिमित ज्ञान होनेके कारण किसी बातपर | राज्य प्रबंधके संबंध में लोगों के साथ दयालुता का उसका विश्वास शीघ्रही वैठ जाता था। कभी-कभी व्यवहार करनेका उसने निश्चय किया। उसके वह किसी बातपर बिना पूर्ण रूपसे विचार किये ही शासनकालके पूर्वार्धमें उसका व्यवहार कट्टर उस काममें हाथ डाल देता था। पहले खलीफा मुसलमानके समान था, परन्तु उत्तराध-जबसे मंचपन खडे होकर उपदेश किया करते थे। उसका और अबुलफज़लका साथ हुआ-उसने सोच कर कि हम भी उसी प्रकार करें अकवर | विधर्मियोंकोसाथ प्रेम और दयाका व्यवहार करना फतेहपुर सीकरीमें उपदेश देने के लिये खड़ा हुश्रा, प्रारम्भ किया। छोटी-छोटी बातोंके लिये भी परन्तु कुछ भी बोल न सका और चुपचाप उसने सूक्ष्म नियम बना रक्खे थे। हाथियों को ठीक प्रकारसे चाग आदि मिलता है या नहीं, शासन-शैली-अकबर में सबसे बड़ा गुण प्रजा यह देखनेके लिये उसने हाथियोके तेरह विभाग वह हमेशा चाहा करता था, कि | किये थे। अकबर किसी भी विषयका पहले वर्गी- लोगोंको अनि शीघ्र न्याय प्राप्त हो। जिस शहरमें करण करके पीछे उसकी व्यवस्था करनेका श्रादी यह रहता था, उस शहर के सभी मुकदमों का वह था। विभिन्न राजघरानों से वैवाहिक सम्बन्ध स्वयं निर्णय करता था। सामान्य दर्जेके लोगोंके जोड़कर उनसे पहुँचने वाली हानिको उसने साथ वह समानताका व्यवहार करता था। परन्तु बिलकुल ही मिटा दिया। उसे मालूम हुआ, कि सरदार तथा यड़े लोगोंपर उसका कटाक्ष रहता हिन्दू तथा मुसलमानोंका रक्त-मिश्रण होनेसे बहुत था। वह किसीके कहने में नहीं पाता था। उसके लाभ होगा। परन्तु इस बातको सर्व-साधारण में स्वभावमै मृदुना और कठोरताका विलक्षण | प्रचलित करनेमें इस्लाम धर्म बाधक होता था । संमिश्रण हुआ था। फिर भी हम उसे दयालु और इसलिये उसने अपने धार्मिक विश्वास में मिलनसार कह सकते हैं। परिवर्तन किया.। राजपूतोंके साथ उसके युद्ध अकबर बलवान तथा, निशाना मारनेमें बहुत | करनेका मुख्य कारण राज्यका विस्तार करना नहीं, ही कुशल था। 'संग्राम' नामक उसकी एक प्यारी था वरन् उनसे मित्रता स्थापित करना था। उसे उस बन्दूकसे उसने हजारों मनुष्यो राजपूतोंकी सहायता मिली थी, इसी कारण को यमलोक पहुँचाया था । व्यवहार की बहुतसी अफ़ग़ान और मुग़ल उसके सामने सरन उठा सके। बाते वह स्वयं करना जानता था। तोप छोड़ने तथा बंदुक बनाने के कामों की देखभाल वह स्वयं अकबरका महत्वपूर्ण कार्य यह था कि उसने करता था। दंगल, कसरत, जानवरोंकी लड़ाई | सारे उत्तर भारतको पूर्ण रूपसे अपने अधिकारमें श्रादिके देखने का उसे बड़ा शौक था। पोलो खेलना कर लिया और उसका सुन्दर बन्दोबस्त कर वह खूब पसन्द करता था। उसकी पाचनशक्ति | दिया। उसके राज्यके १६ मुख्य सूवी में १ भी बड़ी अच्छी थी। उसे फलौका भी शौक था। कावुल, २ लाहौर, ३ मुलतान, ४ सिंध, ५ गुजरात उसने अनेक प्रकारके फलोंके पेड़ दूर-दूरके देशों ६ मालवा, ७ अजमेर, ८ दिल्ली, ६ आगरा, १० से मँगवाकर हिन्दुस्तानमें लगवाये । उसे सुगन्धि इलाहावाद, ११ अयोध्या, १२ विहार,१३ बंगाल से बहुत प्रेम था। किसी किसी अवसर पर उसने | १४ बरार, १५ खानदेश और १६अहमदनगर थे। क्रूरता के व्यवहार भी किये। (उड़ीसा और काश्मीर बादमें हुए) सन् १५६६ ईमें अबुलफ़ज़ल ने अकबर की राजनीतिका वर्णन अकबरके राज्यके बारह सूबे थे और उनमें १०५ किया है। वह कहता है, कि "लोगोंकी चाल-ढाल 'सरकार' थे। उनसे करोड़ रुपयेकी आमदनी सुधारना, खेतीकी उन्नति करना, सेना तथा थी। वही धीरे-धीरे बढ़ते-बढ़ते १४ करोड़ रुपये राज्यके अनेक अंगोंकी उत्तम व्यवस्था करना, | तक हो गयी। पीछे वह अधिकसे अधिक १७॥ उपर्युक्त कार्य करते समय लोगोंको प्रसन्न रखना, | करोड़से आगे न बढ़ सकी। प्रत्येक सूबेमें एक वन्दुक थी।