पृष्ठ:ज्ञानकोश भाग 1.pdf/१६३

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अतिसार ज्ञानकोश (अ) १५० अतीत देनी चाहिये। पेट फूलना भारीपन, शल, और गुदाभ्रन्श और कराहनेकी वेदनाओमें पिछावस्ती सर्दी श्रादि विकार हो और पखाना थोड़ा थोड़ा के साथ देना चाहिये । होता हो तो स्तंभक औषधि न देकर रेचक हरै कफक्षीण अतिसार बहुत दिनों तक रहनेसे देनी चाहिये। गुदा असक्त हो जाता है जिससे वायु प्रवल हो जिनका रोग मध्यम अवस्थाको पहुँच चुका जाता है और एकाएक रोगीको मार डालता है। हो उन्हें लंधन करना चाहिये, और अजवाइन, इस लिये शीघ्र ही उसका शमन करना चाहिये। पीपल, सोंठ, धनिया, और हरेकी बुकनीका काढ़ा 'चायुके बाद पित्त और पित्त के बाद कफ जीतना पीना चाहिये। चाहिये अथवा तीनों में जो प्रबल हो प्रथम उसका अतिसारके आरम्भके अयथा मामूली रोगी , शमन करना चाहिये। भय और कोपसे भी वायु को उपास ( लंघन ) ही लाभदायक है । भोजनका कुपित हो जाता है इस लिये भयातिसार तथा योग्य समय आते ही यदि रोगी भूखसे कुछ व्या- शोकातिसार पर बातनाशक चिकित्सा करनी कुल हो जाय तो उसे हलका भोजन प्रमाणमै ही चाहिये। रोगीको जिससे समाधान और आनंद खिलाना चाहिये। ऐसा करनेसे उसकी रुचि अन्न हो वैसे उपाय करना चाहिये । पर शीघ्र ही बढ़ती है, जठराग्नि भी प्रदीप्त होता है जिसे मलत्यागसे स्वतन्त्र भी पेशाव होने लगे और शक्ति भी आती है। वायु मूत्रत्याग तथा वातासरण होने लगे तथा भोजनके पश्चात् पीने के लिये मटा, कांजी (ईख : अग्नि प्रदीप्त तथा पेट हलका हो गया हो ऐसे के रससे तय्यार होती है) द्राक्षासव इत्यादिको रोगी स्वस्थप्रद ही समझना चाहिये। स्वभावके अनुकूल योजना करनी चाहिये। उपवास वमन, नींद, मांड, पुराने चावलका पित्तजन्य आमातिसारके आरंभमें भी पूर्व भात, खरगोश अथवा मृग मांसका रस वकरीका ही की भांति लंघन चिकित्सा करनी चाहिये। घी, दूध, दही, मा. शहद, जामुन, अनार, लंधन करते समय प्शस लगे तो किराईत जायफल, अफीम, जीरा इत्यादि पदार्थ अतिसार और उपलसरीके सहित गरमपानी पीना चाहिये। में लाभदायक भूख लगे तो शतावरी, चिरना, रानभूग और उड़द सेकना, रक्तस्राव, पानी पीना, स्नान, मैथुन, से सिद्ध किया हुआ अग्निदीपक पेयादि लाभ. ' चनेकी घुधनी पराँठा इत्यादि, धीमै तली अथवा दायक होता है । इतने परभी अतिसार बन्द न हो बधारी हुई वस्तु अथवा स्वभाव विरुद्ध अन्न, जिस तो इन्द्रजव, कुब्याकी छाल, और अति विवको अन्नकी आदत न हो उसे खाना, द्राक्ष, लहसुन, कुचलकर चांदलके धोवनमें शहत मिला कर ! गिरी, साग, खट्टा और नमकीन रस इत्यादि खाना चाहिये। पदार्थ अतिसारमें हानि करता है। पित्तातिसारमें पित्तज पदार्थ खानेसे खून नाभिके दो अंगुल नीचे अर्धचन्द्राकार दागने गिरने लगता है और गुदापक्क हो जाता है। इसमें से अतिसार अच्छा हो जाता है। शंखोदर रस, मोचरस, उपलसरी, मुलेठी और लोनको बकरी अगस्ति सुतराज, कुंकुम वदी इत्यादि योगरत्ना- के दृध, शहत और चीनीके साथ मिला कर पीना। करमैं बताई हुई दवाइयाँ अतिसारके लिये चाहिये। उसी दूधके साथ भात खाना चाहिये; गुणकारी हैं। और कपासकी तहें उस दूधमें भिगोकर गुदाद्वार अतीत–सतारा जिले में यह एक गाँव है । पर रखना चाहिये। शतावरीके जड़ोंकी छालको १७३० ई० में जब रामचन्द्र पण्डित श्रामायको दुध मिलाकर पीना चाहिये। अन्न नहीं खाना यह दिया गया था उसमें इस मौजेका उल्लेख चाहिये। केवल दूधही पीना चाहिये। जिससे आया है (ता० तारगाव-तर्फ हरेचरी) (रा. खं.. रक्तातिसार शीघ्र अच्छा होता है। १२२.२५१)। शक १६१८ के कार्तिक मास में सेना.. जिसे पेटमें के साथ बार बार थोड़ा थोड़ा पति घनाजी जाधवने अतीत इत्यादि गावोसे देश दस्तके साथ खून गिरता है और वायुका अवरोध मुखीका झगड़ा तोड़ दिया था। होने के कारण वह कष्ट से निकलता है अथवा कमी अतीत-इस जाति के लोग कच्छ प्रदेशमें कभी निकलता भी नहीं उसे पिछावस्ती देना भिन्न भिन्न नामोंसे युकारे जाते हैं। इस जाति में चाहिये। शिसवा और सफेद कांचनका पत्ता अनेक उप-जातियाँ है:-(१) गिर, (२) पर्वत, कुचल कर और यव मिलाकर काढ़ा बनाना (३) सागा, (१) पुरी, (५) भारती, (६)वन चाहिये। उसमें तूप और दूध डाल कर आम, (७) अरन, (-) सरस्वती, (६) तीर्थ और