पृष्ठ:ज्ञानकोश भाग 1.pdf/१५०

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अति परमाणु विद्युत्करण ज्ञानकोप (अ) १३७ अति परमाणु विद्युत्कण स्पष्टीकरण किया है कि इस घनमध्यविन्दुकी पर्याप्त विद्युझार छोटे आकार के पिंड पर भी गाढ़ी- अथवा मूल बिन्दुको आवश्यकता क्यों है। ज्यों करण करा सकता है। इससे यदि थोड़ा बढ़ा ज्यों द्रवपदार्थको पातली वक्र होने लगती है त्यो जाय और विद्युत्कण यदि मध्य बिन्दु पर श्रावे त्यों भाप बनने की क्रिया भी बढ़ती जाती है। तो यह कहने में कोई हानि नहीं है कि और किसी यदि प्रदेश अत्यन्त वाह्यवत्र हो तो द्रवपदार्थको व्यण्डिकी सहायताले दिन ही भाप उस पर एकाएक भाप बन जावेगी। इसी कारणसे द्रव- | द्रव्यरूप होने लगेगी। उन (विद्य त्कणों) को पदार्थका अति सूक्ष्म परमाणु नहीं मिलता। भाप गलाकर निकालना सहज नहीं है और यदि का गाढ़ीकरण करने के लिये धूलके कणोंके सदृश निकाला भी जाय तो धूल रहित वायुमै उनमें देर उत्तम वक्र भाग प्रदेश, परमाणु अथवा एकत्रित नहीं लगती। यदि वायुमें बहुतसे विद्युत्करण हो परमाणु ही ठीक हैं। क्योंकि इन्हीं की विशेष तो बादल सिर्फ कोहरा दिखाई पड़ने लगेगा, आवश्यकता है। किन्तु इस वादल का रंग रोज की धूलके कणोंके (अ) थामनसका प्रयोग-१८८८ ई० में थामसन चारों तरफ जमने वाले बरसाती बादलकी अपेक्षा ने यह सिद्ध करदिया कि विद्युजानति होने पर बिलकुल भिन्न रहता है। ये विद्युत्पूर्ण विन्दु उन पदार्थों में जो वक्रताका गुण रहता हैं वह नष्ट सव योगों में से किसी एक योगसे उत्पन्न होते हैं हो जाता है। बाहरी वक्र भाग पर भापके गाढ़ी जिनमें वायुका पृथक्करण होता है अथवा वायुमै करणमें विद्युजामतिले सहायता भी मिलती | विद्युत्मणु उत्पन्न होते हैं। है। वक्रताके कारण ही ( Surface Tension) थामसन ने क्ष किरणों की सहायतासे अथवा पृष्टके ननावका अंतःकेन्द्रिय श्रांग तैयार | और किसी प्रकारले विद्युन्मध्य विन्दु उत्पन्न करके होता है अर्थात् बत्रताके कारण सव शक्ति ! एक मर्यादित भापका दृश्य निर्माण किया था। त्रिज्याके द्वारा केन्द्रपर आती है किन्तु | विद्युन्मध्य बिन्दुके योगसे सहसा बादल तैयार हो विद्युजाग्रतिके कारण इससे विल्कुल उल्टा गया और धीरे धीरे बँदे गिरने लगीं। उसने उन अर्थात् वक्रताके बाहर निकालने वाली शक्ति ! बंदोंके रंगसे उनके आकार का अनुमान किया उत्पन्न होती है। द को यदि पृष्टका तनाब मानले किन्तु वह वास्तवमें सन्तोषजनक नहीं था। फिर और 'र' को त्रिज्या मानले तो तनावका केन्द्रिक उन बूंदोंके गिरनेके वेगको गिनकर उनके आकार अवयव सूत्र द्वारा दर्शाया जा सकता है, और का अनुमान किया वे बूँदे समान श्राकारकी होती हैं। और एक दम गिरने लगती हैं। इसलिये विद्युत्वाश्यका तनाव ८x२२ कर) सूत्र द्वारा उनकी गणना करना कठिन नहीं होता। विद्युदणु उत्पन्न करनेवाले क्ष-किरण (Alumi- दिखाया जा सकता है । ( वळविद्युत्भार niam ) स्फटके मोटे ढकनेसे किसी बरतनमें र-त्रिज्या, क-एक नियमित संख्या)। इन आते रहते हैं। विद्युत्स्राव गिननेके लिये स्फटके दोनों सूत्रोंका समीकरण करने पर जो 'र' ढकने और विद्यत्तुलाके साथ सम्बन्ध रहता है। का मूल्य निकलेगा वह ऐसे विद्युदणु के विद्युत्तुलाके दोनों सिरोंको विद्यच्छक्तिको अन्तर आकार का मूल्य होगा जिस विद्युदणु के साधारण रखा जाता है। इसके बाद प्रसरणके ऊपर जल बिन्दु स्थिर रह सकता हो। इन लिये जो व्यवस्था पहले की जाती है उसीके योग दोनों सूत्रोंका समीकरण करने पर 'र' का मूल्य से प्रसरण करते हैं। जब प्रसरण होने लगता है १०. आता है। और यह परमाणुके आकार मान तब बादल दिखलाई पड़ता है। उस समय उनके से बराबर मिलता है। इससे विद्युदणुके योगसे गिरने का अथवा उनका बादल' बननेसे रोकने का गाढ़ीकरण होने में कोई रुकावट नहीं होती और वेग प्रकाशित पात्र के भाग की ओर देखकर इतना ही विद्युत्भार सहन करने वाला किन्तु गिना जासकती हैं। क- गुxxर इससूत्रसे आकारमानमें इससे किंचित् बड़ा हो तो उस पर वायुकीधनता) बहुत शोध गाढ़ीकरण हो सकता है। इससे यह यह जाना जा सकता है कि दोके गिरने का वेग सिद्ध होता है कि विद्युद्धार गाढ़ोकरणमें सहा और उसका क्या सम्बन्ध है। इस सूत्र में क-शुरू- यता देता है, और यदि विधुझार पर्याप्त हो तो | त्वाकर्षणका मूल्य, ध-बूंद को वायुसे अधिक मध्य विन्दु ( nuclens) का आकार छोटा होने होनेवाली घनता, र-बूंदों की त्रिज्या क-गिरने पर भी उसपर गाढ़ीकरण हो सकता है अथवा का वेगहै । यह विदित होनेपर कि प्रसरण कितना । 1