पृष्ठ:ज्ञानकोश भाग 1.pdf/१५

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अकबर ज्ञानकोश (अ) अकबर कितने ही वर्षों तक मुगलसेना जंगल-जंगल राणा सन् १५८४ से २५६ तक लाहौर अकवर की प्रतापसिंहका पीछा करती रही। किन्तु प्रताप राजधानी थी। अकबरको अपने भाई हकीमकी सिंहने अंततक मुगलसेनाकी दाल गलने न दी। मृत्युकी खबर अपने शासन-कालके ३१ वे वर्ष के (प्रतापसिंह देखिये) सन् १५७७ ई० में उड़ीसा | श्रारंभमें मिली। उसी समय उसने यह भी सुना दाऊदखांका विद्रोह दवाया गया। सन् १५७७ कि उज़बेकोने सीमाप्रान्त-वदकशांपर आक्रमण और सन् १५७८ ई० में अकवरने अपना सारा किया है और वे लोग कावुलपर भी कब्जा करना समय मेवाड़, बुरहानपुर तथा गुजगतकी राज्य- चाहते हैं। इस कारण वह नवम्बर महीनेमें पंजाब व्यवस्था सुधारने में ही व्यतीत किया। सन् की ओर रवाना हुआ। उसने अटक पहुँच कर १५८१ ई० की महत्वपूर्ण बात यह है कि इस साल एक सेना काश्मीरमै, दूसरी बलूचियोकी शक्ति जजिया कर माफ कर दिया गया तथा राज्यके | कम करनेके लिये और तीसरी सुवात प्रान्तमें एक भागसे दूसरे भागमै जानेवाले माल पर जो भेजी। दूसरी सेना शीघ्रही यशस्वी हुई। परन्तु कर लिया जाता था, वह भी उठा दिया गया। पहली सेना काश्मीरके राजा द्वारा अकबर का अकबरकी इच्छा थी कि मेरा गल्य चिरस्थाई श्राधिपत्य स्वीकार कर लेनेपर ही संतुष्ट होकर तथा प्रजाके लिये सुखकर हो । इस कारण वह । मिल जानेके कारण यश मिला किन्तु उसकी बड़ी लौट आई। तीसरी सेनाको पीछे अच्छी सहायता पहलेसे ही राजपूतोंको अपनी ओर मिलाने का प्रयत्न करता रहा । वह सबके साथ सामानala | दुर्दशा हुई और अकबरका कृपापात्र सरदार बीर- करता था। किसीको किसी प्रकारका नहीं बल इस लड़ाई में काम आया। पहुँचने देता था। धार्मिक मामलों में किसी पर सन् १५८७ ई० में काश्मीर में विद्रोह होनेके सुल्म नहीं करता था। उसने इसी नीतिसे चल- कारण अकबरकी सेनाको वह प्रांत वहांके मुसल- कर और लोगोंके साथ प्रेमका व्यवहार करके मान राजाओंसे वापस लेनेमें कठिनाई न पड़ी। तमाम हिन्दुस्तानको अपने अधिकार में करनेका : सन् १५८ ई० में अकबरने सिंधप्रान्त अपने निश्चय कर लिया था। जजिया कर की तरह कि अकबर सन् १५६२ ई० तक उस प्रांतपर पूर्ण- गज्यमै मिला लिया। किन्तु ऐसा प्रतीत होता है हिन्दु-यात्रियोको एक प्रकारका कर देना पड़ता था, वह भी बन्द कर दिया गया। राजपूतोंसे रूपसे अधिकार नहीं कर सका था। सन् १५६० ई० (जयपुर, जोधपुर तथा बीकानेरके घराने ) विवाह में गुजरातके सूबेदार ने काठियावाड़ तथा कच्छ- संबंध स्थापित करके तथा उन्हें सेना-विभागमै प्रान्त बादशाहके राज्यमें मिलाये और सूबेदार बड़े-बड़े स्थान देकर उसने उन्हें अपना लिया। मानसिंहने उड़ीसाप्रान्त पूर्ण रूपसे मुगलशासनके उसने सब जातियोंके लोगोको अपने राज्यमें अधीन किया। सन् १५६४ ई० में उसने कंदहार नौकरियां दी। पर अधिकार कर लिया। अहमदाबाद राज्यमें अशान्ति देखकर अकबर सन् १५८२ ई० में अकबरके भाई हकीमने, ने अपनी सेना उधर भेजी । वहाँ दक्षिणी तथा जो काबुलमें राज्य करता था, पंजाब पर चढ़ाई परदेशी मुसलमानोंके बीचका झगड़ा बढ़ गया कर दी। अकवरने हकीम पर चढ़ाई करके था! चारों ओर अराजकता फैली हुई थी। श्रह- खुद काबुलमै उसे पराजित किया। फिर भी उसने मदनगर की सेना चाँदबीवीके अधिकारमें थी। काबुल प्रान्त उसीके अधिकारमै रहने दिया । उसने बड़ी वीरताके साथ युद्ध कर मुगलों को हुकीमकी मृत्युके पश्चात् सन् १५८५. ई० में अक- नीचा दिखाया। फिर भी अन्तम उसे संधि करनी बरने कुछ दिनों के लिये काबुलका शासनप्रबंध पड़ी। मुगलोको वरार प्रान्त देनेका वादा किया मानसिंह को सौंपा था। परन्तु वहां की प्रजाने गया ( सन् १५६६ ई०); परन्तु कथनानुसार उक्त- अकबरसे निवेदन किया कि हमलोगोको राजपूत प्रान्त मुगलोंके हाथमे न आनेके कारण फिरसे सूबेदार नहीं चाहिए । इसपर अकवरने उसी युद्ध श्रारम्भ हो गया । स्वयं अकबर सन् १५६४ई. समय यहां एक मुसलमान सूबेदार नियुक्त करके में नर्मदा पार करके दक्षिणकी अोर गया। इतने- मानसिंहको बंगालका सूबेदार बनाया (सन्१५८७ ही में (जुलाई सन् १६०० ई० में) चाँदबीबीका ई०)। सन् १५८४ ई० में अकबरने बंगालमें शांति खून हो गया और अहमदनगरकी शासन-व्यवस्था स्थापित की तथा गुजरात का विद्रोह दबाकर उसे बिलकुल बिगड़ गयी। निजामशाहीका कोई भी सदाके लिये अपने राज्यमै मिला लिया। रक्षक न रहा । इस कारण सन् १६०० ई० में अह-