पृष्ठ:ज्ञानकोश भाग 1.pdf/१३३

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। -- अणु ज्ञानकोष (अ) अणु बाधा पड़ती है। इस सम जातीयत्व अथवा अनुमान किया जा सकता है। पहले पानी पर अविच्छिन्न महत्वमान की कल्पनासे (Theory of तेल को बहुत पतली झिल्ली फैला कर यह देखा Fluxior) वहन सिद्धान्त की नींव पड़ी है ! इसी गया है कि उससे तैरते हुए कपूर पर क्या परि- वह्न सिद्धान्त पर ही आधुनिक गणितशास्त्र णाम होता है। इससे यह पता चला कि जब निर्भर है। समजातीयत्व की कल्पनासे तथा उप- तेल का थर सेन्टीमीटर तक मोटाईका होता पदार्थों के सम्बन्ध में बहुत सी बाते सिद्ध की है तो उस पर विशिष्ट परिणाम होता है। किन्तु जाती है। यदि तेल का थर र सेन्टीमीटर मोटाई का जड़पदार्थ की अण्वात्मक रचना-इस सम्बन्ध में बहुत से प्रयोगसिद्ध प्रमाण एकत्रित हो चुके हैं हो तो वैसा विशिष्ट परिणाम नहीं होता। इससे कि जड़पदार्थ अविच्छिन्न महत्वमान के समान यह सिद्ध होता है कि तेल के इन दो भिन्न भिन्न सम जातीय गुणयुक्त नहीं हैं बल्कि जड़पदार्थ मोटाइयोके कारण फल भी भिन्न भिन्न होते हैं । यदि की रचना कणों से ही हुई है। विज्ञानशास्त्र को इसकी भिन्नता के कारण पर विचार किया जाय दृष्टि से पदार्थ के सबसे छोटे कण को ही अणु' तो स्पष्ट हो जायगा कि तेल का थर जब बहुत कहते हैं। जिस समय रासायनिक क्रियाओं का पतला होता है तब उसकी अरावात्मक रचना की विचार किया जाता है उस समय अणु का विभाग ! ओर ध्यान देना पड़ता है। इससे यह स्पष्ट हो परमाणु में करते हैं। जिस समय विद्युत्निरी- जायगा कि अणु का आकारमान, क्षण परमाणु का होता है उस समय परमाणु का पर होगा। इस अनुमान की पुष्टि अन्य प्रयोगों विभाग 'अतिपरमाणु' में किया जाता है। अणु : से भी हुई है। टॉमस यंग ने सन १८०५ ई० में के समुच्चय से ही जड़पदार्थ बने हैं और अणु- कल्पना ही से सब विद्युदितर और रसायनेतर से तेल को झिल्ली पर प्रयोग किये थे। लार्ड रेले अणु का आकारमान जानने के लिये उपरोक्त ढंग कार्य कारण-भावों का स्पष्टीकरण होना चाहिये। के मतानुसार यंग का यह प्रयोग सब से प्रारम्भ इससे वायुमय पदार्थों के विषय में बहुत सुगमता में हुआ था। सरसरी तौरसे गणित करके उसने से स्पष्टीकरण किया जाता है। वायु का गति यह अनुमान किया था कि अणु का एक दूसरे पर विषयक सिद्धान्त (IKinetic Theory of Gases) द्वारा यह प्रतिपादन किया जाता है कि जड़पदार्थ होने वाला आकर्षण एक इंच के २०००००००० अणुसमुञ्चय से बने हैं। इसी सिद्धान्तले अनन्त अंश का होता है। यह ध्यान में रखना चाहिये विभाग सिद्धान्त-वादियों के मत खण्डित होते हैं कि यह अनुमान ३० सेंटीमीटरके दर्जे का है। प्रकाश की सहायता हो से पदार्थों की अगवात्मक इसी के आधार पर सन् १८०५ ई० में आधुनिक रचना सिद्ध की जाती है। अन्वेषण की नीव पड़ गई थी। इसी भाँति उसने अणु का आकारमान-लार्ड रैले द्वारा किये गणित से यह सिद्ध किया कि पानी में के अणुका कुछ प्रयोगो से अणु के आकारमान के विषय में व्यास या उनका से २००००००००० आधुनिक गणितशास्त्रान्तगर्त शून्यलब्ध सरीखे १०००००००००० तक होना चाहिये अर्थात् १२५ महत्व भागकी उत्पत्ति वहनकल्पना से हुई है। न्यूटन ८२५ और लिब्नीजने इसको निकाला था। से सेंटीमीटर तक होना चाहिये नई सेंटीमीटर -- १ अन्तर आधुनिक शास्त्रवेत्ताओने वायुके अणुके व्यासकी जो लम्बाई निकाली है, वह आगेके कोष्टकमें दी हुई है।