पृष्ठ:ज्ञानकोश भाग 1.pdf/१३२

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अणु ज्ञानकोश (अ).११६ अण क्षणों की गणना की जा सकती है किन्तु आकाश गति के समान है । जब पानी काट कर मछली आगे के बिन्दु (अंक) अगणित हैं। इसीको दर्शाने बढ़ती है तव पीछे का पानी फिर मिल जाता है के लिये जेनोने कछुआ और अचीलिस का कूट और आगे मछली को स्थान मिलता है। यही प्रश्न सम्मुख रक्खा। यूनान का प्रसिद्ध शीघ्रः | दशा वाहर दूसरे पदार्थों की है। गामी योद्धा अचीलिस और कछुआ दौड़ लगाते आधुनिक काल में डेकार्ट ने यह मान लिया हैं। मान लीजिये कि कछुआ चल रहा है और है कि पदार्थ में लम्बाई. चौड़ाई और मोटाई तीनो उसके एक हजार गज पीछे से अचीलिस चलना होनी चाहिये। उसी भांति अवकाश में भी कुछ प्रारम्भ करता है। अचीलिस की गति कछुए से न कुछ जड़ पदार्थ का होना अनिवार्य है क्योंकि दस गुनी है। अतः जब अचीलिस १००० गज अवकाश में भी मोटाई लम्बाई और चौड़ाई तीनों चला तो कछुवा १००गज । जव अचिलीस१०८गज का समुच्चय होता है। विना जड़ पदार्थ के तो कछुआ१० गज । जव अचिलीस १ गज चलेगा लम्बाई, चौड़ाई तथा मोटाई की कल्पना ही होना तो कछुआ १ गज चलेगा। इसी भांति अचिलीसके असम्भव है। इसी आधार पर डेकाटें ने अपने कितना ही कम चलने पर भी कुछ न कुछ तो सभी ग्रंथों में जड़पदार्थ और अवकाश की कल्पना कछुआ भी जरूर चलेगा ही। एक साथ ही की है। उसका मत था कि जड़. प्राचीन काल में इसी तरह की अवकाश और पदार्थ अणुओं के संयोग से बने हैं। काल के विषय में मनुष्यों की कल्पना थी। इसी इस भांति प्राचीन तथा आधुनिक तत्त्व वेत्ता- कारण श्रचिलीस और कछुए का कूट प्रश्न सदा ओं में दो अलग अलग मत थे। ये दोनों मत वना ही रहा किन्तु आगे चल कर अरस्तू (Aris- गणित की संख्या की कल्पना और रेखागणित totle) ने यह दिखा दिया कि अवकाशके समान के अविच्छिन्न महत्वमान की कल्पना से भिन्न काल के भी अनन्त भाग हो सकते हैं। किन्तु भिन्न निकले हैं। जो सब गुण धर्म पदार्थों में इस धारणा का पूरा पूरा प्रचार उस समय नहीं दृष्टिगोचर होते है उनका स्पष्टीकरण अनन्त- हो सका था। विभाग कल्पना से होना सम्भव नहीं देख पड़ता। सारांश प्राचीन काल से ही अवकाश और तिसपर भी शास्त्रों में अनेक स्थानों पर इसी काल के अनन्त विभाग के सम्बन्ध की कल्पना कल्पना का उपयोग किया जाता है। (Hydro- को जाने लगी थी। इसी आधार पर आधुनिक statics) जलस्थिति शास्त्र में जल अर्थात् तरल समय में जड़ पदार्थों पर प्रयत्न करना प्रारम्भ अथवा बहने वाले पदार्थ की व्याख्या उसके एक किया गया। जिस प्रकार अवकाश के अनन्त महत्त्व गुणधर्म के आधार पर की है। तदनंतर विभाग होसकते हैं उसी भांति पदार्थ के भी होने अनुमान से अनेक बातें सिद्ध की हैं। इसी भांति चाहिये। यदि इस दृष्टि से देखा जाय तो कहा जलस्थिति शास्त्र का ज्ञान प्राप्त हुआ। इस कारण जा सकता है कि प्राचीन अवकाश और काल का इस विषय पर विचार करने की आवश्यकता ही प्रश्न आज कल के जड़ पदार्थ के अणु-सिद्धान्त नहीं रह जाती कि जल अणुओं द्वारा बना है या का बहुत बड़ा पथ-प्रदर्शक है। इसके विपरीत इसके अनन्त विभाग किये जा सकते हैं। इसी जो अनन्त विभाग-सिद्धान्त-वाद है वह मानों भांति फ्रान्सीसी गणित-शास्त्र-वेत्ताओं ने स्थिति- अविच्छिन्न महत्वमान की कल्पना जड़ पदार्थ पर स्थापक ( Elastic) पदार्थों के विषय में अनेक प्रयुक्त करने का यत्न है। अणु-सिद्धान्त-वादियों | सिद्धान्त बनाये। इन सिद्धान्तों को बनाते समय का कथन था कि अवकाश तथा जड़ पदार्थ के यह मानना पड़ा था कि पदार्थ अणुओं से बने हैं गुण धर्म भिन्न-भिन्न है। दो अणुओं के बीच में और उन अणुओं का एक दूसरे पर जो आकर्षण कुछ न कुछ तो अवकाश अवश्य रहता ही है। होता है उससे प्रत्येक अणु अपनी मध्यस्थिति में केवल अणु से पदार्थ नहीं बने हुए हैं, बल्कि स्थिर रहता है। इसके अनन्तर स्टॉक इत्यादि श्रण और उनके बीच के अवकाश दोनों के मूल ने यह साबित कर दिखलाया कि स्थिति-स्थाप- ही से पदार्थ तय्यार हुए हैं। यदि ऐसा न होता कता के विषय में जितनी बाते सिद्ध की गई हैं वे तो पदार्थ में गति प्राप्त न हुई होती। इसके सब अन्य उपाय से भी सिद्ध की जा सकती हैं। विपरीत अनन्त-विभाग-वादियों का कथन है कि स्थिति-स्थापक पदार्थ को चाहे कितना भी सूक्ष्म विश्व का प्रत्येक भाग तथा स्थल द्रव्य से परिपूर्ण, मान लिया जाय वह खण्डसम जातीय ( Homo- है। प्रत्येक वस्तु की गती मछलियों की जल में | geneous) ही होगा। इससे अणुवाद मानने में