पृष्ठ:ज्ञानकोश भाग 1.pdf/१३१

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. ज्ञानकोश (अ)११८ श्रेणु अणु-भौतिक ( Physics) तथा रसायन 'छोटा हो तो भी उसके चारों ओरका कुछ न कुछ (Chemistry) दोनों ही शास्त्रोंमें किसी भी तो आकार होगा ही और जिसका आकार और पदार्थके उस अत्यन्त सूक्ष्म भागको 'अणु परिमाण होगा वह विभाज्य अवश्य है । (Molecules) कहते हैं जिसका अस्तित्व स्वतन्त्र प्राचीन कालमें डिमाक्रीटीस (यूनानी तत्त्व- रीतिसे हो सकता हो। भारतके तत्वज्ञान में वेत्ता ) ने इस सिद्धान्तको कल्पना की थी। 'अणु' शब्दकी चर्चा की गई है किन्तु भौतिक पदार्थ अनेक भागमें समानरूपसे फैले हुए हैं। शास्त्रमें उसका कोई निश्चित स्थान नहीं रक्खा : इससे यह कल्पना की जा सकती है कि यथार्थमें गया था। 'ऑटम' (Atoms) शब्द युरोपमै सत्र- जड़ पदार्थ अनन्त भागों तकमें विभक्त हो सकता हवीं शताब्दीमें प्रचलित हुआ था, किन्तु उस समय है। अनॅक्ज़गोरसका मत, उसके विरुद्ध मत तक लोग 'अणु' और 'परमाणु' के भेदसे भिज्ञनथे। तथा इसी सिद्धान्त पर अनेक अन्य खण्डन- इसलिये दोनों शब्द समान ही अर्थके लिये प्रयोगमै मण्डन लुकेशियस नामक ग्रंथकारने अपनी पुस्तक लाये जाते थे। यह भेद तो १४ वीं शताब्दीके मध्य में भलीभाँति दर्शाये हैं। से मालूम हुआ और उसी समयसे भेदके अनु अणु-सिद्धान्त का प्राचीन तथा आधुनिक इतिहास- सार शब्दोंका प्रयोग भी किया जाने लगा। बहुधा अाधुनिक समय में सृष्ट पदार्थों का अध्ययन खूब 'परमाणु ( Atoms ) रासायनिक क्रियाके विषय : जोरों से हो रहा है । इससे यह स्पष्ट हो गया है में ब्यवहारमें लाया जाता है। अणुसे भी छोटे कि पदार्थ के सूक्ष्म कणों पर तथा उन कणों की और सूक्ष्म पदार्थके कणोंसे रासायनिक क्रिया की गति पर अनेक गुणधर्म निर्भर है। इस विषय में जाती है। किसी पदार्थ के अणुसे भी सूक्ष्म कण · बहुत कुछ ज्ञान प्राप्त हो जाने से इसका विस्तार को परमाणु ( Atoms) कहते हैं। पूर्वक वर्णन किया जायगा। दोनों पक्षों का कथन किसो पदार्थका अणुमें विभाग हो सकता है भिन्न भिन्न है । बहुत प्राचीन काल के यूनानी तत्त्व अथवा यों कह सकते हैं कि कणोंके समुदायसे वेत्ताओं ने संख्या अविच्छिन्न महत्वमान, (Con- पदार्थ-रचना होती है। प्राचीन कोलसे आधु- tinuous magnitude) दिक, (स्थल) काल, जड़ निक समय तक किस किस भाँनि 'अणु' और पदार्थ तथा गति इत्यादि के विषय में स्वतन्त्र 'पदार्थ रचना' की कल्पनायें बदलती गई हैं, इस रीति से बहुत कुछ विचार कर डोला है। इसमें विषयका इतिहास जेम्स क्वार्क मैक्सवेलके शब्दों . सन्देह नहीं कि उनका प्रत्यक्षज्ञान अथवा शास्त्रीय मैं आगे दिया जाता है। अनुभव अत्यन्त अल्प था तो भी आगे के लिये अणु सिद्धान्त तथा अनन्तविभाग सिद्धान्तः- पथदर्शक का काम कर गये हैं जिससे बहुत (Molecular Theory & Theory of Infinite सहायता मिलती है। श्रारम्भ में यदि किसी भी Divisibiltiy )-अणुसिद्धान्तवादियोंका मत विषय का ज्ञान उन्हें समुचित रूप से हुआ था तो है कि किसी भी पदार्थ का 'अणु' एक ऐसा सूक्ष्म तो वह संख्या का हीशान था। अब हम इसी संख्या भाग है जिसके आगे उसका फिर भाग हो ही | के आधार पर तथा उनके उस शान की सहायता नहीं सकता और पदार्थकी रचना 'अणु-समुच्चय' से जड़ वस्तु की माप और गणना-क्रिया करते से होती है। अनन्त-विभाग-सिद्धान्त-वादियों है। दूसरी ध्यान में रखने योग्य बात है संख्या का कथन है कि पदार्थ समजातीय (Homoge- की विच्छिन्नता (discontinuity)। एक संख्यासे neous ) तथा अापसमें नथे हुए अर्थात् अविच्छिन्न दूसरी संख्या पर हम प्लुत गति (by Jumps and (Continuous) होते हैं। उदाहरणके लिये per saltum) से बढ़ जाते हैं। किन्तु रेखागणित वह जलके विषयमें कहते हैं कि चाहे जलका में जो हमको महत्वमान (magnitude) देख पड़ता कितना ही सूक्ष्म भाग किया जाय उसके बाद भी है वह बिल्कुल ही अविच्छिन्न (Continuous) उसका भाग हो सकता है और यह क्रिया अनन्त है। संख्या-सम्बन्धी विचार-पद्धति का प्रयोग तक हो सकती है। रेखागणित के महत्वमान पर करने का प्रयत्न इसपर अणुसिद्धान्तवादियोंका कथन है कि करने से ही अपरिमेय ( Incommensurable ) किसी मर्यादा तक ही पदार्थके विभाग हो सकते संख्या और अवकाश ( space ) के अनन्तविभाग है जिसके आगे होना असम्भव है और जो सबसे : करने की कल्पना का प्रादुर्भाव हुआ। किन्तु काल सूक्ष्म भाग हो उसीको 'अणु' कहा जाता है। के विषय में यह कल्पना नहीं की गई। इलिया विरोधियोंका मत है कि अणु चाहे कितना भी | तथा जेनो के समय में यह विचार था कि कालके