पृष्ठ:ज्ञानकोश भाग 1.pdf/११

यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

ज्ञान-कोश अ----अर्थनिश्चय ( क) यह वर्णमालाका लिया गया है। फिर भी यशोधर्मके मंदसोरके पहला अक्षर और साथही हस्व स्वर है। लेखोसे ज्ञात होता है कि इसके सौ वर्ष पूर्व यह अक्षर संस्कृत विशेषणों, विशेष्यों तथा कृदन्तोंके था। इसके बाद इस अक्षरके सिर्फ बाय अंगके मालवामें 'अ' को उपर्युक्त चौथा रूप प्राप्त हुआ प्रारम्भमें लगाया जाता है । कभी-कभी इसे शुद्ध ऊपरी हिस्से में निचले हिस्सेकी तरह आकार हिन्दी शब्दों में भी लगाते हैं। इस वर्णका आशय (अर्थ) और मिलावटका रूप नीचे दिया जाना स्थानोंके लेखोंसे पता चलता है कि वह क्रिया, आना बाकी था। कुदारकोट तथा देवल आदि है -(१) अभाव अथवा रहित । जैसे-अपार, चौथे रूपके बायें भागमें जो खड़ी रेखा है उसे अक्षय (२) अपकर्ष, विपर्यास जैसे--अकोति । चापक रूपमै बाई ओर झुकाकर और थोड़ी आगे श्रकम, अनादर (३) क्षय, न्यूनता जैसे-अबुद्धि, अपरिपक्क ( पूरा न पका हुआ) (४) वृद्धि, श्रेष्टय | बढ़ाकर पूरी की गयो होगी। जैसे-अमानुषिक, अपौरुषेय, अलौकिकाागे स्वर | [मोलस्वर्थ तथा कैंडी-मराठी-अंग्रेजी कोशवा०शि० आपटे- श्रा जानेसे 'अ' का 'अन्' हो जाता है, उदारह- संस्कृत-अंग्रेजी कोश।श्रोमा-भारतीय प्राचीन लिपिमाला] णार्थ-अनन्त, अनक्षर, अनध्याय इत्यादि । उप- अइ-आसामकी एक नदी। यह भूटानसे युक्त चार अर्थो में यह वर्ण पहले अर्थसे ही अधिक निकली है और खड़काल तथा पूर्वमें गोलपारा व्यवहृत होता है। दूसरा अर्थ पहलेकी तरह जिले से होकर बहती हुई ब्रह्मपुत्रकी सहायक बहुत उपयोगमें नहीं लाया जाता। तीसरा या नदी मनास में मिल गयी है। यह नदी अधिक- चौथा अर्थ तो शायद ही कभी दृष्टिगोचर होता तर जंगलोंसे होकर बहती है। इसकी लम्बाई है। ऊपर दिये गये उदाहरणोंसे अधिक । ५. मील है, इसमें चार टन वजनको नावें चलती उदारण कठिनतासे ही मिलते हैं। (ख) विष्णु है। (इ० ग० ५-१६०८ ) का नाम, ॐकारांतर्गत ओ३म् की प्रथम ध्वनि । अइजल-आसामके पहाड़ी जिले लुशाईका (अकारो विष्णुरुदि उकारस्तु महेश्वरः। मका. एक भाग। यह उत्तर अक्षां० २३.१ से २४.१६ रस्तु स्मृतो ब्रह्मा प्रणवस्तु यात्मकः ॥ (ग) : तक तथा पूर्व देशां० २.१६ से १३२६ तक फैला शिव, ब्रह्मा, वायु अथवा वैश्वानर । हुआ है। इसका क्षेत्रफल ४७०१ वर्गमील है और अक्षराकृति विकाश-अ अक्षरका सबसे प्राचीन जनसंख्या ५३००० है। इसमें १२५ गाँव हैं। स्वरूप अशोकके शिलालेखों में दिखाई देता है। अइजल-एक ग्राम। यह इस विभागका अशोकके शासनकालमें अर्थात् ई० पू० तीसरी तथा लुशाई जिलेका मुख्य स्थान है । उत्तर अक्षां० शताब्दीमें इस शब्द का स्वरूप बिलकुल भिन्न था, ! २३.४ तथा पूर्व देशा० ४२४४ । यह समुद्रकी इसका। Hषम इस प्रकार रूपांतर होनेके सहतसे ३५०० फुट ऊँची एक पहाड़की चोटी पर पश्चात् आधुनिक स्वरूप मिला : बसा हुआ है। इसकी जनसंख्या लगभग ढाई । इसका सबसे पहला रूप अशोकके गिर- हजार है। यहाँ करीब ८० इंच औसत वर्षा होती नारके शिलालेखोमें देखा गया है। दूसरा रूप है। यह परिमाण आसाममें होनेवाली वर्षाके ई० पू० पहली शताब्दी में खुदे हुए मथुराके शिला- परिमाणसे अधिक नहीं है। हवा ठंढी और लेखों में दिखाई देता है । उसमें 'अ' के बाएँ अंगके स्वास्थ्यप्रद है। यह सेनाका पक केन्द्र है। यहाँ निचले भागमें दो कोने बने हुए हैं, उसीसे तीसरे एक दवाखाना और एक कारागार है। पहले यहाँ रूपका अर्धचंद्राकार अक्षरभाग तय्यार हुश्रा' पानीका बड़ा अभाव था, परन्तु श्राजकल बहुत दिखायी देता है। तीसरा रूप शिवगन नामक रुपये खर्च करके वर्षाका पानी रोक रखनेकी राजाके सन् ७३८ ई० के किलेकी शिलालिपियोसे | व्यवस्था की गई। इं० ग०५-१६०८)।