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वक्तव्य
(प्रथम संस्करण)

'पदमावत' हिदी के सर्वोत्तम प्रबंधकाव्यों में है। ठेठ अवधी भाषा के माधुर्य और भावों की गंभीरता की दृष्टि से यह काव्य निराला है। पर खेद के साथ कहना पड़ता है कि इसके पठनपाठन का मार्ग कठिनाइयों के कारण अब तक बंद सा रहा। एक तो इसकी भाषा पुरानी और ठेठ अवधी, दूसरे भाव भी गूढ़, अतः किसी शुद्ध अच्छे संस्करण के बिना इसके अध्ययन का प्रयास कोई कर भी कैसे सकता था? पर इसका अध्ययन हिंदी साहित्य की जानकारी के लिये कितना आवश्यक है, यह इसी से अनुमान किया जा सकता है कि इसी के ढाँचे पर ३४ वर्ष पीछे गोस्वामी तुलसीदास जी ने अपने लोकप्रसिद्ध ग्रंथ 'रामचरितमानस' की रचना की। यही अवधी भाषा और चौपाई दोहे का क्रम दोनों में है, जो आाख्यानकाव्यों के लिये हिंदी में संभवतः पहले से चला आता रहा हो। कुछ शब्द ऐसे हैं जिनका प्रयोग जायसी और तुलसी को छोड़ और किसी कवि ने नहीं किया है। तुलसी की भाषा के स्वरूप को पूर्णतया समझने के लिये जायसी की भाषा का अध्ययन आवश्यक है।

इस ग्रंथ के चार संस्करण मेरे देखने में आए हैं—एक नवलकिशोर प्रेस का, दूमरा पं॰ रामजसन मिश्र संपादित काशी के चंद्रप्रभा प्रेस का, तीसरा कानपुर के किसी पुराने प्रेम का फारसी अक्षरों में और म॰ म॰ पं॰ सुधाकर द्विवेदी और डाक्टर ग्रियर्सन संपादित एशियाटिक सोसाइटी का, जो पूरा नहीं, तृतीयांश मात्र है।

इनमें से प्रथम दो संस्करण तो किसी काम के नहीं। एक चौपाई का भी पाठ शुद्ध नहीं, शब्द बिना इस विचार के रखे हुए हैं कि उनका कुछ अर्थ भी हो सकता है या नहीं। कानपुरवाले उर्दू संस्करण को कुछ लोगों ने अच्छा बताया। पर देखने पर वह भी इसी श्रेणी का निकला। उसमें विशेषता केवल इतनी ही है कि चौपाइयों के नीचे अर्थभी दिया हुआ दिखाई पड़ता है। पर यह अर्थ भी अटकलपच्चू है; किसी मुंशी या मौलवी साहब ने प्रसंग के अनुसार अंदाज से ही लगाया है, शब्दार्थ की ओर ध्यान देकर नहीं। कुछ नमूने देखिए-

(१) 'जाएउ नागमती नगसेनहि। ऊँच भाग, ऊँचै दिन रैनहि।'

इसका साफ अर्थ यह है कि नागमती ने नागसेन को उत्पन्न किया, उसका भाग्य ऊँचा था और दिन रात ऊँचा ही होता गया। इसके स्थान पर यह विलक्षण अर्थ किया गया है।—

'फिर नागमती अपनी सहलियों को हमराह लेकर बहुत बलंद मकान में बलंदीए बख्त से रहने लगी'। इसी प्रकार 'कवलसेन पदमावती जाएउ' का अर्थ लिखा