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झलकता इन दो व्यापारों को एक साथ योजना दृश्य पर कुछ देर ठहरी हुई दृष्टि सूचित करती है। यही बात वैसाख के इस रूपकवर्णन में भी है—

सरवर हिया घटत निति जाई। टूक टूक होइ कै विहराई॥
बिहरत हिया करहु, पिउ! टेका। दीठि दवँगरा, मेरवहु एका॥

तालों का पानी जब सूखने लगता है तब पानी सूखे हुए स्थान में बहुत सी दरारें पड़ जाती हैं जिससे खाने कटे दिखाई पड़ते हैं। वर्षा के आरंभ की झड़ी (दवंगरा) जब पड़ती है तब वे दरारें फिर मिल जाती हैं। विदीर्ण होते हुए हृदय को सूखता हुआ सरोवर और प्रिय के दृष्टिपात को 'दवँगरा' बनाकर कवि ने प्रकृति के सूक्ष्म निरीक्षण का बहुत ही अच्छा परिचय दिया है। इसके अतिरिक्त दो प्रस्तुत (वैसाख का वर्णन है, इससे सूखते हुए सरोवर का वर्णन प्रस्तुत है, नागमती वियोगिनी है। इससे विदीर्ण होते हृदय का वर्णन भी प्रस्तुत ही है) वस्तुओं के बीच सादृश्य की भावना भी अत्यंत माधुर्यपूर्ण और स्वाभाविक है! मैं तो समझता हूँ इसके जोड़ की सुंदरता और स्वाभाविक उक्ति हिंदी काव्यों में बहुत ढूँढ़ने पर कहीं मिले तो मिले।

बारहमासे के संबंध में यह जिज्ञासा हो सकती है कि कवि ने वर्णन का आरंभ आषाढ़ से क्यों किया है, चैत से क्यों नहीं किया। बात यह है कि राजा रत्नसेन ने गंगादशहरे को चित्तौर से प्रस्थान किया था जैसा कि इस चौपाई से प्रकट है—

दसवँ दावँ कै गा जो दसहरा। पलटा सोइ नाव लेइ महरा॥

यह वचन नागमती ने उस समय कहा है जब राजा रत्नसेन सिंहल से लौटकर चित्तौर के पास पहुँचा है। इसका अभिप्राय यह है कि जो केवट दशहरे के दिन मेरी दशम दशा (मरण) करके गया था, जान पड़ता है कि वह नाव लेकर आ रहा है। दसहरे के पाँच छ दिन पीछे ही आषाढ़ लगता है इससे कवि ने नागमती की वियोगदशा का आरंभ आषाढ़ से किया है।

रूपसौंदर्य वर्णन—जैसा कि पहले कह आए हैं, रूपसौंदर्य ही सारी आाख्यायिका का आधार है अतः पद्मावती के रूप का बहुत ही विस्तृत वर्णन तोते के मुँह से जायसी ने कराया है। यह वर्णन यद्यपि परंपराभुक्त ही है, अधिकतर परंपरा से चले आते हुए उपमानों के आधार पर ही है, पर कवि की भोली भाली और प्यारी भाषा के बल से श्रोता के हृदय को सौंदर्य की अपरिमित भावना से भर देता है। सृष्टि के जिन जिन पदार्थों में सौंदर्य की झलक है, पद्मावती की रूपराशि की योजना के लिये कवि ने मानों सबको एकत्र कर दिया। जिस प्रकार कमल, चंद्र, हंस आदि अनेक पदार्थों का सौंदर्य लेकर तिलोत्तमा का रूप संघटित हुआ था, उसी प्रकार कवि ने मानो पद्मावती का रूपविधान किया है। पद्मावती का सौंदर्य अपरिमेय है, अलौकिक है और दिव्य है। उसके वर्णन मात्र से, उसकी भावना मात्र से, राजा रत्‍नसेन बेसुध हो जाता है। उसकी दृष्टि संसार के सारे पदार्थों से फिर जाती है, उसका हृदय उसी रूपसागर में मग्न हो जाता है। वह जोगी होकर निकल पड़ता है।

पद्मावती के रूप का वर्णन दो स्थानों पर है। एक स्थान पर हीरामन सूआ चित्तौर में राजा रत्‍नसेन के सामने करता है; दूसरे स्थान पर राघव चेतन दिल्ली में