पृष्ठ:जायसी ग्रंथावली.djvu/८८

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चित्तौर के इसी गौरव और ऐश्‍वर्य के अनुरूप गढ़ का यह वर्णन है—

सातौ पँवरी कनक केवारा। सातहु पर बाजहिं घरियारा॥
खँड खँड साज पलँग औ पीढ़ी। मानहुँ इंद्रलोक कै सीढ़ी॥
चंदन बिरिछ सुहाई छाहाँ। अमृत कुंड भरे तेहि माहाँ॥
फरे खजहजा दारिउँ दाखा। जो ओहि पंथ जाइ सो चाखा॥
कनक छत्र सिंहासन साजा। पैठत पँवरि मिला लेइ राजा॥
चढ़ा साह, गढ़ चितउर देखा। सब संसार पाँय तर लेखा॥

देखा साह, गगन गढ़, इंद्रलोक कर साज।
कहिय राज फुर ताकर, करै सरग अस राज॥

षट्ऋतु बारह मास वर्णन—उद्दीपन की दृष्टि से तो इनपर विचार 'विप्रलंभ शृंगार' और 'संयोग शृंगार' के अंतर्गत हो चुका है। वहाँ इनके नाना दृश्यों का जो आनंददायक या दुःखद स्वरूप दिखाया गया है वह किसी अन्य (आलंबन रत्‍नसेन) के प्रति प्रतिष्ठित रति भाव के कारण है। उद्दीपन में वर्णन दृश्यों के स्वतंत्र प्रभाव की दृष्टि से नहीं होता। पर यहाँ उन दृश्यों का विचार हमें इस दृष्टि से करना है कि उनका मनुष्य मात्र की रागात्मिका वृत्ति के आलंबन के रूप में चित्रण कहाँ तक और कैसा हुआ है। ऐसे दृश्यों में स्वतः एक प्रकार का आकर्षण होता है, यह बात तो सहृदय मात्र स्वीकार करेंगे। इसी आकर्षण के कारण प्राचीन कवियों ने प्राकृतिक वस्तुओं और व्यापारों का सूक्ष्म निरीक्षण करके तथा उनके संश्लिष्ट ब्योरों को संश्लिष्ट रूप में ही रखकर दृश्यों का मनोहर चित्रण किया है। पर जैसा पहले कह आए हैं, जायसी के ये वर्णन उद्दीपन की दृष्टि से हैं जिसमें वस्तुओं और व्यापारों की झलक मात्र—जो नामोल्लेख मात्र से भी मिल सकती है—काफी समझी जाती है। पर बहुत ही प्यारे शब्दों में दिखाई हुई यह झलक है बहुत मनोहर। कुछ उदाहरण 'विप्रलंभ शृंगार' के अंतर्गत दिए जा चुके हैं, कुछ और लीजिए—

अद्रा लाग, लागि भुइँ लेई। मोहि बिनु पिउ को आदर देई?॥
सावन बरस मेह अति पानी। भरनि भरी, हौं विरह झुरानी॥
भा परगास काँस वन फूले। कंत न फिरे विदेसहि भूले॥
कातिक सरद चंद उजियारी। जग सीतल, हौं बिरहै जारी॥
टप टप बूँद परहिं औ ओला। बिरह पवन होइ मारै झोला॥
तरिवर झरहिं, झरहिं बन ढाखा। भई अनंत फूलि फरि साखा॥
बौरे आम फरै अब लागे। अबहुँ आउ घर, कंत सभागे॥

यह झलक बारहमासे में हमें मिलती है। षट्ऋतु के वर्णन में सुख संभोग का ही उल्लेख अधिक है, प्राकृतिक वस्तुओं और व्यापारों का बहुत कम। दोनों का वर्णन यद्यपि उद्दीपन की दृष्टि से है, दोनों में यद्यपि प्राकृतिक वस्तुओं और व्यापारों की अलग अलग झलक भर दिखाई गई, पर एक आध जगह कवि का निरीक्षण भी अत्यंत सूक्ष्म और सुंदर है, जैसे—

चमक बीजु, बरसै जल सोना। दादुर मोर सबद सुठि लोना॥

इसमें बिजली का चमकना और उसकी चमक में बूंदों का सुवर्ण के समान