पृष्ठ:जायसी ग्रंथावली.djvu/४९५

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आखिरी कलाम


विसरहु दूलह जोवन बारी । पाएछ दुलहिन राजकुमारी ॥ एहि महें सो कर गहि लेइ हैं । आाध तखत पे ले बैठहैं । सव। अद्युत तुम कहें भरि राख । महै सवाद होइ जो चाखें ॥ नित पिंरीत, नित नव नव नेह । नित उठि चौगुन हो सनेह ॥ नित्तहि नित्त जो बारि बियाहै। बीसौ बीस अधिक ओोहि चाहै । तहाँ न मीलू, न नींद, दुखरह न देह महें रोग । सदा अनंद मुहम्मद, सब सुख मानं भोग 1६०॥ । (६०) जोबन बारी (क) यौवन की बाटिका, (ख) युवती बालाएँ महै - बहुत ही । बोसौ बीस = पहले से मौर बढ़कर।