पृष्ठ:जायसी ग्रंथावली.djvu/४८९

यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

झाख़िरी कलाम ३०७ मुनि रसूल तलफत तह हैं । बीबिहि बार बार समुभे हैं । बोदी कहब, घाम कत सहए ?। कस ना बैटि छाह महें रहह ? ॥ ? सब बैठे छाड़ा । तुम कस तप बजर अस माहाँ ’ ॥ पंगबर कहब रसूल, छाँह का बैठीं ? । उमत लागि पहु नहि बैटर्न ॥ तिन्ह सब बाँधि धाम महमेले। का भा मोरे छाढ़ अकेले ॥ ‘सबहि तुम्हरे कोह जो मरे। समुझह जीउ, तबहि निस्तरे । ॥ ‘जो मोहि चहौ निवारहु कोह। तब बिधि करे उमत पर छोह । बहू दुख देखि पिता कर, वीबी समुझा जी3 । जाइ मुहम्मद बिनवा, ठापाग के गीड़ ॥ ४१ ॥ तब रसूल के कहें भ' माया। जिन चिता मानह, भइ दाया । जौ बीबी , अबहूँ रिसियाई: सबहि उमत सिर माह बिसाई । ॥ ग्र फातिम कह गि बोलावह। देह दाद तो उमत छोड़ावढ॥ फातिम माइ के पार लगाव । धरि यजीद दोजख मह गवा। अत कहा, धरि जान से मा। जिन देइ देइ पूनि लोटि पधारें । तस रब जेहि भ्हें गईि जाई। खन ख़ न मारें लीटि जियाई ॥ बजर अगिन जाब के छारा। लौट दहै जस दहै लोहारा ॥ मारि मारि घिसियार्थ, धर दोजख मह देव । जेतनी सिस्टि ‘मुहम्मद' सवह पुकारे लेव ॥ ४२॥ । पुनि सब उम्मत लेब बुलाई। हरू गरू लागब बहिराई निरखि रहौती काढ़ब छानो। करब निनार दूध औी पानी। ॥ पुन्दि न पाए बाप क पूत, न पूत क बाए। पाइहि तहाँ अपहि श्राप आइ परी। कोई न कोउ क धरहरि करी। । कागज काद्रि लेव सब ले खा। दुख सुख जो पिथथी महें देखा। पुन्नि लेखा पियाला माँगब। उतर देत उन पानी खराब ॥ नन क देखा वन क सुना। कहब, करब, औौगुन औौ गुना । हाथ, पाँव, , काया, त्रवनसीस ने । ख, औौ ग्राखि पाप न छपे ‘मुहम्मद, आड़ भरे सत्र साखि 1 ४३ ॥ देह क रोवाँ बैरी होइहैं । बजर बिया एहि जीड के गोइहैं । पाप पुन्नि निरमल । राखब पुनि, पाप के धोउब सब खोउब ॥ (४१) व ज र = ब न प । समझद जीड अपने जी में ढाढ़स बधो। पाग के गोड = गले में पगड़ी डालकरबड़ी अधीनता से । (४२) यजीद = जिसने हसन हुसैन को मारा था। गवा = गया। घिसियावें = घसीटते हैं। प्रका’ लेब = पुकार लेंगे । १४३) हरू = हलका, योछा । गरु = भारी, गंभीर । बहिराड लागव = निकलने लगेंगे । रनौती = रहन सहन, अात्ररण । निनार = न्याराअलग । धरहरि = धर पकड़सहायता। करी = करिहकरेगा ।