पृष्ठ:जायसी ग्रंथावली.djvu/४६५

यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

अखरावट २८ कंत पियारे , देखो तूलम तूल' हो । भए बयस दुइ हें , मृहमद निति सरवरि करें ॥ ३३ : ला लखखई सोई लखि नावा। जो एहि मारग घापु गंवावा ॥ पीउ सुनत धनि आा बिसा। चित्त लखंतन खोइ अड॥ ‘हीं हो’ करव ग्रडारह खई । परगट गुप्त रहा भरि सोई ॥ बाहर भीतर सोइ समाना। कौतुक सपना सो निज जाना है। सस इं देखें औौ मई गुनई । सोई सब मधुरी मूर्ति सुनई॥ सोई करे कीन्ह जो चहई। सोई जानि चूंकि वप रहई ।। सोई घट घट होइ रस लेई । सइ , सो उतर देई ॥ सोई सारी अंतरपटखेले आा अकेले । वह भूला जग सेंती, जग भूला श्रोहि खेल । सोरठा जो लगि सुनै न मीलूतो लग मारे जियत जिउ । कोई हतेछ न बीच, मुहमद एक होड़ रहै है। ३४ ॥ वा वह रूप न जा बखानी । अगम अगोचर अकथ कहानी ॥ दहि बंद भाएउ सो द । न एक माहें सेंसी रोवंदा ॥ बारे खेलतरुन वह सोवा। लउटी बूढ़ लेइ पुनि रोवा । सो सब रग गोसाईं के रा। भा निरभेल कबिलास बसेरा ॥ सो परगट महें भाई भुलावै । गुपुत में प्रापन दरस देखावे ॥ तुम मनु गुपृत मते तस सेऊ । ऐसन सेउ न जाने लेऊ । । तूलम तूल = बराबर परआमने सामने । भए ब्यस दुइ हेंठ = अवस्था में तीसरे स्थान पर होने पर भी (पहले ईश्वरफिर फिरिश्ते हुएउसके पीछे मनुष्य हुग्रा), अवस्था में कनिष्ठता ाने पर भी। सरवरि = बराबरी । १. पाटांतर--दर जो मतलब हो । (३४) अंा वाब = अपने को खो दे । घति = स्वी। खोइ अडारे: = खो डालै । खोड़ ग्रडारह = खो डालो । जग सेंती - गंमार से । अहि खेल = उसके खेल में । जौ गि मीनु = जब तक मृत्यु न आा जाय । माएं जियत जिउ = जीते जी जीव को मारेOपनी अलग संता भूल जाय या मन का दमन करे । (३५) सुंदहि ठंद = नकल ही नकल में, खेल ही खेल में । बंटा बँधुवाबंदी । रोबैदा = रोना । लउटरी = लकुटीलाठी । आई भलाव संसार में जाकर भूला हुआ दिखाई पड़ता है । आापन दरस = अपना शुद्ध स्वरूप । प्रतु = फिर । गुपुत मते = गुप्त रूप से, मन के भीतर ही भीतर ॥ तस = इस प्रकार केऊ= कोई ।