पृष्ठ:जायसी ग्रंथावली.djvu/४६१

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अखरावट २७९ तेहि के नाव चढ़ा ही धाई। देखि समद जल जिउ न डेराई ॥ जेहि के ऐसन खेवक भला। जाइ उतरि निरभय सो चला ॥ राह हकीकत परै न को। पैठि मारफत मार बकी ॥ टूढ़ि उठे लेइ मानिक मोती! जा समाई जोति महें जोती । जेहि कहूँ उन्ह आस नाव चढ़ावा। कर गहि तर खेइ लेइ आावा ॥ दोहा साँची राह सरीग्रतजेहि बिसबास न होइ । पाँव राख तेहि सोढ़ी, निंभरम पहुँचे सो । जेड पावा गुरु मीट, सो सख मारग महें चले । सुख आनंद "भा डीठ, महमद साथ पोढ़ जेहि 1२६। पा पाएई गुरु मोहदी मोठा1 मिला पंथ सो दरसन दोठा ॥ नाथू पियार से रहान कालपी गुरु था ! । नगर हत श्री तिन्ह दरस गोसाई पावा। अलहदाद गुरु पंथ लखावा ॥ अलहदाद सैयद चेला गुरु सिद्ध नवेला। मुहमद के वे । सैयद मुहमद दोनह सांचा। दानियाल सिख दीन्ह सुबाचा ॥ जुग जुग अमर सो हजरत ख्वाजे । हजरत नबी रसूल बाजे दानियाल तहें परगट कोन्हा। हजरत ख्वाज खिजिर पथ दोन्हा । दोहा खडग दीन्ह उन्ह जाई कर्वी, देखि डरें इवलीस । नायें सुनत सो भागे, धुनै प्रोट होइ सोरा । मारT देखि समद महें सीप, विन वडे पावे नहीं । होइ पतंग जल दोप, महमद तेहि धंति लीजिए ।२। । फा जो त पावे । फल मोल गुरु सो बीरी मन लाइ जमावे । जौ पखार तन यापन । निमि दिन जा सो फल चाख ॥ । को क =, भूल 1 मारफत =सिद्धावस्था । ड की = बड की, गोता । जाइ ‘जाती = ब्रह्म को ज्योति में यह ज्योति (आत्मा) लीन हो जाती समाह है। बिसवास = विश्वासघात, धोखा । डठ भा = दिखाई पड़ा । पोढ़ = मजबूत। (२७ ) गुरु = यहाँ गुरु का गुड़ के साथ श्लेष भो है । मोहदी । = संदर व वनों मुहिउहोन हत । = था। गत थान = गुरु का स्थान । सुवाचा ने से । =को, अनुग्रह किया । तहूं = प्रति, के सामने। पथ नेवाजे निवाजिश दोन्हा रास्ता जइ = पकड़ाया । कहें = ईश्वर के मार्ग पर जाने के लिये। इब लोस = शैतान। (२८) गुरु ढ़त = गह से। बो = पेड़ । पखारि = धोकर।