पृष्ठ:जायसी ग्रंथावली.djvu/४६०

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२७८
अखरावट

२७८ अखरावट सोरठा । सुनि हस्ती कर नावें अँधरन्ह टोवा धाड़ है । ड टोवा के हि टाबें, मुहमद सो तैसे कहा ५२४। धा धावडू नेहि मारग गे। जहि निसतार होइ सब भागे । बिधिना के मारग हैं ते ते । सरग नखत तन रोवाँ जेते ॥ जेइ हेरा नेइ नरेंदें पावा। ा संतोष, समुशि मन गाबा ॥ तेहि महें पंथ कहीं भल गई। जेहि टुनौ जग बाज बड़ाई ॥ सो बड़ पंथ मुहम्मद केरा। है निरमल कविलास बसेरा ॥ लिखि पुरान बिधि पटवा साँचा। भा परवाँन, दुबौ जग बाँचा ॥ सुनत ताहि नारद उठ भागे । छूट पाप, पुनि सुनि ला वह मारग जो पावे, सो पाँचे भव पार। जो भूला होड़ अनतहि, तेहि लूटा बटपार ॥ साईं केरा बार, जो थिर देखें औौ सुनै । नड़ न करें जोहार, मुहमद निति उठि पाँच बेर ।२५॥ ना नमाज है, दोन क यूनी। पड़े नमाज सोड़ बढ़ गुनी ॥ कही तरीकत चिसती पीरू। उधरित असरफ नौ जाँगीरू ॥ सुनि हस्ती कर कहा - चार , यह देखने के लिये कि हाथी कैसा होता है, हाथी को टटोलने लगे थे जिसने पूरे छ टोली वह कहने लगा रस्सी के ऐसा होता है, जिसने पैर टटोला वह कहने लगा कि खंभे के ऐसा होता है, इसी प्रकार जिसने जो ग्रंग टटोला वह उसी के अनसार हाथी का स्वरूप कहने लगा (यही दशा ईश्वर ऑौर जगत् के संबंध में लोगों के ज्ञान को ‘एकांगदस्सिन' का यह दष्टत पहले पहल भगवान वद्ध ने देकर समझाया था) । है । (२५विधना के मारगरजते = इसमें ने ईश्वर तक पहुँचने ) के लिये अनेक मागों को । उदारतापूर्वक स्वीकार किया जायसी है, यद्यपि अपने इसलाम मत के अनुरोध से उन्होंने ‘महम्मद के पंथकी प्रशंसा की है। । पुरान कुरान । विधि == ईश्वर। परवान प्रमाण , सनत ताहि‘‘भारी-कुरान का आायत सुनते हो शैतान भाग जाता ऑौर जगह । बटपार : डाक, (काम, क्रोध यादि) । बार = द्वार । नई नई = है । पुन्नि पुण्य अनतहि = अन्यत्न, भक ोककर। जोहार = बंदना, सिजदा। पाँच बेर= पाँचो वक्तों की नमाज । (२६) दीनधर्ममजहब । यूनीटेक, खंभा । गनी = गुणी । तरीकत : बाहरी क्रिया कलाप से परे होकर हृदय से शुद्धतापूर्वक ईश्वर का । ध्यान चिसती = निजामुद्दीन चिश्ती पीर = गुरु, प्राचार्य । उधरित = उद्धरणी की। खेवक = नेवाला । हकीकत = सत्य का बोध ।