अखरावट २७७ था थापहु बह ज्ञान बिचारू। जेहि महें सब समाड़ संसाह ॥ जैसी अहै पैिरथमी सगरी । तैसिहि जान । काया नगरी तन महें 'र श्र वेदन पूरी। तन महें वैद औौ ओषद मूरी ॥ तन महें श्री श्रम त विप बसई। जावै सो जो कसौटी क१ई ॥ का भां T पढे ग्रेने प्रो लिखे ?। करनी साथ किए औौ सिखे ॥ प्रापृहि खइ ोहि जो पrवा । सो वो से मन लाई जमावा ॥ जो प्रोहि हैरत जाइ गई। सो भावै अमृत फल खई ॥ दोहा जाहि खोए पिउ मिलेपिउ खोए राव जाड़ । देखहु वृ िबिचारि मनलेह न हेरि हेराइ ॥ सोरा कट है पिज कर खोज, पावा सो मरजिया जT तह नहि हँसी, न रो, महमद ऐसे ठवें वह । 1२३। दा दाया जाकतें ग करई। सो सिख पंथ सम िपग धरई ॥ सात खंडेड ग्र चारि निसेनी। अगम चढ़ाव, पंथ तिरवेनी ॥ तां बह चहै जो गत चढावे । पाँव न ड, अधिक बल पार्टी ॥ चला। जो ग सक्षति भा भगति चेला। होड़ खेलर खेल बह । परा गइ । जो अपने बल चदि के नघा। सो खसि टूटि जाँघा नारद दौरि लेड़ तेहि साथ मारग चला । संग तेहि मिला। तेली बेल जी निसि दिन फिरई । एक परग मगुस न सो सरई ॥ दोहा सोड़ सभ् लाा रहै, जेहि चलि भागे जाई । नतु फिर पाछे जावईमारग चलि न सिराइ ॥ (२३) कसौटी कसई - शरीर को तप आदि की कसौटी पर कसे तो अमत विष का लग जाय गा पता । करन साथ किए =देखादेखी कमों के करने से । श्रोहि = उस ईश्वर को 1 बी - बिरवा, पौधा, पेड़ । सो बीजमावा
मानों जिसका फल भ्रम है। लेह न हेरि हेराइ
उसने ऐसा पेड़ लगाया स्वय को ) से हाद ने लो। का कड वा कठिन । खो जाकर (अपने जोकर सरजिया = जान जोखों में डाल कर विकट स्थानों से व्यापार की वस्तुएं (जैसे । मोती, लानेवालेरोज = , रोना। (२४) दाया= दया। सिलाजीत) । रोदन सिख=शिष्य, चेला। निसेनी - सीटी । पंथ तिरवनी- डला सिंगला और सुषुम्ना तोनों नाड़ियाँ । सतति शक्ति 1 बसि परा = गिर पड़ा। नारद = शैतान = अग्रसर होता है, आगे बढ़ता । अगुसरई है । सोध = खोजमार्ग। । जहिजिससे । नतु = नहीं तो। मिराइ = चुकता है, खतम होता है। ।