अखरावट माथ सरग, धर धरती भएऊ। मिलि तिन्ह जग दूसर हो गए। माटी माँ, रकत भा नीरू। नसें नदीहिय समुद गंभीरू ॥ रोढ़ सुमेह कीन्ह तेहि केरा । हाड़ पहार जुड़े चलें फेरा बार विरिशरोवाँ खर जामा। सूत सूत निसरे तन चामा ॥ दोहा सातौ दीप, नव पैंटैंड, ग्राट दिसा जो ग्राहि । जो बरम्ड सो पिंड है, हेरत अंत न जाहि ॥ सारठा ७ ७ यागि, बाउजलथूरि, चारि मेरइ भांडा गढ़ा । ग्रा४ रहा भरि मूरि, मुहमद नापुहि ग्राषु महें 1 ८ ॥ गा गौरहु ग्रब मुनहु गियानी। कहीं ग्यान संसार बखानी ॥ नासिक पुल सात पथ चला। तेहि कर भौंहें हैं दुड़ पला ॥ चाँद सूरज दूनी सुर चलहीं। सेत लिलार नखत झलमलहीं । गत दिन निसि सांवत माँझा । हरप भोर विसम्य होइ साँई ॥ सुख चैठ भुगुति श्री भोगू । दुख है नरक, जो उप रोगू ॥ बरखा रुदन, गरज प्रति कोईं। जुिरी “स ठिबंचल छोटू ॥ घरों पहर बेहर हर । नौ ऋतुबारह मास ॥ साँसा बोते ख्य दोहा जुग जुग बीते पलहि पलअवधि घटति निति जाइ। मीड नियर जब श्राव, जानलु परलय श्राइ ॥ सर। हि घर ठग हैं पाँच, नवौ बार चहुदिति फिरह । सो घर केहि मिस बाँचमुहमद जौ निसि जागिए । " ॥ मिलि तिन्ह ‘‘गए = इन दो पक्षों से मिलकर मानो दूसरा ब्रह्मांड हो गया (यहाँ से कवि ने पिंड औौर ब्रह्मांड की एकता का प्रतिपादन किया है ) । रीढ़ = पीठ की हड़ो, मेरुदंड । ने । = . खर त! जाहि जिसका। मेरई मिलाकर । (९) नासिक पुल की वैतरणी का पुल जोगें पापियों के लिये तो बान बराबर पतला हो -चला = नाक मानो पुले सरात' (मसलमानों हो जायगा और दोनदारों के लिये खासी चौड़ी सड़क) का रास्ता चला गया है । भौंहें हैं दुइ पला = भौहैं मानो उस पुल के दो पार्च हैं दाहिने पाश्र्व से शुण्यात्मा से हैं । र बाएँ पापी जाते सुर = श्वास का प्रवाह जो कभी बाएँ नथुने से चलता है, कभी दहिने (इसी को बायाँ सुर या दहिना सुर कहते हैं)। जागत दिन = शरीर की जाग्रत अवस्था को दिन समझो। हम भार शरीर में जब हर्ष का संचार होता। है तब समझो (इस , प्रभात प्रकार चंद्र सूर्य, रातदिन, ऋतुमासवर्षा, चमक, गरजघड़ी, पहर, युग इत्यादि सब शरीर के भीतर समझो)। बेहर = अलग अलग होते हैं । हर = प्रत्येक । पाँच ठग = काम, क्रोध इत्यादि ।
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अखरावट