यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
२६२
पदमावत
बुधि जो गई देइ हिय बोराई। गरब गएउ तरहुँत सिर नाई॥
सरवन गए ऊँच जो सुना। स्याही गई सीस भा धुना॥
भँवर गए केसहि देइ भूवा। जोबन गएउ जीति लेइ जूबा॥
जौ लहि जीवन जोबन साथा। पुनि सो मीचु पराए हाथा॥
बिरिध जो सीस डोलावै, सीस धुनै तेहि रीस।
बूढ़ी आऊ होहु तुम्ह, केइ यह दीन्ह असीस? ॥ ३ ॥
तरहुँत = नीचे की ओर। धुना = धुनी रूई। भूवा = काँस के फूल, घुवा। जौ लहि हाथा = कवि कहता है कि जबतक जिंदगी रहे जवानी के साथ रहे, फिर जब दूसरे का आश्रित होना पड़े तब तो मरना ही अच्छा है। रीस = रिस या क्रोध से। केइ...असीस = किसने व्यर्थ ऐसा आशीर्वाद दिया।