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बंधन मोक्ष, पद्मावती मिलन खंड

परसि पायँ राजा के रानी। पुनि आरति बादल कहँ आनी॥
पूजे बादल के भुजदंडा। तुरय के पायँ दाब कर खंडा॥
यह गजगवन गरब जो मारा। तुम राखा, बादल औ गोरा॥
सेंदुर तिलक जो आँकुस अहा। तुम राखा, माथे तौ रहा॥
काछ काछि तुम जिउ पर खेला। तुम जिउ आनि मँजूषा मेला॥
राखा छात, चँवर औधारा। राखा छुद्रघंट झनकारा॥
तुम हनुवँत होइ धुजा पईठे। तब चितउर पिय आइ बईठे॥
पुनि गजमत्त चढ़ावा, नेत बिछाई खाट॥
बाजत गाजत राजा, आइ बैठ सुखपाट॥ ४ ॥
निसि राजै रानी कँठ लाई। पिउ मरि जिया नारि जनु पाई॥
रति रति राजै दुख उगसारा। जियत जीउ नहिं होउँ निनारा॥
कठिन बंदि तुरकन्ह लेइ गहा। जो सँवरा जिउ पेट न रहा॥
घालि निगड़ ओबरी लेइ मेला। साँकरि औ अँधियार दुहेला॥
खन खन करहिं सड़ासन्ह आँका। औ निति डोम छुआवहिं बाँका॥
पाछे साँप रहहिं चहुँ पासा। भोजन सोई, रहै भर साँसा॥
राँध न तहँवा दूसर कोई। न जनौं पवन पानि कस होई॥
आस तुम्हारि मिलन कै, तब सो रहा जिउ पेट।
नाहि त होत निरास जौ, कित जीवन, कित भेंट? ॥ ५ ॥
तुम्ह पिउ! आइ परी असि बेरा। अब दुख सुनहु कँवल धनि केरा॥
छोड़ेि गएउ सरवर महँ मोहीं। सरवर सूखि गएउ बिनु तोहीं॥
केलि जो करत हंस उड़ि गयऊ। दिनिअर निपट सौ बैरी भयऊ॥
गईं तजि लहरै पुरइनि पाता। मुइउँ धूप, सिर रहेउ न छाता॥
भइउँ मीन, तन तलफै लागा। बेिरह आइ बैठा होइ कागा॥


(४) तुरय के...कर खंडा = बादल के घोड़े के पैर भी दाबे अपने हाथ से। सेंदुर तिलक...अहा = सिंदूर की रेखा जो मुझ गजगामिनी के सिर पैर अंकुश के समान है अर्थात् मुझ पर दाब रखनेवाले मेरे स्वामी का (अर्थात् सौभाग्य का सूचक है। तुम जिउ...मेला = तुमने मेरे शरीर में प्राण डाले। औधारा = ढारा। छुद्रघंट = घुंघरूदार करधनी। नेत = रेशमी चादर; जैसे, ओढ़े नत पिछौरा — गीत। (५) रति रति = रत्ती रत्ती, थोड़ा थोड़ा करके सब। उगसारा = निकाला, खोला, प्रकट किया। निगड़ = बेड़ी। ओबरी = तंग कोठरी। आँका करहिं = दागा करते थे। बाँका = हँसिए की तरह झुका हुआ टेढ़ा औजार जिससे धरकार (बीजन, मोढ़े आदि बनाने वाले) बाँस छीलते हैं। भोजन सोइ...साँसा = भोजन इतना ही मिलता था जितने से साँस या प्राण बना रहे। रांँध = पास, समीप। (६) तुम्ह पिउ...बेर = तुम पर तो ऐसा समय पड़ा। न खंडहेि = नहीं खाते थे, नहीं चबाते थे।