तिन्ह सामुहँ गोरा रन कोपा। अंगद सरिस पाँव भुइँ रोपा॥
सुपुरुष भागि न जानै, भुइँ जौ फिरि फिर लेइ।
सूर गहे दोऊ कर, स्वामि काज जिउ देइ॥ ११ ॥
भइ बगमेल, सेल घनघोरा। औ गज पेल, अकेल सो गोरा॥
सहस कुँवर सहसौ सत बाँधा। भार पहार जूझ कर काँधा॥
लगे मरै गोरा के आगे। बाग न मोर घाव मुख लागे॥
जैस पतंग आगि धँसि लेई। एक मुवै, दूसर जिउ देई॥
टूटहिं सीस, अधर धर मारै। लोटहिं कंधहिं कंध निरारै॥
कोई परहिं रुहिर होइ राते। कोई घायल घूमहिं माते॥
कोइ खुरखेह गए भरि भोगी। भसम चढ़ाइ परे होइ जोगी॥
घरी एक भारत भा, भा असवारन्ह मेल।
जूझि कुँवर सब निबरे, गोरा रहा अकेल॥ १२ ॥
गोरै देख साथि सब जूझा। आपन काल नियर भा, बूझा॥
कोपि सिंघ सामुहँ रन मेला लाखन्ह सौं नहिं मरै अकेला॥
लेइ हाँकि हस्तिन्ह कै ठटा। जैसे पवन बिदारै घटा॥
जेहि सिर देइ कोपि करबारू। स्यों घोड़े टूटै असवारू॥
लोटहिं सीस कबंध निनारे। माठ मजीठ जनहु रन ढारे॥
खेलि फाग सेंदूर छिरकावा। चाँचरि खेलि आगि जनु लावा॥
हस्ती घोड़ धाइ जो धूका। ताहि कीन्ह सो रुहिर भभूका॥
भइ अज्ञा सुलतानी, 'बेगि करहु एहि हाथ।
रतन जात है आगे, लिए पदारथ साथ"॥ १३ ॥
सबै कटक मिलि गोरहि छेंका। गूँजत सिंघ जाइ नहिं टेका॥
जेहि दिस उठै सोइ जनु खावा। पलटि सिंघ तेहि ठावँ न आबा॥
तुरुक बोलावहिं, बोलै बाहाँ। गोरै मीचु धरी जिउ माहाँ॥
भुइँ लेइ = गिर पड़े। सूर = शूल, भाला। (१२) बगमेल = घोड़ों का बाग से बाग मिलाकर चलाना, सवारों की पंक्ति का धावा। अधर धर मारै = धड़ या कबंध अधर में बार करता है। कंध = धड़। निरारै = बिल्कुल, यहाँ से वहाँ तक (अवध)। भोगी = भोग-विलास करनेवाले सरदार थे। भारत = घोर युद्ध। कुँवर = गोरा के साथी राजपूत। निबरे = समाप्त हुए। (१३ ) गोरै = गोरा ने। करवारू = करवाल, तलवार। स्यो = साथ। टूटै = कट जाता है। निनारे = अलग। धूका = झुका। रुहिर = रुधिर से। भभूका = अंगारे सा लाल। एहि हाथ करहु = इसे पकड़ो। (१४) गूँजत = गरजता हुआ। टेका = पकड़ा। पलटि सिंह...आवा =जहाँ से आगे बढ़ता है वहाँ पीछे हटकर नहीं आता। बोलै बाहाँ = (वह मुंह से नहीं बोलता है) उसकी बाहें खड़कती हैं। गोरै = गोरा ने।