पृष्ठ:जायसी ग्रंथावली.djvu/४३१

यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
२४९
गोरा बादल युद्ध खंड

लेइ राजा चितउर कहँ चले। छूटेउ सिंघ मिरिग खलभले॥
चढ़ा साहि चढ़ि लागि गोहारी। कटक असूझ परी जग कारी॥
फिरि गोरा बादल सौं कहा। गहन छूटेि पुनि चाहै गहा॥
चहुँ दिसि आवै लोपत भानू। अब इहै गोइ, इहै मैदानू॥
तुइ अब राजहिं लेई चलु गोरा। हौं अब उलटि जुरौं भा जोरा॥
वह चौगान तुरुक कस खेला। होइ खेलार रन जुरौं अकेला॥
तौ पावौं बादल अस नाऊँ। जो मैदान गोइ लेइ जाऊँ॥
आजु खड़ग चौगान गहि, करौं सीस रिपु गोइ।
खेलों सौंह साह सौं, हाल जगत महँ होइ॥ ६ ॥
तब अगमन होइ गोरा मिला। तुइ राजहि लेइ चलु, बादला! ॥
पिता मरै जो सँकरे साथा। मीचु न देइ पूत कै माथा॥
मैं अब आउ भरी औ भूँजी। का पछिताव आउ जौ पूजी? ॥
बहुतन्ह मारि मरौं जौ जूझी। तुम जिनि रोएहु तौ मन बूझी॥
कुँवर सहस सँग गोरा लीन्हे। और बीर बादल सँग कीन्हे॥
गोरहिं समदि मेघ अस गाजा। चला लिए आगे करि राजा॥
गोरा उलटि खेत भा ठाढ़ा। पूरुष देखि चाव मन बाढ़ा॥
आव कटक सुलतानी, गगन छपा मसि माँझ।
परति आव जग कारी, होत आव दिन साँझ॥ ७ ॥
होइ मैदान परी अब गोई। खेल हार दहुँ काकरि होई॥
जोबन तुरी चढ़ी जो रानी। चली जीति यह खेल सयानी ॥
कटि चौगान, गोइ कुच साजी। हिय मैदान चली लेइ बाजी॥
हाल सो करै गोइ लेइ बाढ़ा। कूरी दुवौ पैज कै काढ़ा॥
भइँ पहार वै दूनौ कूरी। दिस्टि नियर, पहुँचत सुठि दूरी॥
ठाढ़ बान अस जानहु दोऊ। सालै हिये न काढ़ै कोऊ॥
सालहिं हिय, न जाहि सहि ठाढ़े। सालहिं मरै चहै अनकाढ़े॥
मुहमद खेल प्रेम कर, गहिर कठिन चौगान।
सीस न दीजै गोइ जिमि, हाल न होइ मैदान॥ ८ ॥


(६) कारी = कालिमा, अंधकार। फिरि = लौटकर, पीछे ताककर। गोइगो = य, गेंद। जोरा = खेल का जोड़ा या प्रतिद्वंद्वी। गोइ लेइ जाऊँ = बल्ले से गेंद निकाल ले जाऊँ। सीस रिपु = शत्रु के सिर पर। चौगान = गेंद मारने का डंडा। हाल = कंप,हलचल। (७) अगमन = आगे। सँकरे साथ = संकट की स्थिति में। समदि = विदा लेकर। पूरुष = योद्धा। मसि = अंधकार। (८) गोई = गेंद। खेल = खेल में। काकर = किसकी। हाल करै = हलचल मचावे, मैदान मारे। कूरी = धुस या टीला जिसे गेंद को लघाना पड़ता है। पैज = प्रतिज्ञा। अनकाढ़े = बिना निकाले।