जेहि घर खड़ग मोंछ तेहिं गाढ़ी। जहाँ न खड़ग मोंछ नहिं दाढ़ी॥
तब मुँह मोछ, जीउ पर खेलौं। स्वामि काज इंद्रासन पेलौं॥
पुरुष बोलि कै टरै न पाछू। दसन गयंद, गीउ नहिं काछू॥
तुइ अबला, धनि! कुबुधि बुधि, जानै काह जुझार।
जेहि पुरुषहि हिय बीर रस, भावै तेहिं न सिंगार॥ ६ ॥
जौ तुम चहहु जूझि, पिउ! बाजा। कीन्ह सिंगार जूझ मैं साजा॥
जोबन आइ सौंह होइ रोपा। बिखरा बिरह, काम दल कोपा॥
बहेउ बीररस सेंदूर माँगा। राता रुहिर खड़ग जस नाँगा॥
भौंहें धनुक नैन रस साधे। काजर पवन, बरुनि बिष बाँधे॥
जनु कटाछ स्यों सान सँवारे। नखसिख बान मेल अनियारे॥
अलक फाँस गिउ मेल असूझा। अधर अधर सौं चाहहि जूझा॥
कुंभस्थल कुच दोउ मैमंंता। पेलों सौह, सँभारहु, कंता? ॥
कोप सिंगार, बिरह दल, टूटि होइ दुइ आध।
पहिले मोहिं संग्राम कै, करहु जूझ कै साध॥ ७ ॥
एकौ बिनति न माने नाहाँ। आगि परी चित उर धनि माहाँ॥
उठा जो धूम नैन करुवाने। लागे परै आँसु झहराने॥
भीजे हार, चीर दिय चोली। रही अछूत कंत नहिं खोली॥
भीजीं अलक छुए कटि मंडन। भीजे कँवल भँवर सिर फुंदन॥
चुइ चुइ काजर आँचर भीजा। तबहुँ न पिउ कर रोवँ पसीजा॥
जौ तुम कंत! जूझ जिउ काँधा। तुम किय साहस, मैं सत बाँधा॥[१]
रन संग्राम जूझि जिति आबहु। लाज होइ जौ पीठेि देखावहु॥
तुम्ह पिउ साहस बाँधा, मैं दिय माँग सेंदूर।
दोउ सँभारे होइ सँग, बाजै मादर तुर॥ ८ ॥
मोंछ = मूँछें। दसन गयंद...काछू = वह हाथी के दाँत के समान हैं (जो निक- लकर पीछे नहीं जाते), कछुए की गर्दन के समान नहीं, जो जरा सी आहट पाकर पीछे घुस जाता है। (७) बाजा चहहु = लड़ा चाहते हो। पनच = धनुष की डोरी। अनियारे = नुकीले, तीखे। कोप = कोपा है। मोहिं = मुझ से।
(८) चित उर = (क) मन और हृदय में, (ख) चित्तौर । आंगि परी... माहाँ = इस पंक्ति में कवि ने आगे चलकर चित्तौर की स्त्रियों के सती होने का संकेत भी किया है। करुवाने = कड़वे धुँए से दुखने लगे। कटिमंडन = करधनी। फुंदन = चोटी का फुलरा।
- ↑ कई प्रतियों में यह पाठ है —
छाँड़ि चला, हिरदय देइ दाहू। निठुर नाह आपन नहिं काहू॥
सबै सिंगार भीजि भूइँ चूबा। छार मिलाइ कंत नहिं छूवा॥
रोए कंत न बहुरै, तेहि रोए का काज?
कंत धरा मन जूझ रन, धनि साजा सर साज॥