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पदमावत

पुहुमि पूरि सायर दुख पाटा। कौड़ी केर बेहरि हिय फाटा॥
बेहरा हिये खजूर क बिया। बेहर नाहि मोर पाहन हिया॥
पिय जेहि बँदि जोगिनि होइ धावौं। हौं बँदि लेउँ, पिर्याह मुकरावौं॥
सूरुज गहन गरासा, कँवल न बैठे पाट।
महूँ पंथ तेहि गवनव, कंत गए जेहि बाट॥ ३ ॥
गोरा बादल दोउ पसीजे। रोवत रुहिर बूड़ि तन भीजे॥
हम राजा सौं इहै कोहाँने। तुम न मिलौ, धरिहैं तुरकाने॥
जो मति सुनि हम गए कोहाँई। सो निआन हम्ह माथे आई॥
जौ लगि जिउ, नहिं भागहिं दोऊ। स्वामि जियत कित जोगिनि होऊ॥
उए अगस्त हस्ति जब गाजा। नीर घटे घर आइहि राजा॥
बरषा गए, अगस्त जौ दीठिहि। परिहि पलानि तुरंगम पीठिहि॥
बेधौं राहु, छोड़ावहुँ सूरू। रहै न दुख कर मूल अँकूरू॥
सोई सूर, तुम ससहर, आनि मिलावौं सोइ।
तस दुख महँ सुख उपजै, रैनि माँह दिनि होइ॥ ४ ॥
लीन्ह पान बादल औ गोरा। ‘केहि लेइ देउँ उपम तुम्ह जोरा? ॥
तुम सावंत, न सरवरि कोऊ। तुम्ह हनुवंत अँगद सम दोऊ॥
तुम अरजुन औं भीम भुवारा। तुव बल रन दल मंडनहारा॥
तुम टारन भारन्ह जग जाने। तुम सुपुरुष जस करन बखाने॥
तुम बलवीर जैस जगदेऊ। तुम संकर औ मालकदेऊ॥
तुम अस मोरे बादल गोरा। काकर मुख हेरौं, बँदिछोरा? ॥
जस हनुवँत राघव बँदि छोरी। तस तुम छोरि मेरावहु जोरी॥
जैसे जरत लखाघर, साहस कीन्हा भीउँ।
जरत खंभ तस काढ़हु, कै पुरुषारथ जीउ॥ ५ ॥
राम लखन तुम दैत सँघारा। तुमहीं घर बलभद्र भुवारा॥
तुमही द्रोन और गंगेऊ। तुम्ह लेखौं जैसे सहदेऊ॥


बेहरि = विदीर्ण होकर। जेहि बँदि = जिस बंदीगृह में। मुकरावौं = मुक्त कराऊँ, छुड़ाऊँ। (४) तुरकान = मुसलमान लोग। उए अगस्त = अगस्त्य के उदय होने पर, शरत् आने पर। हस्ति जब गाजा = हाथी चढ़ाई पर गरजेंगे, या हस्त नक्षत्र गरजेगा। आइहि = आयेगा। दीठिहि = दिखाई पड़ेगा। परिहि पलानि...पीठिहि = घोड़े की पीठ पर जीन पड़ेगी, चढ़ाई के लिये घोड़े कसे जायँगे। अँकूरू = अंकुर। ससहर = शशधर, चंद्रमा। (५) लीन्ह पान = वीड़ा लिया, प्रतिज्ञा की। केहि...जोरा = यहाँ से पद्मावती के वचन हैं। सावंत = सामंत। भुवारा = भूपाल। टारन भारन्ह = भार हटानेवाले। करन = कर्ण। मालकदेऊ = मालदेव (?)। बँदिछोर = बंधन छुड़ानेवाले। लखाघर = लाक्षागृह। खंभ = राज्य का स्तंभ, रत्नसेन। (६) दैत संभारा = दैत्यों का संहार करनेवाले।