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पदमावत
छाला भूमि, गगन सिर छाता। रंग करत रह हिरदय राता॥
मन माला फेरै तँत ओही। पाँचौ भूत भसम तन होहीं॥
कंडल सोइ सुनु पिउ कथा, पँवरि पाँव पर रेहु।
दंडक गोरा बादलहि जाइ अधारी लेहु॥ ८ ॥
अधारी = अड्डे के आकार की लकड़ी जिसे सहारे के लिये साधु रखते हैं। अधारी लेहु = सहारा लो।