दिल्ली सब देखिउ तुरकानू। औ सुलतान केर बँदिखानू॥
रतनसेन देखिउँ बँदि माहाँ। जरै धूप, खन पाव न छाहाँ॥
सब राजहिं बाँधे औ दागे। जोगिनि जान राज पग लागे॥
का सो भोग जेहि अंत न केऊ। यह दुख लेइ सो गऐउ सुखदेऊ॥
दिल्ली नावँ न जानहु ढीली। सुठि बँदि गाढ़ि निकस नहि कीली॥
देखि दगध दुख ताकर, अबहुँ कया नहिं जीउ।
सो धनि कैसे दहुँ जियै, जाकर बँदि अस पीउ? ॥ ६ ॥
पदमावति जौ सुना बँदि पीऊ। परा अगिनि महँ मानहुँ घीऊ॥
दौरि पायँ जोगनि कै परी। उठी आगि अस जोगिने जरी॥
पायँ देहि, दुइ नैनन्ह लाऊँ। लेइ चलु तहाँ कंत जेहि ठाऊँ॥
जिन्ह नैनन्ह तुइ देखा पीऊ! मोहिं देखाउ, देहुँ बलि जीऊ॥
सत औ धरम देहुँ सब तोहीं। पिउ कै बात कहै जौ मोहीं॥
तृइ मोर गुरू, तोरि हौं चेली। भूली फिरत पंथ जेहि मेली॥
दंड एक माया करु मोरे। जोगिन होउँ चलौं सँग तोरे॥
सखिन्ह कहा, सुनु रानी, करहु न परगट भेस।
जोगी जोगबै गुपुत मन, लेइ गुरु कर उपदेस॥ ७ ॥
भीख लेहु, जोगिनि! फिर माँगू। कंत न पाइय किए सवाँगू॥
यह बड़ जोग बियोग जो सहना। जेहुँ पीउ राखै तेहुँ रहना॥
घर ही महँ रहु भई उदासा। अँजुरी खप्पर, सिंगी साँसा॥
रहै प्रेम मन अरुझा गटा। बिरह धँधारि, अलक सिर जटा॥
नैन चक्र हेरै पिउ पंथा। कया जो कापर सोई कंथा॥
(३) राज पग लागे = राजा ने प्रणाम किया। न केउ = पास में कोई न रह जाय । (यह दु:ख ) ले गएउ = लेने या भोगने गया। सुखदेऊ = सुख देनेवाला तुम्हारा प्रिय। दिल्ली नावँ = दिल्ली या दिल्ली इस नाम से (पृथ्वीराज रासो में किल्ली ढिल्ली कथा है)। सुठि = खूब। कीलो कारागार के द्वार का अर्गल। अबहुँ कया नहिं जीउ = अब भी मेरे होश ठिकाने नहीं।
(७) माया = मया, दया। (८) फिरि माँगू = जाओ, और जगह घूम- कर माँगो। सवाँग = स्वाँग, नकल, आडंबर। यह बड़..सहना = वियोग का जो सहना है यही बड़ा भारी योग है। जेहूँ = जैसे, ज्यों, जिस प्रकार। तेहूँ = त्यों, उस प्रकार। सिंगी साँसा = लंबी साँस लेने को ही सिंगी फूकना (बजाना) समझो। गटा = गटरमाला। रहै प्रेम...गटा = जिसमें उलझा हुआ मन है उसी प्रेम को गटरमाला समझो। छाल = मृगछाला। तँत = तंत, तत्व या मंत्र। पाँचौ...भूत होहीं = शरीर के पंचभूतों को ही रमी हुई भभूत या भस्म समझो। पँवरि पाँच पर रेहु = पाँव पर जो धूल लगे उसी को खड़ाऊँ समझ।