कहने की आवश्यकता नहीं कि जायसी ने 'पद्मावत' में जिस प्रेम का वर्णन किया है वह चौथे ढंग का है। पर इसमें वे कुछ विशेषता भी लाए हैं। जायसी के शृंगार में मानसिक पक्ष प्रधान है, शारीरिक गौण है। चुंबन, आलिंगन आदि का वर्णन कवि ने बहुत कम किया है, केवल मन के उल्लास और वेदना का कथन अधिक किया है। प्रयत्न नायक की ओर से है और उसकी कठिनता द्वारा कवि ने नायक के प्रेम को नापा है। नायक का यह आदर्श लैला मजनू, शीरी फरहाद आदि उन अरबी फारसी कहानियों के आदर्श से मिलता जलता है जिनमें हड़ी की ठठरी भर लिए हुए टाँकियों से पहाड़ खोद डालनेवाले पाशिक पाए जाते हैं। फारस के प्रेम में नायक के प्रेम का वेग अधिक तीव्र दिखाई पड़ता है और भारत के प्रेम में नायिका के प्रेम का। जायसी ने आगे चलकर नायक और नायिका दोनों के प्रेम की तीव्रता समान करके दोनों आदर्शों का एक में मेल कर दिया है। राजा रत्नसेन सुए के मुँह से पद्मावती का रूपवर्णन सुन योगी होकर घर से निकल जाता है और मार्ग के अनेक दुःखों को झेलता हुआ सात समुद्र पार करके सिंहलद्वीप पहुँचता है। उधर पद्मावती भी राजा के प्रेम को सुन विरहाग्नि में जलती हई साक्षात्कार के लिये विह्वल होती है और जब रत्नसेन को सूली की आज्ञा होती है तब उसके लिये मरने को तैयार होती है।
एक प्रकार का और मेल भी कवि ने किया है। फारसी की मसनवियों का प्रेम ऐकांतिक, लोकबाह्य और आदर्शात्मक (ग्राइडियलिस्टिक) होता है। वह संसार की वास्तविक परिस्थिति के बीच नहीं दिखाया जाता, संसार की प्रार सब बातों से अलग एक स्वतंत्र सत्ता के रूप में दिखाया जाता है। उसमें जा घटनाए आती हैं वे केवल प्रेममार्ग की होती हैं, संसार के और और व्यवहारों से उत्पन्न नहीं। साहस, दृढ़ता और वीरता भी यदि कहीं दिखाई पड़ती है तो प्रेमोन्माद के रूप में, लोककर्तव्य के रूप में नहीं। भारतीय प्रेमपद्धति आदि में तो लोकसंबद्ध और व्यवहारात्मक थी ही, पीछे भी अधिकतर वैसी ही रही। यदि कवि के काव्य में प्रेम लोकव्यवहार से कहीं अलग नहीं दिखाया गया है, जीवन के और और विभागों के सौंदर्य के बीच उसके सौंदर्य की प्रभा फटती दिखाई पड़ती है। राम के समुद्र में पूल बाँधने और रावण ऐसे प्रचंड शत्रु के मार गिराने को हम केवल एक प्रेमी के प्रयत्न के रूप में नहीं देखते, वीर धर्मानुसार पृथ्वी का भार उतारने के प्रयत्न के रूप में देखते हैं। पीछे कृष्णचरित, कादंबरी, नैषधीय चरित, माधवानल कामकदला आदि एकांतिक प्रेम कहानियों का भी भारतीय साहित्य में प्रचुर प्रचार हुआ। ये कहानियाँ अब फारस की प्रेमपद्धति के अधिक मेल में थीं। नल दमयंती की प्रेम कहानी का अनुवाद बहुत पहले फारसी क्या अरबी तक में हुआ। इन कहानियों का उल्लेख 'पद्मावत' में स्थान स्थान पर हुआ है।
जायसी ने यद्यपि इश्क के दास्तानवाली मसनवियों के प्रेम के स्वरूप को प्रधान रखा है पर बीच बीच में भारत के लोक-व्यवहार-संलग्न स्वरूप को भी मेल किया है। इश्क की मसनवियों के समान 'पदमावत' लोकपक्षशून्य नहीं है। राजा जोगी होकर घर से निकलता है, इतना कहकर कवि यह भी कहता है कि चलते समय उसकी माता और रानी दोनों उसे रो रोकर रोकती हैं। जैसे कवि ने राजा से