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पदमावत

हिया फार कूकुर तेहि केरा। सिंधहि तजि सियार मुख हेरा॥
जोबन नीर घटे का घटा?। सत्त के बर जौ नहिं हिय फटा॥
सघन मेघ होइ साम बरीसहिं। जोबन नव तरिवर होइ दीसहि॥

रावन पाप जो जिउ धरा, दुवौ जगत मुँह कार।
राम सत्त जो मन धरा, ताहि छरै को पार? ॥ ११ ॥

 

कित पावसि पुनि जोबन राता। मैमँत, चढ़ा साम सिर छाता॥
जोबन बिना बिरिध होइ नाऊँ। बिनु जोबन थाकै सब ठाऊँ॥
जोबन हेरत मिलै न हेरा। सो जौ जाइ, करै नहिं फेरा॥
है जो केस नग भँवर जो बसा। पुनि बग होहिं, जगत सब हँसा॥
सेंवर सेव न चित कर सुना। पुनि पछितासि अंत जब भूआ॥
रूप तोर जग ऊपर लोना। यह जोबन पाहुन चल होना॥
भोग विलास केरि यह वेरा। मानि लेहु, पुनि को केहि केरा?॥

उठत कोंप जस तरिवर, तस जोवन तोहि रात।
तौ लगि रंग लेहु रचि, पुनि सो पियर होझ पात ॥ १२ ॥

 

कुमुदिनि बैन सुनत हिय जरी। पदमिनि उरह आगि जनु परी॥
रँग ताकर हौं जारौं काँचा। आपन तजि जो पराएहि राँचा॥
दूसर करै जाइ दुइ बाटा। राजा दुइ न होहि एक पाटा॥
जेहि के जीउ प्रीति दिढ़ होई। मुख सोहाग सौ बैठे सोई॥
जोबन जाउ, जाउ सो भंवरा, पिय कै प्रीति न जाइ, सो सँवरा॥
एहि जग जौं पिउ करहिं न फेरा। ओहि जग मिलहिं जौ दिन दिन हेरा॥
जीवन मीर रतन जहँ पीऊ। बलि तेहि पिउ पर जोबन जीऊ॥

भरथरि बिछुरि पिंगला, आहि करत जिउ दीन्ह।
हौं पापिनि जो जियत हौ, इहै दोष हम कीन्ह॥ १३ ॥

 

पदमावति! सो कौन रसोई। जेहि परकार न दूसर होई॥
रस दूसर जेहि जीभ बईठा। सो जानै रस खाटा मीठा॥


फार = फाड़े। सत के...फटा = यदि सत्य के बल से हृदय न फटे अर्थात् प्रीति में अंतर न पड़े (पानी घटने से तल की जमीन में दरारें पड़ जाती हैं) छरै को पार = कौन छल सकता है। (१२) राता = ललित। साम सिर छाता = अर्थात् काले केश। थाके = थक जाता है। बग = बगलों के समान श्वेत। चल होना = चल देनेवाला है। कोंप = कोंपल, कल्ला। रंग लेहु रचि = (क) रंग लो, (ख) भोग विलास कर लो। (१३) काँचा = कच्चा। राँचा = अनुरक्त हुआ। जाइ दुइ बाटा = दुर्गति को प्राप्त होता है। जाउ = चाहे चला जाय। भँवरा = काले केश। सँवरा = जिसका स्मरण किया करती हूँ। जौ दिन हेरा = यदि लगातार ढूढ़ती रहूँगी। (१४) कौनि रसोई = किस काम की रसोई है! जेहि परकार..हाई = जिसमें दूसरा प्रकार न हो, जो एक ही प्रकार की हो।