छवौ राग गावहिं पातुरनी। औ पुनि छत्तीसौ रागिनी॥
औ कल्यान कान्हरा न होई। राग बिहाग केदारा सोई॥
परभाती होइ उठै बँगाला। आसावरी राग गुनमाला॥
धनासिरी औ सूहा कीन्हा। भएउ बिलावल, मारू लीन्हा॥
रामकली, नट, गौरी गाई। धुनि खंमाच सो राग सुनाई॥
साम गूजरी पुनि भल भाई। सारँग औ बिभास मुँह आई॥
पुरबी, सिंधी देस बरारी। टोड़ी गौड़ सौ भई निरारी॥
सबै राग औ रागिनी सुरै अलापहिं ऊँच।
तहाँ तीर कहँ पहुँचै दिस्टि जहाँ न पहूँच? ॥ १४ ॥
जहँवाँ सौंह साह कै दीठी। पातुरि फिरत दीन्ह तहँ पीठी॥
देखत साह सिंघासन गूँजा। कब लगि मिरिच चाँद तोहि भूँजा[१]॥
छाँड़हि बान जाहिं उपराही। का तैं गरब करसि इतराही?॥
बोलत बान लाख भए ऊँचे। कोइ कोट, कोइ पौरि पहूँचे॥
जहाँगीर कनउज कर राजा। ओहि क वान पातुरि के लागा॥
बाजा बान, जाँघ तस नाचा। जिउ गा सरग, परा भुइँ साँचा॥
उड़सा नाच, नचनिया मारा। रहसे तुरुच बजाइ कै तारा॥
जो गढ़ साजै लाख दस, कोटि उठावै कोट।
बादशाह जब चाहैं छपे न कौनिउ ओट ॥ १५ ॥
राजे पौरि अकास चढ़ाई। परा बाँध चहु फेर लगाई।
सेतु बंध जस राघव बाँधा। परा फेर, भुइँ भार न काँधा॥
हनुवँत होइ सब लागा गोहारू। चहुँ दिसि ढोई ढोई कीन्ह पहारू॥
सेत फटिक अस लागै गढ़ा। बाँध उठाइ चहूँ गढ़ मढ़ा॥
खँड खँड ऊपर होइ पटाऊ। चित्र अनेक, अनेक कटाऊ॥
सीढ़ी होति जाहिं बहु भाँती। जहाँ चढ़ै हस्तिन कै पाँती॥
भा गरगज कस कहत न आवा। जनहुँ उठाइ गगन लेइ आवा॥
राह लाग जस चाँदहि तस गढ़ लागा बाँध।
सब आगि अस बरि रहा, ठाँव जाइ को काँध? ॥ १६ ॥
राजसभा सब मतै बईठी। देखि न जाइ, मूँदि गइ दीठी॥
(१४) पहुँच = पहुँचती है। (१५) फिरत = फिरते हुए। सिंघासन = सिंघासन पर। गूँजा = गरजा। मिरिग = मृग अर्थात् मृगनयनी। भूजा = भोग करेगा। (१५) भए ऊँचे से ऊपर की ओर चलाए गए। साँचा = शरीर। उड़सा = भंग हो गया। तारा = ताल, ताली। (१६) अकास चड़ाई =ऊँचे पर बनवाई। चहुँ फेर लगाई = चारों ओर लगाकर। मढ़ा = घेरा। पटाऊ = पटाव। गगन लेइ = आकाश तक। ठाँव काँध = उस जगह जाने का भार कौन ऊपर ले सकता है? (१७) मतै = सलाह करने के लिये।
- ↑ पाठातंर = 'देखैं चाँद, सूर भा भूजा' अर्थात् चंद्रमा तो नाच देखे और सूर्य भुजवा हो गया कि उसकी ओर पीठ फेरी जाय।