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बादशाह चढ़ाई खंड

दरब लेइ तौ मानौं सेव करौं गहि पाउ।
चाहै जौ सो पदमिनी सिंघलदीपहिं जाउ॥ ३ ॥

 

बोलु न राजा! आपु जनाई। लीन्ह देवगिरि और छिताई॥
सातौ दीप राज सिर नावहिं। औ सँग चली पदमिनी आवहिं॥
जेहि कै सेव करै संसारा। सिंघलदीप लेत कित बारा?॥
जिनि जानसि यह गढ़ तोहि पाहीं। ताकर सवै तोर किछु नाहीं॥
जेहि दिन आइ गढ़ी कहँ छेकिहि। सरबस लेइ हाथ को टेकिहि॥
सीस न छाँड़ै खेह के लागे[]। सो सिर छार होइ पुनि आगे॥
सेवा करू जौ जियन तोहि भाई। नाहिं त फेरि माँख होइ जाई॥

जाकर जीवन दीन्ह तेहि, अगमन सीस जोहरि।
ते करनी सब जानै, काह पुरुष का नारि ॥ ४॥

 

तुरुक! जाइ कहु मरै न धाई। होइहि इसकदर कै नाई॥
सुनि अमृत कदलीबन धावा। हाथ न चढ़ा रहा पछितावा॥
औ तेहि दीप पतँग होइ परा। अगिनि पहार पाँव देइ जरा॥
धरती लोह सरग भा ताँबा। जिउ दीन्ह पहुँचत कर लाँबा॥
यह चितउरगढ़ सोइ पहारू। सूर उठै तब होइ अँगारू॥
जो पै इसकंदर सरि कीन्ही। समुद लेहु धँसि जस वै लीन्ही॥
जो छरि आने जाई छिताई। तेहि छर औ डर होइ मिताई॥

महूँ समुझि अस अगमन, सजि राखा गढ़ साजु।
काल्हि होइ जेहि आवन, सो चलि आवै आजु ॥ ५ ॥

 

सरजा पलटि साह पहँ आवा। देव न मानै बहुत मनावा॥
आगि जो जरै आगि पै सूझा। जरत रहै न बुझाए बूझा॥
ऐसे माथ न नावै देवा। चढ़ै सुलेमाँ मानें सेवा॥
सुनि कै अस राता सुलतानू। जैसे तपै जेठ कर भानू॥
सहसौ करा रोष अस भरा। जेहि दिसि देखै तेइ दिस जरा॥


जिउ = जावे। (४) आपु जनाई = अपने को बहुत बड़ा प्रकट करके। छिताई = कोई स्त्री (?) सीस न छाँड़ै लागै = धूल पड़ जाने से सिर न कटा; छोटी सी बात के लिये प्राण न दे। (५) कै नाई = की सी दशा। धरती लोह ताँबा = उस भाग के पहाड़ की धरती लोहे के समान दृढ़ है और उसकी आँच से आकाश तामवर्ण हो जाता है। जौ पै इसकंदर कीन्ही = जो तुमने सिकंदर की बराबरी की है तो। छर औ डर = छल और भय दिखाने से। (६) देव (क) राजा, (ख)राक्षस। सुलेमाँ यहूदियों का बादशाह सुलेमान जिसने देवों और परियों को जीतकर वश में कर लिया था।

२३
  1. १. पाठांतर--'खीस के लागे। खीस = खिसियाहट, रिस। माँख = क्रोध नाराजगी।