अधर सुरंग पान अस खीने। राते रंग अमिय रस भीने॥
आछहिं भिजे तँबोल सौं राते। जनु गुलाल दीसहिं बिहँसाते॥
मानिक अधर दसन जनू हीरा। बैन रसाल खाँड़ मुख बीरा॥
काढ़े अधर डाभ जिमि चीरा। रुहिर चुवै जो खाँड़ै बीरा॥
ढारै रसहि रसहि रस गोली। रकत भरी औ सुरँग रँगीली॥
जनु परभात राति रवि रेखा। बिगसे बदन कँवल जनु देखा॥
अलक भुअंगिनि अधरहि राखा। गहै जो नागिनि सो रस चाखा॥
अधर अधर रस प्रेम कर, अलक भुअगिनि बीच।
तब अमृत रस पावै जब नागिनि गहि खींच ॥१०॥
दसन साम पानन्ह रँग पाके। बिगसे कँवल माँह अलि ताके॥
ऐसि चमक मुख भीतर होई। जनु दारिउँ औ साम मकोई॥
चमकहिं चौक बिहँस जौ नारी। बीजु चमक जस निसि अँधियारी॥
सेत साम अस चमकत दीठी। नीलम हीरक पाँति बईठी॥
केइ सो गढ़े अस दसन अमोला। मारै बीजु बिहँसि जो बोला॥
रतन भीजि रस रंग भए सामा। ओही छाज पदारथ नामा॥
कित वै दसन देख रस भीने। लेइ गइ जोति नैन भए हीने॥
दसन जाति होइ नैन मग, हिरदय माँझ पईठ।
परगट जग अँधियार जनु, गुपुत होहि मैं दीठ॥ ११ ॥
रसना सुनह जो कह रस बाता। कोकिल बैन सुनत मन राता॥
अमृत कोंप जीभ जनु लाई। पान फूल असि बात सोहाई॥
चातक बैन सुनत होई साँती। सुनै सो परै प्रेम मधु माती॥
बिरवा सूख पाव जस नीरू। सुनत बैन तस पलुह सरीरू॥
बोल सेवाति बूँद जनु परहीं। स्त्रवन सीप मुख मोती भरहीं॥
धनि वै वैन जौ प्रान अधारू। भूले स्त्रवनहिं देहि अहारू॥
उन्ह बैनन्ह कै काहि न आसा। मोहहि मिरिग बीन बिस्वासा॥
कंठ सारदा मोहै जीभ सुरसती काह॥
इंद्र चंद्र रवि देवता सबै जगत मुख चाह ॥ १२ ॥
(१०) काढ़े अधर चीर = जैसे कुश का चीरा लगा हो ऐसे पतले ओठ हैं। जौ खाँड़े बीरा = जब बीड़ा चबाती है। जनु परभात देखा = मानों विकसित कमलमुख पर सूर्य की लाल किरणें पड़ी हों। (११) ताके = दिखाई पड़े। मकोई = जंगली मकोय जो काली होती है। कित वै दसन भीने = कहाँ से मैंने उन रंगभीने दाँतों को देखा। (१२)कोंप = कोंपल, नया कल्ला। साँती = शांति। माती = मात कर। बिरवा= पेड़। सूख = सूखा हुआ। पलुह = पनपता है, हरा होता है। बीन विस्वासा = बीन समझकर।