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राघवचेतन देशनिकाला खंड

तेइ हँकारि मोहि कंकन दीन्हा। दिस्टि जो परी जीउ हरि लीन्हा॥
नैन भिखारि ढीठ सतछँड़ा। लागै तहाँ बान होइ गड़ा॥
नैनहिं नैन जो वेधि समाने। सीस धुनैं निसरहिं नहिं ताने॥
नवहि न नाए निलज भिखारी। तबहिं न लागि रही मुख कारी॥

कित करमुहे नैन भए, जीउ हरा जैहि बाट।
सरवर नीर निछोह जिमि दरकि दरकि हिय फाट ॥ ९ ॥

 

 सखिन्ह कहा चेतसि बिसँभारा। हिये चेतु जेहि जासि न मारा॥
जौ कोइ पावै आपन माँगा। ना कोइ मरै, न काहु खाँगा॥
वह पदमावति आहि अनूपा। बरनि न जाइ काहू के रूपा॥
जो देखो सो गुपुत चलि गएउ। परगट कहाँ, जीउ बिनु भएउ॥
तुम्ह अस बहुत बिमोहित भए। धुनि धुनि सीस जीउ देइ गए॥
बहुतन्ह दीन्ह नाइ कै गोवा। उतर देइ नहिं, मारै जीवा॥
तुइँ पै मरहिं होइ जरि भूई। अबहुँ उघेलु कान कै रूई॥

कोइ माँगे नहिं पावै, कोइ माँगे बिनु पाव।
तू चेतन औरहि समुझावै, तोकहँ को समुझाव? ॥१०॥

 

भएउ चेत, चित चेतन चेता। बहुरि न आइ सहौं दु:ख एता॥
रोवत आइ परे हम जहाँ। रोवत चले, कौन सुख तहाँ? ॥
जहाँ रहे संसौ जिउ केरा। कौन रहनि? चलि चलै सबेरा॥
अब यह भीख तहाँ होइ माँगौं। देइ एत जेहि जनम न खाँगौं॥
अस कंकन जौ पावौं दूजा। दारिद हरै, आस मन पूजा॥
दिल्ली नगर आादि तुरकानू। जहाँ अलाउद्दीन सुलतानू॥
सोन ढरै जेहि के टकसारा। बारह बानी चले दिनारा॥

 कँवल बखानौ जाइ तहँ जहँ अलि अलाउद्दीन॥
सुनि कै चढै भानु होई, रतन जो होइ मलीन ॥११॥

 


हँकारि = बुलाकर। सतछड़ाँ = सत्य छोड़नेवाला। ताने = खींचने से। तबहि न कारी = तभी न (उसी कारण से) आँखों के मुँह में कालिमा काली पुतली) लग रहो है। सरवर नीर फाट = तालाब के सूखने पर उसकी जमीन में चारो ओर दरारें सी पड़ जाती हैं। (११)बरनि न जाइ रूपा = किसी के साथ उसकी उपमा नहीं दी जा सकती। भूई = सरकडे का धूआ। उघेलु रूई = सुन प्रौर चेतकर,कान की रूई खोल। (११) एता = इतना। संसौ = संशय। कौन रहनि = वहाँ का रहना क्या? देइ एत खाँगौं = इतना दो कि फिर मुझे कमी न हो। सोन ढरै = सोना ढलता है, सोने के सिक्के ढाले जाते हैं। बारहबानी = चोखा। दिनारा = दीनार नाम का प्रचलित सोने का सिक्का। अलि = भौंरा।