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लक्ष्मी समुद्र खंड

देखा दरस; भए एक पासा। वह ओहिके, वह ओहिके आसा॥
कंचन दाहि दीन्ह जनु जीऊ। ऊवा सूर, छूटिगा सीऊ॥
पायँ परी धनि पीउ के, नैनन्ह सौं रज मेट।
अचरज भएउ सबन्ह कहँ, भइ ससि कवलहिं भेंट॥ २२ ॥
जिनि काहू कहँ होइ बिछोऊ। जस वै मिले मिलै सब कोऊ॥
पदमावति जौ पावा पीऊ। जनु मरजियहि परा तन जीऊ।
कै नेवछावरि तन मन बारी। पायन्ह परी घालि गिउ नारी॥
नव अवतार दीन्ह बिधि आजू। रही छार भइ मानुष साजू॥
राजा रोव घालि गिउ पाग। पदमावति के पायन्ह लाग॥
तन जिउ महँ बिधि दीन्ह बिछोऊ। अस न करै तो चीन्ह न कोऊ॥
सोई मारि छार कै मेटा। सोइ जियाइ करावै भेंटा॥
मुहमद मीत जौ मन बसै, बिधि मिलाव ओहि आनि ।
संपति बिपति पुरुष कहँ, काह लाभ, का हानि॥ २३ ॥
लछमी सौं पदमावति कहा। तुम्ह प्रसाद पायउँ जो चहा॥
जौ सब खोइ जाहिं हम दोऊ। जो देखै भल कहै न कोऊ॥
जे सब कुँवर आए हम साथी। औ जत हस्ति, घोड़ औ साथी॥
जौ पावैं, सुख जीवन भोगू। नाहिं त मरन, भरन दुख रोगू॥
तब लछमी गइ पिता के ठाऊँ। जो एहि कर सब बूड़ सो पाऊँ॥
तब सो जरी अमृत लेइ आवा। जो मरे हुत तिन्ह छिरिक जियावा॥
एक एक कै दीन्ह हो आनी। भा सँतोष मन राजा रानी॥
आइ मिले सब साथी, हिलि मिलि करहिं आनंद।
भई प्राप्त सुख संपति, गएउ छूटि दुख दंद॥ २४ ॥
और दीन्ह बहु रतन मखाना। सोन रूप तौ मनहिं न आना॥
जे बहु मोल पदारथ नाऊँ। का तिन्ह बरनि कहौं तुम्ह ठाऊँ॥
तिन्ह कर रूप भाव को कहै। एक एक नग दीप जो लहै॥
हीर फार बहु मोल जो अहै। तेइ सब नग चुनि चुनि कै गहै॥


एक पासा = एक साथ। सीऊ = सीता। रज मेट = आँसुओं से पैर की धूल धोती है। भइ ससि कँवलहि भेंट = शशि, पद्मावती का मुख और कमल, राजा के चरण। (२३) घालि गिउ = गरदन नीचे झुकाकर। मानुष साजू = मनुष्य रूप में। घालि गिउ पागा = गले में दुपट्टा डालकर। पागा = पगड़ी। तन जिउ...चीन्ह न कोऊ = शरीर और जीव के बीच ईश्वर ने वियोग दिया; यदि वह ऐसा न करे तो उसे कोई न पहचाने। (२४) तुम्ह = तुम्हारे। आथी = पूँजी, धन। जरी = जड़ी। (२५) पखाना = नग, पत्थर। सोन = सोना। रूप = चाँदी। तुम्ह ठाऊँ = तुम्हारे निकट, तुमसे। हीर फार = हीरे के टुकड़े।