काहि पुकारौं, जा पहँ जाऊँ। गाढ़े मीत होइ एहि ठाऊँ॥
को यह समुद मथै बल गाढै। को मथि रतन पदारथ काढ़ै? ॥
कहाँ सो बरम्हा, बिसुन महेसू। कहाँ सुमेरु, कहाँ वह सेसू॥
को अस साज देइ मोहिं आनी। बासुकि दाम, सुमेरु मथानी॥
को दधि समुद मथै जस मथा? । करनी सार न कहिए कथा॥
जौ लहि मथै न कोई देइ जीऊ। सूधी अँगुरि न निकसै घीऊ॥
लीलि रहा अब ढील होइ, पेट पदारथ मेलि।
को उजियार करै जग, झाँपा चंद उधेलि? ॥ १० ॥
ए गोसाइँ! तू सिरजन हारा। तुइँ सिरजा यह समुद अपारा॥
तुइँ अस गगन अंतरिख थाँभा। जहाँ न टेक, न थूनि, न खाँभा॥
तुइँ जल ऊपर धरती राखी। जगत भार लेइ भार न थाकी॥
चाँद सुरुज औ नखतन्ह पाँती। तोरे डर धावहिं दिन राती॥
पानी पवन आगि औ माटी। सब के पीठ तोरि है साँटी॥
सो मूरुख औ बाउर अंधा। तोहि छाँड़ि चित औरहि बंधा॥
घट घट जगत तोरि है दीठी। हौं अंधा जेहि सूझ न पीठी॥
पवन होइ भा पानी, पानि होइ भा आगि।
आगि होइ भा माटी, गोरखधंधै लागि॥ ११ ॥
तुइँ जिउ तन मेरवसि देइ आऊ। तुही बिछवसि, करसि मेराऊ॥
चौदह भुवन सो तोरे हाथा। जहँ लगि बिछुर आव एक साथ॥
सब कर मरम भेद तोहि पाहाँ। रोवँ जमावसि टूटै जाहाँ॥
जानसि सबै अवस्था मोरी। जस बिछुरी सारस कै जोरी॥
एक मुए ररि मुवै जो दूजी। रहा न जाइ, आउ अब पूजी॥
झूरत तपत बहुत दुख भरऊँ। कलपौं माँथ वेगि निस्तरऊँ॥
मरौं सो लेइ पदमावति नाऊँ। तुइँ करतार करेसि एक ठाऊँ॥
दुख सौं पीतम भेंटि, सुख सों सोव न कोइ।
एहि ठाँव मन डरपै, मिलि न बिछोहा होइ॥ १२ ॥
(१०) मीत होइ = जो मित्र हो। गाढै = संकट के समय में। दाम = रस्सी। करनी सार...कथा = करनी मुख्य है, बात कहने से क्या है। बटा भा = बटाऊ हुआ, चल दिया। ढील होई रहा = चुपचाप बैठ रहा। उघेलि = खोलकर।
(११) थाँभा = ठहराया, टिकाया। थूनि = लकड़ी का बल्ला जो टेक के लिये छप्पर के नीचे खड़ा किया जाता है। भार न थकी = भार से नहीं थकी। सब के पीठि...साँटी = सब की पीठ पर तेरी छड़ी है, अर्थात् सब के ऊपर तेरा शासन है। (१२) मेरवसि = तू मिलाता है। आउ = आयु। बिछोवसि = बिछोह करता है। मेराऊ = मिलाप। जाहाँ = जहाँ। कलपौं = काटूं । करेसि = तुम करना।